Book Title: Vimal Mantri no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 10
________________ (ए) माल परिमल विस्तरे, जमर जला गुंजारव करे; लखमी जाणे अति निराम, ए कांई बे उत्तम गम ॥ २६ ॥ महारी माल न त्रुटे किमें, जो टक त्रूटी ई समे; कांई महिमा यानक तपो; लेइ परिवार रही आपणो ॥ २७ ॥ दिशि दे खीने वाध्यो मोह, थानक प्रत्ये चडाव्यो सोह; देव प्रत्ये दीधो यादेश, नीपार्क गढ पोल प्रवेश ॥ २८ ॥ वारू वन वामी अजिराम, वाव सरोवर सुंदर ठाम; मंदिर मोटां कीधां घणां, जाली गोख जति बारणां ॥ २७ ॥ सप्त भूमि सोहे श्रावास, मांहिं व्यवहारीना वास घरसुंदरी मुख मीठी जाख, जाणे साकर सरसी द्वाख ॥ ॥ ३० ॥ सरली सेरी नवि सांकडी, खाई वलिपि वली वांकडी, चउरासी चहुटे मंमाण, मांगवीच्या ते मागे दाए ॥ ३१ ॥ जिनप्रासादे मन मोहीये, नाटक नाच गीत सोहीये; साल दाल जोजन घृत घोल, बेठा करे कथा कल्लोल ॥ ॥ ३२ ॥ रामा रंग रमे सोगवे, देतां दान नं * Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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