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वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधरस्वामी
घर घर में सीमंधर स्वामी की पूजा और आरती होगी और जगह जगह सीमंधर स्वामी के मंदिर निर्माण होंगे, तब दुनिया का नक्शा कुछ और ही होगा।
- पूज्य श्री दादा भगवान
વર્તમાનતીર્થંકર
શ્રીસીમંધરે રે
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to
दादा भगवान कथित
प्रकाशक : दादा भगवान फाउन्डेशन की ओर से
श्री अजीत सी. पटेल 5, ममतापार्क सोसायटी, नवगुजरात कोलेज के पीछे, उस्मानपुरा, अहमदाबाद - 380014 फोन - 7540408, 7543979 E-Mail : dimple@ad1.vsnl.net.in
संपादक के आधीन
वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी
आवृति : प्रा 3000,
ÁSTÈ, 2001
भाव मूल्य : 'परम विनय'
और 'मैं कुछ भी जानता नहीं', यह भाव!
द्रव्य मूल्य : ५.०० रुपये (राहत दर पर)
लेसर कम्पोझ : दादा भगवान फाउन्डेशन, अहमदाबाद
संकलन : डॉ. नीरुबहेन अमीन
मुद्रक
: महाविदेह फाउन्डेशन (प्रीन्टींग डीवीझन),
धोबीघाट, दूधेश्वर, अहमदाबाद-३८० ००४. फोन : 5629197
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दादा भगवान फाउन्डेशन के प्रकाशन
त्रिमंत्र (हिन्दीमें)
१. भूगतता है उसकी भूल
૧૯. સમજથી પ્રાપ્ત બ્રહ્મચર્ય (ગ્રં., સં.) ૨. દુર ચાવ
૨૦. વાણીનો સિદ્ધાંત (ગ્રં., સં.) 3. एडजस्ट एवरीव्हेर ૨૧. કર્મનું વિજ્ઞાન टकराव टालो
૨૨. પાપ-પુણ્ય ૫. સલા ભવાનક્કિ માત્મવિજ્ઞાન ૨૩. સત્ય-અસત્યના રહસ્યો ૬. ક્રોધ
૨૪. અહિંસા ૭. માનવધર્મ
૨૫. પ્રેમ ૮. સેવા-પરોપકાર
૨૬, ચમત્કાર ૯. હું કોણ છું ?
૨૭. વાણી, વ્યવહારમાં.... ૧૦. ત્રિમંત્ર
૨૮. નિજદોષ દર્શનથી, નિર્દોષ ૧૧. દાન
૨૯. ગુરુ-શિષ્ય ૧૨. મૃત્યુ સમયે, પહેલાં અને પછી ૩૦. આપ્તવાણી - ૧ થી ૧૨ ૧૩. ભાવના સુધારે ભવોભવ ૩૧. આપ્તસૂત્ર ૧૪. વર્તમાન તીર્થંકર શ્રી સીમંધર સ્વામી ૩૨. The essence of all religion ૧૫. પૈસાનો વ્યવહાર (ગ્રં., સં.) ૩૩. Generation Gap ૧૬. પતિ-પત્નીનો દિવ્ય વ્યવહાર (ગ્રં., સં.) ૩૪. Who am I? ૧૭. મા-બાપ છોકરાંનો વ્યવહાર (વ્ર, સં.) ૩૫. Ultimate Knowledge ૧૮. પ્રતિક્રમણ (ગ્રંથ, સંક્ષિપ્ત) ૩૬. ચિંતા
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व्यापार में धर्म होना चाहिए, धर्म में व्यापार नहीं होना चाहिए, इस सिद्धांत से वे सारा जीवन जी गये। जीवन में कभी भी उन्होंने किसी के पास से पैसे नहीं लिये। उलटे धंधे की अतिरिक्त कमाई से भक्तों को यात्रा कराते थे।
आत्मज्ञान प्राप्तिकी प्रत्यक्ष लिंक
"मैं तो कुछ लोगों को अपने हाथों सिद्धि प्रदान करने वाला हूँ। पीछे अनुगामी चाहिए कि नहीं चाहिए ? पीछे लोगों को मार्ग तो चाहिए न?"
'दादा भगवान' कौन ? जून उन्नीससौ अट्ठावन की एक शाम करीब छह बजे का समय, अति भीड़से व्यस्त सूरत के स्टेशन के प्लेटफार्म नं. ३ पर की रेलवे की बेन्च पर बैठे अंबालाल मूलजीभाई पटेल रूपी देहमंदिर में कुदरत के क्रमानुसार अक्रम रूप में कई जन्मों से व्यक्त होने के लिए आतुर 'दादा भगवान' पूर्णरूप से प्रकट हुए। और कुदरत ने प्रस्तुत किया अध्यात्म का अद्भूत आश्चर्य। एक घण्टे में विश्वदर्शन प्राप्त हुआ। हम कौन ? भगवान कौन ? जगत का संचालक कौन ? कर्म क्या ? मुक्ति क्या ?' इत्यादि जगत के सारे आध्यात्मिक प्रश्नों का संपूर्ण रहस्य प्रकट हुआ। इस तरह कदरतने विश्वके चरणोमें एक अजोड़ पूर्ण दर्शन प्रस्तुत किया और उसके माध्यम बने श्री अंबालाल मूलजीभाई पटेल, चरोतर के भादरण गाँवके पाटीदार, कोन्ट्रेक्ट का व्यवसाय करनेवाले फिर भी पूर्णतया वीतराग पुरुष।
उन्हें प्राप्ति हुई उसी प्रकार केवल दो ही घण्टो में अन्य लोगों को भी वे प्राप्ति कराते थे। अपने अदभूत सिद्ध हए ज्ञानप्रयोग से। उसे अक्रम मार्ग कहा। अक्रम अर्थात् बिना क्रम के और क्रम अर्थात् सीढ़ी दर सीढ़ी क्रमानुसार ऊपर चढ़ना। अक्रम अर्थात् लिफ्ट मार्ग। शॉर्टकट।
आपश्री स्वयं प्रत्येक को 'दादा भगवान कौन ?' का रहस्य बताते हुए कहते थे कि यह दिखाई देते हैं वह 'दादा भगवान' नहीं हो सकते। यह दिखाई देनेवाले हैं वह तो 'ए.एम.पटेल' हैं। हम ज्ञानी पुरुष हैं। और भीतर प्रकट हुए है वह दादा भगवान है। दादा भगवान तो चौदह लोक के नाथ हैं। वे आपमें भी है, सभीमें भी हैं। आपमें अव्यक्त रूप में रहते हैं और यहाँ संपूर्ण रूप से व्यक्त हुए हैं। मैं खुद भगवान नहीं हूँ। मेरे भीतर प्रकट हुए दादा भगवान को मैं भी नमस्कार करता हूँ।
परम पूज्य दादाश्री गाँवगाँव-देशविदेश परिभ्रमण करके मुमुक्षु जीवों को सत्संग और स्वरूपज्ञान की प्राप्ति कराते थे। आपश्री ने अपनी उपस्थितिमें ही पूज्य डॉ. नीरूबहन अमीन को आत्मज्ञान प्रदान करने की ज्ञानसिद्धि दी थी।
परम पूज्य दादाश्री के देह विलय के बाद आज भी पूज्य डॉ. नीरूबहन अमीन गाँव गाँव-देश विदेश घूमकर मुमुक्षु जीवों को सत्संग और आत्मज्ञान प्राप्ति निमित्त भाव से करा रही हैं। हजारों मोक्षार्थी जिनका लाभ पाकर आत्मरमणता का अनुभव करते हैं और संसारमें रहकर जिम्मेदारियाँ निभाते हुए मुक्त रह सकते हैं।
ग्रंथमें मुद्रित बानी मोक्षार्थी को मार्गदर्शक के रूप में अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो। लेकिन मोक्षप्राप्ति हेतु आत्मज्ञान पाना ज़रूरी है। अक्रम मार्ग के द्वारा आत्मज्ञान प्राप्ति आज भी जारी है, इसके लिए प्रत्यक्ष आत्मज्ञानी को मिलकर आत्मज्ञान प्राप्त करें तभी यह संभव है। प्रज्वलित दीपक ही दूसरे दीपक को प्रज्वलित कर सकता है।
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संपादकीय
मोक्ष में जाने की इच्छा किसे नहीं होगी ? लेकिन जाने का मार्ग प्राप्त होना कठिन है। मोक्षमार्ग के नेता के सिवा उस मार्ग पर कौन ले जाये ?
