Book Title: Vartaman Tirthankar Shri Simandhar Swami Author(s): Dada Bhagwan Publisher: Dada Bhagwan Foundation View full book textPage 5
________________ संपादकीय मोक्ष में जाने की इच्छा किसे नहीं होगी ? लेकिन जाने का मार्ग प्राप्त होना कठिन है। मोक्षमार्ग के नेता के सिवा उस मार्ग पर कौन ले जाये ? आगे कई ज्ञानी हुए और कइयों को मोक्ष के ध्येय को सिद्ध करा गये। वर्तमान में तरणतारण ज्ञानी पुरुष 'दादा भगवान' के कारण यह मार्ग खुला हुआ है, अक्रम मार्ग के द्वारा। क्रम से चढ़ना और अक्रम से चढ़ना, इनमें सरल क्या? सीढ़ियाँ या लिफ्ट ? इस काल में लिफ्ट ही योग्य है, सभीको । 'इस काल में इस क्षेत्र से सीधा मोक्ष नहीं है' एसा शास्त्र कहते हैं। लेकिन लम्बे अरसे से महाविदेह क्षेत्र के द्वारा श्री सीमंधर स्वामी के दर्शन से मोक्षप्राप्ति का मार्ग तो खुला हुआ ही है न। संपूज्य दादाश्री उसी मार्ग से मुमुक्षुओं को पहुँचाते है, जिसकी प्राप्ति का विश्वास मुमुक्षुओं को निश्चय से प्रतित होता है। इस काल में इस क्षेत्र में वर्तमान तीर्थंकर नहीं है। लेकिन इस काल में महाविदेह क्षेत्र में वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी बिराजते है और भरत क्षेत्र के मोक्षार्थी जीवों को मोक्ष में पहुँचाया करते है। ज्ञानी पुरुष उस मार्ग से पहुँचकर अन्यों को वह मार्ग दिखाते है। प्रत्यक्ष प्रकट तीर्थंकर की पहचान होना, उनके प्रति भक्ति जागना और दिन-रात उनका अनुसंधान करके अंत में उनके प्रत्यक्ष दर्शन करके केवलज्ञान प्राप्त होना यही मोक्ष की प्रथम से अंतिम पगदंड़ी है, ऐसा ज्ञानीयों का कहना है। श्री सीमंधर स्वामी की आराधना जितनी ज्यादा से ज्यादा होगी, उतना उनके साथ अनुसंधान सातत्य विशेष से विशेष रहेगा, जिससे उनके प्रति ऋणानुबंध प्रगाढ़ होगा। अंत में परम अवगाढ़ तक पहुँचकर उनके चरणकमल में ही स्थानप्राप्ति की मुँहर लगती है । श्री सीमंधर स्वामी तक पहुँचने प्रथम तो इस भरत क्षेत्र के सभी ऋणानुबंधो से मुक्ति प्राप्त करनी चाहिए। और वह प्राप्त होगी अक्रम ज्ञान के द्वारा प्राप्त हुए आत्मज्ञान और पाँच आज्ञाओं के पालन से। और श्री सीमंधर स्वामी की अनन्य भक्ति, आराधना दिन-रात करते करते उनके साथ ऋणानुबंध स्थापित होता है, जो इस देह के छूटते ही वहाँ जाने का रास्ता कर देता है। प्रकृति का नियम ऐसा है कि आंतरिक परिणाम जैसे होंगे, उसके अनुसार अगला जन्म निश्चित होगा। अभी भरत क्षेत्र में पाँचवां आरा चलता है। सभी मनुष्य कलयुगी है। अक्रम विज्ञान प्राप्त कर ज्ञानी की आज्ञा का आराधन करने लगे, तब से आंतरिक परिणाम शीघ्रता से उच्च स्तर पर पहुँच जाता है। कलयुग में से सत्युगी बनते है। भीतर चौथा आरा प्रवर्तमान होता है। बाहर पाँचवां और भीतर चौथा आरा। आंतरिक परिणाम परिवर्तन होने से जहाँ चौथा आरा चलता हो, वहाँ मृत्यु के बाद यह जीव खींच जाता है और उसमें श्री सीमंधर स्वामी की भक्ति से उनके साथ ऋणानुबंध पहले से ही बाँध लिया होता है। इसलिए उनके समीप, चरणों में खींच जाता है वह जीव । ये सभी नियम है प्रकृति के । संपूज्य दादाश्री सदैव कहते थे कि मूल नायक सीमंधर स्वामी देरासर जगह जगह निर्माण होंगे, भव्य देरासर निर्माण होंगे, घर घर सीमंधर स्वामी की पूजा-आरतीयाँ होगी, तब दुनिया का नक्शा कुछ ओर ही हो गया होगा। और भगवान श्री सीमंधर के बारे में जरा सी बात करने पर ही लोगों के हृदय में उनके प्रति भक्ति शुरु हो जाती है। दिन-रात सीमंधर स्वामी को दादा भगवान की साक्षी में नमस्कार करते रहना। प्रतिदिन सीमंधर स्वामी की आरती और चालीस बार नमस्कार करते रहना। परम कृपालु श्री दादा भगवान सामान्य रूप से सभी मुमुक्षुओं को निम्नलिखित नमस्कार से सीमंधर स्वामी से संधान कराते है।Page Navigation
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