Book Title: Vartaman Tirthankar Shri Simandhar Swami
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Foundation

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Page 24
________________ अपने प्रत्येक पावन पदचिन्ह पर तीर्थकी स्थापना करनेवाले हे तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी प्रभु! संसार के सभी जीवों के प्रति संपूर्ण अविराधक भाव और सभी समकिती जीवों के प्रति संपूर्ण आराधक भाव मेरे हृदय में सदा संस्थापित रहे, संस्थापित रहे, संस्थापित रहे। भूत, भविष्य और वर्तमान कालके सर्व क्षेत्रो के सर्व ज्ञानी भगवंतो को मेरे नमस्कार हो, नमस्कार हो, नमस्कार हो। हे प्रभु! आप मुझ पर ऐसी कृपा बरसाइए कि जिससे मुझे इस भारतवर्षमें आपके प्रतिनिधि समान किसी ज्ञानी पुरुष का, सत् पुरुष का सत् समागम हो और उसका कृपाधिकारी बनकर आपके चरणकमल तक पहुँचने की पात्रता पाऊँ। हे शासन देवी-देवता ! हे पांचागुलि यक्षिणीदेवी तथा हे चांद्रायन यक्षदेव! हे श्री पद्मावती देवी ! हमें श्री सीमंधर स्वामी के चरणकमल में स्थान पाने के मार्ग में कोई बाधा न आये, ऐसी अभूतपूर्व रक्षा देने की कृपा करे और केवलज्ञान स्वरूप में ही रहने की परम शक्ति दे, शक्ति दे, शक्ति दे। नव कलमें मुझे कोई भी धर्म का किंचित्मात्र भी अहम न दुभाय ऐसी स्यादवाद बानी, स्यादवाद वर्तन और स्यादवाद मनन करने की परम शक्ति दो। ३) हे दादा भगवान ! मुझे कोई भी देहधारी उपदेशक साधु, साध्वी या आचार्य का अवर्णवाद, अपराध, अविनय न करने की परम शक्ति दो। हे दादा भगवान ! मुझे कोई भी देहधारी जीवात्मा के प्रति किंचित्मात्र भी अभाव, तिरस्कार कभी भी न किया जाय, न कराया जाय या कर्ता के प्रति अनुमोदना न की जाये ऐसी परम शक्ति दो। हे दादा भगवान ! मुझे कोई भी देहधारी जीवात्मा के साथ कभी भी कठोर भाषा, तंतीली भाषा न बोली जाय, न बुलवाई जाय या बुलवाने के प्रति अनुमोदना न की जाय ऐसी परम शक्ति दो। कोई कठोर भाषा, तंतीली भाषा बोले तो मुझे मृदु-ऋजु भाषा बोलने की परम शक्ति दो। हे दादा भगवान ! मुझे कोई भी देहधारी जीवात्मा के प्रति, स्त्री, पुरुष अगर नपुंसक, कोई भी लिंगधारी हो, तो उसके संबंध में किंचित्मात्र भी विषय-विकार के दोष, ईच्छाएँ, चेष्टाएँ या विचार संबंधी दोष न किया जाय, न करवाया जाय या कर्ता के प्रति अनुमोदना न की जाय ऐसी परम शक्ति दो। ७) हे दादा भगवान ! मुझे कोई भी रस में लुब्धपना न हो ऐसी परम शक्ति दो। समरसी खुराक लेने की परम शक्ति दो। ८) हे दादा भगवान ! मुझे कोई भी देहधारी जीवात्मा का प्रत्यक्ष या परोक्ष, जीवंत या मृत, किसी का किंचित्मात्र भी अवर्णवाद, १) हे दादा भगवान ! मुझे कोई भी देहधारी जीवात्मा का किंचित्मात्र भी अहम न दुभाय, न दुभाया जाय या दुभाने के प्रति न अनुमोदना की जाय ऐसी परम शक्ति दो। मुझे कोई भी देहधारी जीवात्मा का किंचित्मात्र भी अहम न दुभाय ऐसी स्यादवाद बानी, स्यादवाद वर्तन और स्यादवाद मनन करने की परम शक्ति दो। २) हे दादा भगवान ! मुझे कोई भी धर्म का किंचित्मात्र भी प्रमाण न दुभाय, न दुभाया जाय या दुभाने के प्रति न अनुमोदना की जाय ऐसी परम शक्ति दो।

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