आगे कई ज्ञानी हुए और कइयों को मोक्ष के ध्येय को सिद्ध करा गये। वर्तमान में तरणतारण ज्ञानी पुरुष 'दादा भगवान' के कारण यह मार्ग खुला हुआ है, अक्रम मार्ग के द्वारा। क्रम से चढ़ना और अक्रम से चढ़ना, इनमें सरल क्या? सीढ़ियाँ या लिफ्ट ? इस काल में लिफ्ट ही योग्य है, सभीको ।
'इस काल में इस क्षेत्र से सीधा मोक्ष नहीं है' एसा शास्त्र कहते हैं। लेकिन लम्बे अरसे से महाविदेह क्षेत्र के द्वारा श्री सीमंधर स्वामी के दर्शन से मोक्षप्राप्ति का मार्ग तो खुला हुआ ही है न। संपूज्य दादाश्री उसी मार्ग से मुमुक्षुओं को पहुँचाते है, जिसकी प्राप्ति का विश्वास मुमुक्षुओं को निश्चय से प्रतित होता है।
इस काल में इस क्षेत्र में वर्तमान तीर्थंकर नहीं है। लेकिन इस काल में महाविदेह क्षेत्र में वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी बिराजते है और भरत क्षेत्र के मोक्षार्थी जीवों को मोक्ष में पहुँचाया करते है। ज्ञानी पुरुष उस मार्ग से पहुँचकर अन्यों को वह मार्ग दिखाते है।
प्रत्यक्ष प्रकट तीर्थंकर की पहचान होना, उनके प्रति भक्ति जागना और दिन-रात उनका अनुसंधान करके अंत में उनके प्रत्यक्ष दर्शन करके केवलज्ञान प्राप्त होना यही मोक्ष की प्रथम से अंतिम पगदंड़ी है, ऐसा ज्ञानीयों का कहना है।
श्री सीमंधर स्वामी की आराधना जितनी ज्यादा से ज्यादा होगी, उतना उनके साथ अनुसंधान सातत्य विशेष से विशेष रहेगा, जिससे उनके प्रति ऋणानुबंध प्रगाढ़ होगा। अंत में परम अवगाढ़ तक पहुँचकर उनके चरणकमल में ही स्थानप्राप्ति की मुँहर लगती है ।
श्री सीमंधर स्वामी तक पहुँचने प्रथम तो इस भरत क्षेत्र के सभी ऋणानुबंधो से मुक्ति प्राप्त करनी चाहिए। और वह प्राप्त होगी अक्रम ज्ञान के द्वारा प्राप्त हुए आत्मज्ञान और पाँच आज्ञाओं के पालन से। और श्री सीमंधर स्वामी की अनन्य भक्ति, आराधना दिन-रात करते करते उनके साथ ऋणानुबंध स्थापित होता है, जो इस देह के छूटते ही वहाँ जाने का रास्ता कर देता है।
प्रकृति का नियम ऐसा है कि आंतरिक परिणाम जैसे होंगे, उसके अनुसार अगला जन्म निश्चित होगा। अभी भरत क्षेत्र में पाँचवां आरा चलता है। सभी मनुष्य कलयुगी है। अक्रम विज्ञान प्राप्त कर ज्ञानी की आज्ञा का आराधन करने लगे, तब से आंतरिक परिणाम शीघ्रता से उच्च स्तर पर पहुँच जाता है। कलयुग में से सत्युगी बनते है। भीतर चौथा आरा प्रवर्तमान होता है। बाहर पाँचवां और भीतर चौथा आरा। आंतरिक परिणाम परिवर्तन होने से जहाँ चौथा आरा चलता हो, वहाँ मृत्यु के बाद यह जीव खींच जाता है और उसमें श्री सीमंधर स्वामी की भक्ति से उनके साथ ऋणानुबंध पहले से ही बाँध लिया होता है। इसलिए उनके समीप, चरणों में खींच जाता है वह जीव । ये सभी नियम है प्रकृति के ।
संपूज्य दादाश्री सदैव कहते थे कि मूल नायक सीमंधर स्वामी देरासर जगह जगह निर्माण होंगे, भव्य देरासर निर्माण होंगे, घर घर सीमंधर स्वामी की पूजा-आरतीयाँ होगी, तब दुनिया का नक्शा कुछ ओर ही हो गया होगा।
और भगवान श्री सीमंधर के बारे में जरा सी बात करने पर ही लोगों के हृदय में उनके प्रति भक्ति शुरु हो जाती है। दिन-रात सीमंधर स्वामी को दादा भगवान की साक्षी में नमस्कार करते रहना। प्रतिदिन सीमंधर स्वामी की आरती और चालीस बार नमस्कार करते रहना।
परम कृपालु श्री दादा भगवान सामान्य रूप से सभी मुमुक्षुओं को निम्नलिखित नमस्कार से सीमंधर स्वामी से संधान कराते है।
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'प्रत्यक्ष दादा भगवान की साक्षी में वर्तमान में महाविदेह क्षेत्र में विचरित तीर्थंकर भगवान श्री सीमंधर स्वामी को अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ।'
ये शब्द संधान नहीं है, उस समय मुमुक्षुओं को खुद श्री सीमंधर स्वामी को नमस्कार करते हो ऐसी अनुभूति होती है, वह संधान है।
'प्रत्यक्ष दादा भगवान की साक्षी में ऐसा शब्दप्रयोग इसलिए प्रायोजित किया गया है कि जहाँ तक मुमुक्षु का श्री सीमंधर स्वामी के साथ सीधा तार जुड़ा नहीं है, वहाँ तक जिनका तार निरंतर उनके साथ जुड़ा हुआ है ऐसे ज्ञानी पुरुष श्री दादा भगवान के माध्यम द्वारा हम हमारे नमस्कार श्री सीमंधर स्वामी को पहुँचाते है। जिसका फल प्रत्यक्ष किये गये नमस्कार के जितना मिलता है। उदाहरण के तौर पर हमें कोई संदेश अमरिका पहुँचाना है, पर उसे आप नहीं पहुँचा सकते। इसलिए हम वह संदेश डाक विभाग को सुपुर्द करके निश्चिंत हो जाते है। यह जिम्मेवारी डाकविभाग की है और वह उसे निभाता भी है। इसी प्रकार पूज्य दादाश्री श्री सीमंधर स्वामी को हमारा संदेश पहुँचाने की जिम्मेवारी अपने सर लेते है।
दादा भगवान को साक्षी रखकर नमस्कार विधि करें। यह नमस्कार विधि जिन्हें सम्यक् दर्शन प्राप्त हुआ है, वे समकिती महात्मा समझपूर्वक करे तो उसका फल ओर ही मिलता है। मंत्र बोलते समय प्रत्येक अक्षर पढ़ना चाहिए, उससे चित्त संपूर्णतया शुद्ध रहता है। संपूर्ण चित्तशुद्धिपूर्वक नमस्कार अर्थात् स्वयं खुद को श्री सीमंधर स्वामी के मूर्ति स्वरूप को प्रत्यक्ष नमस्कार करते देखना। प्रत्येक नमस्कार के साथ साष्टांग वंदना करते दिखना चाहिए। जब प्रभु का मूर्तस्वरूप दिखे और प्रभु का अमूर्त ऐसा केवलज्ञान स्वरूप उससे किस प्रकार भिन्न है, यह भी समझ में आ जाये, तब समझना कि श्री सीमंधर स्वामी के समीप पहुँच गये है।
श्री दादा भगवान के श्रीमुख से श्री सीमंधर स्वामी के साथ संधान की बात सुनकर अनेक लोगों को ऐसी अनूभुति हुई है।
आशा है जिन्हें प्रत्यक्ष योग न हो, उन्हें यह पुस्तिका परोक्ष रूपसे संधान की भूमिका स्पष्ट कर देगी। जो व्यक्ति सचमुच मोक्षका इच्छुक होगा, उसका श्री सीमंधर स्वामी के साथ अवश्य संधान हो जायेगा। इसके पहले कभी उत्पन्न नहीं हुआ हो वैसा श्री सीमंधर स्वामी के प्रति जबरदस्त आकर्षण उत्पन्न हो तो समझ लेना कि प्रभु के चरणों में स्थान पाने के नक्कारे बजने लगे है।
सीमंधर स्वामी की प्रार्थना, विधि और सीमंधर स्वामी के चरणों में सदा मस्तक रखकर अनन्य शरण की निरंतर भावना में रहे। संपूज्यश्री दादाश्रीने बार बार कहा है कि हम भी सीमंधर स्वामी के पास जानेवाले है
और आप भी वही पहुँचने की तैयारी करें। इसके सिवा एकावतारी या दो अवतारी होना मुश्किल है। फिर अगला जन्म यदि इसी भरतभूमि में होंवे तब भीषण पाँचवा आरा चलता होगा। वहाँ मोक्ष की बात तो एक ओर रही पर फिर से मनुष्यभव मिलना भी दुर्लभ है। ऐसे संयोगो में अभी से सावधान होकर, ज्ञानीयों के बताये मार्ग पर चलकर एकावतारी पद ही प्राप्त कर ले। बार बार ऐसा मौका मिलनेवाला नहीं। बहते पानी का बहाव फिर से पकड़ में नहीं आता। बहता समय भी फिर से पकड़में नहीं आता। आया मौका गवाँ दे, उसे दूसरी बार मौका पाने का अवसर नहीं मिलता। इसलिए आज से ही जुट जायें और गाते रहें .....'सीमंधर स्वामीका असीम जय जयकार हो।'
सीमंधर स्वामी कौन है ? कहाँ है ? कैसे है ? उनका पद क्या है ? उसके अलावा उनका महत्व कितना है ? उसकी समग्र शक्यतः जानकारी पूज्यश्री दादाश्री के स्वमुख से निकली थी, उसका यहाँ संक्षिप्त संकलन होकर प्रकाशित हो रहा है। जो मोक्षमार्गीओं को उनकी आराधना के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगा।
- डॉ. नीरबहन अमीन
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श्री सीमंधर स्वामी का जीवन चरित्र
हमारे भारत वर्ष के इशान कोने में करोड़ो किलोमीटर की दूरी पर जंबुद्वीप के महाविदेह क्षेत्र की शुरुआत होती है। उसमें ३२ विजय (क्षेत्र) है। इन विजयों में आठवीं विजय 'पुष्पकलावती' है। उसकी राजधानी श्री पुंडरिकगिरी है। इस नगरी में, गत चौबीसी के सत्रहवें तीर्थंकर श्री कुन्थुनाथ भगवान के शासनकाल और अठारहवें तीर्थंकर श्री अरहनाथजी के जन्म पूर्व के समयमें श्री सीमंधर स्वामी भगवान का जन्म हुआ था। उनके पिता श्री श्रेयांस पुंडरिकगिरीनगरी के राजा थे। भगवान की माता का नाम सात्यकी था।
केवलदर्शनी बने। उनके दर्शन मात्र से ही जीव मोक्षमार्गी होने लगे।
श्री सीमंधर स्वामी प्रभु के कल्याणयज्ञ के निमित्तों में चोर्यासी गणधर, दस लाख केवलज्ञानी महाराजा, सौ करोड़ साधु, सौ करोड़ साध्वीयाँ, नौ सौ करोड़ श्रावक और नौ सौ करोड़ श्राविका है। उनके शासन रक्षक है यक्षदेव श्री चांद्रायणदेव और यक्षिणीदेवी श्री पांचांगुली देवी।
आनेवाली चौबीसी के आठवें तीर्थंकर श्री उदयस्वामी के निर्वाणके पश्चात् और नौवें तीर्थंकर श्री पेढाळस्वामी के जन्म पूर्व श्री सीमंधर स्वामी और अन्य उन्नीस विहरमान तीर्थंकर भगवंत श्रावण शुक्ल पक्ष तृतीया के अलौकिक दिन को चोर्यासी लाख पूर्व की आयु पूर्ण कर के निर्वाणपद की प्राप्ति करेंगे।
यथासमय महारानी सात्यकी ने अद्वितीय रूपलावण्यवाले, सर्वांग-सुंदर स्वर्णकांतिवाले और ऋषभ के लांछनवाले पुत्र को जन्म दिया। (वीर संवत की गणनानुसार चैत्र कृष्णपक्ष दसम की मध्यरात्रि के समय) बाल जिनेश्वर - जो मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान के साथ ही जन्मे थे। उनका देहमान पाँचसौ धनुष्य के बराबर था। राजकुमारी श्री रूकिमनी प्रभु की अर्धांगिनी बननेको परम सौभाग्यवती बनी थी।
भरतक्षेत्र में बीसवें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत स्वामी और इक्कीसवें तीर्थंकर श्री नेमीनाथजी के प्रागट्य काल के मध्यवर्ती समय में अयोध्या में राजा दशरथ के शासनकाल के दरमियान और रामचंद्रजी के जन्म पूर्व श्री सीमंधर स्वामी ने महाभिनिष्क्रमण उदययोग से फाल्गुन शुक्लपक्ष की तृतीया के दिन दीक्षा अंगीकार की। दीक्षा अंगीकार करते ही उन्हें चौथा मन:पर्यव ज्ञान प्राप्त हुआ। दोष कर्मों की निर्जरा होने पर हजार वर्ष के छद्मस्थकाल के बाद शेष चार घाती कर्मों का क्षय कर के चैत्र शुक्ल की त्रयोदशी के दिन भगवान केवलज्ञानी और
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वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी लेकिन कुछ मोक्षफल नहीं प्राप्त होगा। मोक्षफल तो आज जो हाजिर है वही दे सके।
वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी
'नमो अरिहंताणं' आज कौन ?
अभी जो हमारे लोग नौकार मंत्र बोलते है, वे किस समझ से बोलते है ? मैं ने उन लोगों से पूछा, तब मुझे बताया, 'चौबीस तीर्थंकर वही अरिहंत है।' तब मैं ने कहा, 'अरिहंत अगर उनको कहोगे तब फिर सिद्ध किसे कहोगे तुम? वे अरिहंत थे। वे तो सिद्ध हो गये, तब अभी अरिहंत कौन है ? ये लोग अरिहंत मानते हैं, वो किसे अरिहंत मानते है ?'नमो अरिहंताणं' बोले थे कि नहीं?
वर्तमान तीर्थंकर की भजना से मोक्ष। प्रश्नकर्ता : सीमंधर स्वामी कौन हैं ? वह समझाने की कृपा करेंगे।
दादाश्री: सीमंधर स्वामी वर्तमान तीर्थंकर साहिब है । वे दूसरे क्षेत्र में हैं। महाविदेह क्षेत्र में तीर्थंकर साहिब हैं। ऋषभदेव भगवान हुए, महावीर भगवान हुए....उनके जैसे यह सीमंधर स्वामी तीर्थंकर हैं।
तीन प्रकार के तीर्थंकर। एक भूतकाल के तीर्थंकर, एक वर्तमान काल के तीर्थंकर और एक भविष्यकाल के तीर्थंकर। इनमें भूतकाल के तो हो चूके। उनको याद करने से हमें पुण्यफल मिलेगा। उसके अलावा जिनका शासन होगा, उसकी आज्ञा में रहने पर धर्म उत्पन्न होता है। वह मोक्ष की ओर ले जानेवाला हो।
मगर जो कभी वर्तमान तीर्थंकर को याद करे तो उसकी बात ही अलग। वर्तमान की ही कीमत सारी, नक़द रूपये हो उसकी कीमत। बाद में आयेगे वे रूपये भावि और गये वे तो गये। अर्थात् नक़द बात चाहिए हमें। इसलिए नक़द पहचान करा देता हूं न! और ये बातें भी सभी नक़द है। धीस इझ धी केश बेंक ऑफ डिवाईन सोल्युशन। नक़द चाहिए, उधार नहीं चलता। और चौबीस तीर्थंकरो को भी हम नमस्कार करते है न !
चौबीस तीर्थंकरो को भी हम संयति पुरुष क्या कहते थे ? भूत तीर्थंकर कहते थे। भूतकाल में हो गये इसलिए। पर वर्तमान तीर्थंकरों को खोज निकालो। भूत तीर्थंकरो की भजना से हमें संसार में प्रगति होगी,
ये चौबीस तीर्थकर है न, वे अरिहंत कहलाये। मगर वह जब तक जीवित थे तब तक अरिहंत । अब वे तो निर्वाण होकर मोक्ष में गये। इसलिए सिद्ध कहलाये। अर्थात् सिद्धाणं में जाये। इससे अरिहंताणं नहीं है कोई। ये जो चौबीस तीर्थंकरो को ही अरिहंत मानते है, उन्हें मालूम नहीं है कि वे तो सिद्ध हो गये। अर्थात ऐसा उलटा चलता है। इसलिए नौकार मंत्र फल नहीं देता। फिर मैं ने उन्हें समझाया कि अरिहंत अभी सीमंधर स्वामी है। जो हाजिर हो, जीवित हो वही अरिहंत।
तीर्थंकर कहते गये कि 'अब भरत क्षेत्र में चौबीसी बंद होती है, अब तीर्थंकर नहीं होंगे। इसलिए महाविदेह क्षेत्र में तीर्थंकर है, उन्हें भजना ! वहाँ पर वर्तमान तीर्थंकर है।' पर यह तो लोगों के लक्ष में ही नहीं और इन चौबीस को ही तीर्थंकर कहते है। उनमें सारे के सारे लोग! बाकी भगवान तो सब कुछ दिखाकर गये है।
वह महावीर भगवान ने सब कुछ स्पष्ट किया था। महावीर भगवान जानते थे कि अब अरिहंत नहीं है। किसे भजेंगे यह लोग? इसलिए उन्हों ने स्पष्ट किया बीस तीर्थंकर है और सीमंधर स्वामी भी है। खुला किया इसलिए बाद में चलने लगा। मार्गदर्शन महावीर भगवान का, बाद में
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वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी कुंदकुंदाचार्य से मेल मिलता था। अरिहंत अर्थात् यहाँ अस्तित्व होना चाहिए। जो निर्वाण हुए हो, वे तो सिद्ध कहलाये। निर्वाण होने के पश्चात उन्हें अरिहंत नहीं कहते।
नौकार मंत्र कब फले ? इसलिए कहना पडा कि, 'अरिहंत को नमस्कार करो।' तब कहते है कि 'अरिहंत कहाँ है अभी ?' तब मैं ने कहा, 'इस सीमंधर स्वामी को नमस्कार कीजिए। सीमंधर स्वामी इस ब्रह्मांड में है। वे आज अरिहंत है। इसलिए उनको नमस्कार कीजिए ! अभी वे जीवित है। अरिहंत होने चाहिए, तब हमें फल मिले।' अर्थात् सारे ब्रह्मांड में जो लोग, 'अरिहंत जहाँ भी हो, उन्हें नमस्कार करता हूँ' ऐसा समझकर बोले तो उसका फल बहुत सुंदर मिलेगा।
प्रश्नकर्ता : लेकिन वर्तमान में विहरमान बीस तीर्थंकर सही है न ?
दादाश्री : हाँ, उन वर्तमान बीस को अरिहंत मानोगे तो तुम्हारा नौकार मंत्र फलेगा, नहीं तो नहीं फलेगा। अर्थात् यह सीमंधर स्वामी की भजना जरूरी है, तब मंत्र फलेगा। तब कुछ लोग इन बीस तीर्थंकरों को नहीं जानने की वजह से या तो 'उनसे हमारा क्या लेना-देना ?' ऐसा करके इन चौबीस तीर्थंकरों को ही 'ये अरिहंत है' ऐसा मानते है। आज वर्तमान होने चाहिए, तभी यह फल प्राप्त होगा। ऐसी तो कितनी सारी गलतियाँ होने से यह नुकशान हो रहा है।
नौकार मंत्र बोलते समय साथ में सीमंधर स्वामी खयाल में रहने चाहिए, तब तुम्हारा नौकार मंत्र शुद्ध हुआ कहलाये।
लोग मुझे कहते है कि आप सीमंधर स्वामी का क्यों बुलाते है ? चौबीस तीर्थंकरों का क्यों नहीं बुलाते ? मैं ने कहा, चौबीस तीर्थंकरों का तो बोलते ही है। लेकिन हम रीति के अनुसार बोलते है। ये सीमंधर स्वामी का अधिक बोलते है। वे वर्तमान तीर्थंकर कहलाते है और 'नमो अरिहंताणं'
वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी उनको ही पहुँचता है।
यह तो प्रकट-प्रत्यक्ष, साक्षात् ! प्रश्नकर्ता : सीमंधर स्वामी प्रकट कहलाते है ?
दादाश्री : हाँ, वे प्रकट कहलाते है। प्रत्यक्ष, साक्षात् है। देहधारी है और अभी महाविदेह क्षेत्र में तीर्थंकर के रूप में विचरते है।
प्रश्नकर्ता : सीमंधर स्वामी महाविदेह में है, तो वे हमारे लिए प्रकट किस तरह कहलाते है ?
दादाश्री : कलकत्ते में सीमंधर स्वामी हो, उन्हें देखा नहीं हो तब भी प्रकट गिने जायेंगे, ऐसा यह भी है महाविदेह क्षेत्र का।
प्रत्यक्ष-परोक्ष की स्तुति में फर्क ! प्रश्नकर्ता : हम महावीर भगवान की स्तुति करे, प्रार्थना करे और सीमंधर स्वामी की स्तुति करे, प्रार्थना करे तो इन दोनों की फलश्रुति में क्या फर्क पड़ेगा?
दादाश्री : भगवान महावीर की स्तुति वे खुद सुनते ही नहीं, फिर भी सीमंधर स्वामी का नाम नहीं देता हो लेकिन महावीर भगवान का नाम देता हो तो अच्छा है। लेकिन महावीर भगवान का सुनेगा कौन ? वे खुद तो सिद्धगति में जा बैढे ! उनका यहाँ लेना-देना नहीं है। वह तो हम अपने आप रूपक बना बनाकर स्थापित करते रहते है। वे आज तीर्थंकर भी नहीं कहलाते। वे तो अब सिद्ध ही कहलाते है। यह सीमंधर स्वामी अकेले ही फल देंगे।
प्रश्नकर्ता : अर्थात् जो फल मिलता है वह उनका ही, 'नमो अरिहंताणं' का ही फल मिलता है, ऐसा हुआ न ?'नमो सिद्धाणं'का कोई फल नहीं ?
दादाश्री : दूसरा कुछ फल मिले नहीं। ये तो हम ऐसा तय कर ले
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वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी वे भी ऋषभदेव भगवान जैसे है। ऋषभदेव भगवान सारे ब्रह्मांड के भगवान कहलाते है। वैसे ये सारे ब्रह्मांड के भगवान कहलाते है। वे हमारे यहाँ नहीं पर दूसरी भूमि पर है कि जहाँ मनुष्य नहीं जा सकता। ज्ञानी अपनी शक्ति वहाँ भेजते है। वह शक्ति पछकर फिर वापिस आती है। वहाँ स्थूल शरीर से नहीं जा सकते मगर वहाँ अवतार हो तब जा सके।
हमारे यहाँ भरतक्षेत्र में तीर्थंकरो का जन्म होता था, वह बंद हो गया है ढाई हजार साल से! तीर्थंकर अर्थात् आखिरी 'फूल मून' (पूर्ण चंद्र)। लेकिन वहाँ महाविदेह क्षेत्र में सदा के लिए तीर्थंकर जन्म लेते हैं। सीमंधर स्वामी आज वहाँ विद्यमान है।
प्रश्नकर्ता : वे अंतर्यामी है ?
वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी कि 'भैया, कौनसे स्टेशन जाना है ?' तब कहे, 'भैया, आणंद जाना है।' तब आणंद हमारे लक्ष में रहेता है। ऐसा यह मोक्ष में जाने का, सिद्धगति में जाने का, वह लक्ष में रहेता है। बाकी सर्वश्रेष्ठ उपकारी अरिहंत कहलाते है। अरिहंत किसे कहेंगे? जो हाजिर हो उसे। गेरहाजिर हो उसे अरिहंत नहीं कहते। प्रत्यक्ष-प्रकट होने चाहिये। इसलिए सीमंधर स्वामी के उपर अपना सब ले जाओ अब । वैसे तो बीस तीर्थंकर है मगर दूसरे कितने नाम हमारे खयाल में रहे ? इसके बजाय यह जिसका महत्व है, हमारे हिन्दुस्तान के लिए विशेष महत्व के गिनते है, वे सीमंधर स्वामी उनके पर ले जाईए और उनके लिए जीवन अर्पित कीजिए अब।
द्रष्टि भगवान के दर्शन की ! प्रश्नकर्ता : महाविदेह क्षेत्र में सीमंधर स्वामी की प्रवृति क्या है ?
दादाश्री : प्रवृति काहे की ? बस, भगवान ! लोग दर्शन करते है और वे वीतराग भाव से बानी बोलते है।
प्रश्नकर्ता : देशना ? दादाश्री : हाँ, बस, देशना देते है। प्रश्नकर्ता : सीमंधर स्वामी महाविदेह क्षेत्र में दूसरा क्या करते है ?
दादाश्री : करने का उन्हें कुछ भी नहीं होता। कर्म के उदय अनुसार, उदयकर्म जो कराये वैसा किया करते है। अपनेपन का इगोईझम (अहंकार) खत्म हो गया हो और पूरा दिन ज्ञान में ही रहें। महावीर भगवान रहते थे ऐसा। उनके फोलोअर्स (अनुयायी) बहुत होते हैं।
सिर्फ दर्शन से ही मोक्ष ! प्रश्नकर्ता : सीमंधर स्वामी के दर्शन का वर्णन कीजिए ? दादाश्री : सीमंधर स्वामी की आयु हाल में देढ़ लाख साल की है।
दादाश्री: वे हमें देखते हैं। हम उन्हें नहीं देख सकते। वे सारी दुनिया देख सकते है।
सीमंधर स्वामी दूसरे क्षेत्र में है। यह बुद्धि से पर की बात है सब। पर मेरे ज्ञान में आयी है, इन लोगों की समझ में नहीं आये। लेकिन हमारी समझ में एक्झेक्ट (जैसा है वैसा) आये। अब उनके दर्शन करने से लोगों का बहुत कल्याण हो जाये।
प्रश्नकर्ता : उनका देह कैसा है ? मनुष्य जैसा ? हमारे जैसा ? दादाश्री : देह अपने जैसा ही, मनुष्य जैसा ही देह है। प्रश्नकर्ता : उनके देह का प्रमाण क्या है?
दादाश्री : प्रमाण बहुत विशाल है। हाईट बहुत लम्बी है। सभी बातें ही अलग है। उनकी आयु अलग है।
महाविदेह क्षेत्र कहाँ ? कैसा ? प्रश्नकर्ता : सीमंधर स्वामी विचरते है, वह महाविदेह क्षेत्र कहाँ है ?
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वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी
दादाश्री : वह तो हमारे इस क्षेत्र से बिलकुल अलग है । इशान दिशा में है। सभी क्षेत्र अलग अलग है। वहाँ ऐसे ही जा सके वैसा नहीं है।
प्रश्नकर्ता : महाविदेह क्षेत्र हमारे भरत क्षेत्र से अलग गिना जाता है ?
दादाश्री: हाँ, अलग। एक यह महाविदेह क्षेत्र है, जहाँ सदा के लिए तीर्थंकर जनमते रहते है और हमारे क्षेत्र में कुछ समय पर ही तीर्थकर जनमते हैं। बाद में नहीं रहते। हमारे यहाँ कुछ समय के लिए तीर्थंकर नहीं भी होते। लेकिन अभी ये सीमंधर स्वामी है, वे हमारे लिए है। वे अभी लम्बे अरसे तक रहनेवाले है।
भूगोल, महाविदेह क्षेत्र की। प्रश्नकर्ता : अब महाविदेह क्षेत्र के विषय में थोड़ा डिटेल में (विस्तृत में) बताईए। इतने जोजन दूर मेरूपर्बत, ये जो बातें शास्त्र में लिखी है, वे सही है?
दादाश्री : सही है। उनमें फर्क नहीं। गिनतीपूर्ण वस्तुएँ है। हाँ, इतने साल का आयुष्य और अभी कितने साल रहेंगे, ये सब गिनतीपूर्ण है। सारा ब्रह्मांड है, उसमें मध्यलोक है। अब इसमें पंद्रह प्रकार के क्षेत्र है। मध्यलोक ऐसे राइन्ड (गोलाकार) है। लेकिन लोगों को दूसरी कुछ समझ नहीं होती इसमें। क्योंकि एक वातावरण में से दूसरे वातावरण में जा नहीं सकते ऐसे क्षेत्र है भीतर । मनुष्यों के जन्म होने की और मनुष्य लोगों के रहने की पंद्रह भूमिकाएँ है। हमारी इनमें से यह एक भूमिका है। इसके उपरांत दूसरी चौदह है। उनमें हमारे जैसे ही मनुष्य जहाँ देखो वहाँ है। हमारे कलयुग के है और वे सत्युग के है। कहीं कहीं कलयुग भी सही और किसी जगह सत्युग भी सही। इस तरह मनुष्य है और वहाँ पर महाविदेह क्षेत्र में अभी सीमंधर स्वामी स्वयं है। अभी उनकी देढ लाख साल की उम्र है और अभी सवा लाख साल तक रहनेवाले है। रामचंद्रजी के समय इनको देखा था। उसके पहले वे जन्मे थे। रामचंद्रजी ज्ञानी थे। वे जन्मे थे यहाँ पर वे सीमंधर
वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी स्वामी को देख सके थे। सीमंधर स्वामी तो उनके पहले के, बहत पहले के है। ये सीमंधर स्वामी है, उन्हें जगत कल्याण करना है।
श्री सीमंधर स्वामी, भरत कल्याण के निमित्त।
प्रश्नकर्ता : महाविदेह क्षेत्र में अभी तीर्थंकर बिराजते है, ऐसे दूसरे किसी क्षेत्र में कोई तीर्थंकर बिराजते है ?
दादाश्री : ये पाँच भरतक्षेत्र और पाँच ऐरावत क्षेत्र में, वर्तमान में तीर्थंकर नहीं बिराजते। अन्यत्र पाँच महाविदेह क्षेत्र है, वहाँ इस समय चौथा आरा है, वहाँ पर तीर्थंकर विचरते है। वहाँ सदैव चौथा आरा होता है और हमारे यहाँ तो पहला, दूसरा, तीसरा, चौथा, पाँचवां, छठ्ठा - इस तरह आरे बदलते रहते है।
प्रश्नकर्ता : यहाँ पर कब तीर्थंकर होते है ? दादाश्री : यहाँ तीसरे-चौथे आरे में तीर्थंकर होंगे।
प्रश्नकर्ता : और तीर्थंकर वे हमारे यहाँ हिन्दुस्तान में ही होते है और कहीं नहीं होते?
दादाश्री : इसी भूमिका में । यही भूमिका, हिन्दुस्तान की ही ! इसी भूमिका में तीर्थंकर होंगे, दूसरी जगह पेदा ही नहीं होते। चक्रवर्ती भी यही भूमिका में होंगे, अर्धचक्री भी यही भूमिका में होंगे। त्रेसठ शलाका पुरुष सभी यहीं होते है।
प्रश्नकर्ता : इस भूमि की कुछ महत्वता होगी? दादाश्री : यह भूमि बहुत उच्च गीनी जाती है।
प्रश्नकर्ता : सीमंधर स्वामी का पूजन किस लिए ? अन्य वर्तमान तीर्थंकरो का पूजन क्यों नहीं ?
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वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी
दादाश्री : सभी तीर्थंकरो का हो सके, लेकिन सीमंधर स्वामी का यहाँ हिन्दुस्तान के साथ हिसाब है, भाव है उनका। सीमंधर स्वामी को बीस तीर्थंकरो में विशेष रूप से भजने का इसलिए कि हमारे भरतक्षेत्र के नजदीक से नजदीक वे है और भरत क्षेत्र के साथ उनका ऋणानुबंध है।
वर्तमान बीस तीर्थंकर है, उनमें से अकेले तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी का भरतक्षेत्र के साथ ऋणानुबंध हिसाब है। तीर्थंकरों को भी हिसाब होता है। और सीमंधर स्वामी तो आज साक्षात् है।।
इसलिए अब आप अरिहंत किसे मानना ? यह सीमंधर स्वामी को और जो दूसरे उन्नीस तीर्थकर है, वे सभी अरिहंत ही है लेकिन उन सभी तीर्थंकरो के साथ सम्बन्ध रखने की जरूरत नहीं। एक के साथ रखने से सब आ जाते है। अर्थात् सीमंधर स्वामी के दर्शन करना। 'हे अरिहंत भगवान ! आप ही सच्चे अरिहंत हो अभी।' ऐसा बोलकर नमस्कार करना।
वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी पर इस समय तीर्थंकर है। चौथे आरे में तीर्थंकर होते है। बाकी अन्य सभी हमारे जैसी ही दशा है।
चौथे और पाँचवे आरे में फर्क क्या होता है ? तब कहे, चौथे आरे में मन-वचन-काया की एकता होती है और पाँचवे आरे में यह एकता टूट जाती है। अर्थात् मन में ही हो वैसा बानी से बोलते नहीं और बानी में हो औसा वर्तन में लाते नहीं, उसका नाम पाँचवा आरा। और चोथे आरे में तो मन में जैसा हो वैसा ही बानी से बोले और वैसा ही करें। कोई मनुष्य वहाँ पर चौथे आरे में कहे कि मुझे सारा गाँव जला देने का विचार आता है, तब हमें समझना चाहिए कि यह रूपक में आनेवाला है। और यहाँ आज कोई कहे कि में तुम्हारा घर जला दूंगा। तब हम समझे कि अभी तो विचार में है, त मझे फिर कब मिलेगा? मुँह से बोला हो फिर भी बरकत नहीं। 'मैं तम्हें मार डालूँगा' कहे पर कुछ आधार नहीं है, मन-वचन-काया की एकता नहीं है। इसलिए बोलने के अनुसार कार्य कैसे होगा? कार्य होता ही नहीं।
कौनसी भूमिका से जा पाये वहाँ ? प्रश्नकर्ता : वहाँ जाना हो तो किस स्थिति में मनुष्य जा सके ?
दादाश्री : वह वहाँ के जैसा हो जाये तब। चौथे आरे जैसा मनुष्य हो जाये, इस पाँचवे आरे के दुर्गुन चले जाये तब वहाँ जाये। कोई गाली दे तब भी मन में उसके लिए बुरा भाव नहीं आये तब वहाँ जाये।
प्रश्रकर्ता : आम तौर पर यहाँ से सीधे मोक्ष में नहीं जा सकते। पहेले महाविदेह क्षेत्र में जाना बाद में मोक्ष में जाना, ऐसा कैसे हो सके ?
वहाँ है मन-वचन-काया की एकता ! महाविदेह क्षेत्र में भी मनुष्य है। वे हमारे जैसे है, देहधारी ही है। वहाँ पर मनुष्यों के मनोभाव हमारे जैसे ही सभी।
प्रश्नकर्ता : वहाँ आयुष्य लम्बा होता है, दादाजी ?
दादाश्री : हाँ, आयुष्य लम्बा होता है। बहुत लम्बा होता है। बाकी हमारे जैसे मनुष्य है, हमारे जैसा व्यवहार है। लेकिन हमारे यहाँ चौथे आरे में जैसा व्यवहार था वैसा है। इस पाँचवे आरे के लोग अब तो जेब काटना सीख गये और आपस आपसमें सगे-संबंधियों में भी उल्टा बोलना सीख गये। वैसा व्यवहार वहाँ नहीं है।
प्रश्नकर्ता : वहाँ पर इसके जैसा ही संसार है सब ?
दादाश्री : हाँ, ऐसा ही सभी। वह भी कर्मभूमि, वहाँ भी 'मैं करता हूँ' ऐसी समझ होती है। अहंकार, क्रोध, मान, माया, लोभ भी सही। वहाँ
दादाश्री: क्षेत्र का स्वभाव ऐसा है कि जिस आरे के लायक मनुष्य हो गये हो, वहाँ खींच जाये। यहाँ पर है तो चौथे आरे जैसे हो गये हो, यहाँ पर यह ज्ञान नहीं हो और अन्य लोग भी ऐसे हो, तो वे वहाँ खींच जाये
और वहाँ जो पाँचवे आरे के समान हो गये हो, वे यहाँ पाँचवे आरे में आ जाये। ऐसा इस क्षेत्र का स्वभाव है। किसी को लाना-ले जाना नहीं होता।
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वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी क्षेत्र स्वभाव से ये सभी लोग तीर्थंकर के पास पहुँचेगे। अतः सीमंधर स्वामी को रटते रहे। उनको भजते है और बाद में वहाँ उनके दर्शन करेंगे और उनके पास बैठेंगे लोग और मोक्ष में जाते रहेगें।
हम जिन्हें ज्ञान देते है, वे एक-दो अवतारी होंगे। फिर उन्हें वहाँ सीमंधर स्वामी के पास ही जाना है। उनके दर्शन करने का । तीर्थंकर के दर्शन करने का मात्र शेष रहा। बस, दर्शन होते ही मोक्ष। ओर सभी दर्शन हो गये। यह अंतिम दर्शन करे, वह इस दादा से आगे के दर्शन है। यह दर्शन हो गये कि तुरन्त मोक्ष।
प्रश्नकर्ता : जितने लोग सीमंधर स्वामी के दर्शन करते है, बाद में वे सभी मोक्ष में जायेगें?
दादाश्री : वह दर्शन करने से मोक्ष में जाये ऐसा कुछ नहीं होता। उनकी कृपा प्राप्त होनी चाहिए। हृदय शुद्ध हो। वहाँ पर हृदय शुद्ध होने के बाद उनकी कृपा उतरती जायेगी। ये तो सुनने के लिए आये और कान को बहुत मधुर लगें। सुनकर फिर जहाँ थे वहाँ के वहाँ। उन्हें तो केवल चटनी ही पसंद आयें। सारा थाल नहीं खायें, एक चटनी के खातिर थाल पर बेठा हुआ हो तो मोक्ष नहीं होता।
उनके तो सामने आये महाविदेह क्षेत्र ! जिसे यहाँ शुद्धात्मा का लक्ष बैठा हो, वह यहाँ पर भरत क्षेत्र में रह सकता ही नहीं। जिसे आत्मा का लक्ष बैठा हो, वह महाविदेह क्षेत्र में ही पहुँच जाये ऐसा नियम है। यहाँ इस दुषमकाल में रह सकता ही नहीं। यह शुद्धात्मा का लक्ष बैठा, वह महाविदेह क्षेत्र में एक अवतार अथवा दो अवतार करके, तीर्थंकर के दर्शन करके मोक्ष में चला जाये ऐसा आसानसरल मार्ग है यह।
उनका अनुसंधान 'दादा भगवान' के द्वारा। सीमंधर स्वामी भगवान को 'फोन' करना हो तो फोन का मिडियम
वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी (माध्यम) चाहिए तब फोन पहुँचे। वैसे मिडियम है 'दादा भगवान'। बोलिए, महावीर भगवान इस समय यहाँ दिल्ही में हो और यहाँ से नाम दे तो पहुँच जाये। ऐसे यह भी पहुँच जाता है। यह थोडा आधा मिनट फोन देर से पहुँचे पर पहुँच जाता है।
वे स्वयं हाजिर है, लेकिन हमारी दुनिया में नहीं, दूसरी दुनिया में है। उनके साथ हमारा तार और सब कुछ जुड़ा है। याने सारे जगत का कल्याण होना ही चाहिए। हम तो निमित्त है। 'दादा भगवान' थु (के द्वारा) दर्शन कराता है, वह वहाँ तक पहँच जाता है। इसीलिए हमने एक अवतार कहा है न! वह यहाँ से बाद में वहाँ ही जाने का है और उनके निकट बैठने का है। बाद में मुक्ति होगी। इसलिए आज से पहचान करवाते है और 'दादा भगवान' श्रु नमस्कार करवाते है।
सीमंधर स्वामी के साथ हमारी इतनी अच्छी पहचान है कि हमारे कहने के अनुसार आप दर्शन करें तो उन तक पहुँचे।
वह 'दादा भगवान' थु अवश्य पहुंचे। प्रश्नकर्ता : हम भक्ति करे तो सीमंधर स्वामी को किस तरह पहुँचे ? क्योंकि वे तो महाविदेह क्षेत्रमें है और हम यहाँ है।
दादाश्री : कलकत्ता हो तो पहुँचे या नहीं पहुँचे ? प्रश्रकर्ता : वह पहँचे मगर यह तो बहुत दूर है न ?
दादाश्री: कलकत्ता जैसा ही है वह। आँख से नहीं दिखता। वह सब कलकत्ता ही कहलाये। वह कलकत्ता में हो कि बडौदा में हो, वह आँख से नहीं दिखता।
प्रश्रकर्ता : अर्थात् हम जो भक्ति करें, भाव करें तो वह सब उन्हें वहाँ ...
दादाश्री : तुरन्त ही पहुँचे। एक प्रत्यक्ष और एक परोक्ष। परोक्ष तो
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वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी कितना दूर हो और प्रत्यक्ष तो रूबरू होवे कि आँख से दिखे इन इन्द्रियों से।
प्रश्नकर्ता : तो वह परोक्ष का लाभ कितना लेकिन ? परोक्ष और प्रत्यक्ष के लाभ में अंतर कितना?
दादाश्री : परोक्ष तो वह तीन मील दूर हो तो भी वही का वही हुआ। लाख मील दूर हो तो भी वही का वही। अर्थात् इसमें बाधा नहीं। दूर है उसमें बाधा नहीं।
प्रश्नकर्ता : लेकिन प्रत्यक्ष वे विचरित तीर्थंकर है न ? दादाश्री : वह तो मूल तो प्रत्यक्ष सिवा कोई काम होता ही नहीं न!
अभी तो यह तुम्हें पहचान कराते है! हम यह हररोज बुलवाते है, वहाँ जाना पड़ेगा। उनके दर्शन करोगें, उस दिन मुक्ति । वह अंतिम दर्शन ।
प्रश्नकर्ता : महाविदेह क्षेत्र में ?
दादाश्री : हाँ, हम तो खटपटिये (कल्याण के लिये खटपट करनेवाले) है। हमारे पास एकावतारी होते है। हमारे पास पूरा पके नहीं। इसलिए उनका नाम दिलवाते है। हम दर्शन हररोज सीमंधर स्वामी के, वहाँ के पंच परमेष्टि के, उन्नीस अन्य तीर्थंकरो के, यह जो सब बुलवाते है वह एक ही उद्देश्य के लिए कि अब तुम्हारा आराधक पद वहाँ है।
अब यहाँ आराधक पद नहीं रहा इस क्षेत्र में । इसलिए हम वहाँ पर पहचान करवाते है, दादा भगवान की साक्षी में। अर्थात् मैं ने एक आदमी से पछा कि भैया, तुम महाविदेह क्षेत्र में हो ऐसा मानो. यही महाविदेह क्षेत्र है ऐसा समझो कल्पना से और कलकत्ता है वहाँ सीमंधर स्वामी है, तो यहाँ से कितनी बार तुम कलकत्ता दर्शन करने जाओगे? कितनी बार जाओगे ?
प्रश्नकर्ता : एक बार या ज्यादा से ज्यादा दो बार। दादाश्री : हाँ, ज्यादा से ज्यादा दो बार। तो महाविदेह क्षेत्र में ही जो
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वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी इतना लाभ मिलता हो तो अपने इस क्षेत्र में मेरे पास ऐसी चाबी है कि रोजाना लाभ में करा दूं। इसलिए सीमंधर स्वामी तीर्थंकर के खयाल में आया कि ऐसे भक्त कोई हुए नहीं कि रोज-रोज दर्शन करते है। रहते फॉरेन में और प्रतिदिन दर्शन करने आते है। उसके लिए हमें नहीं चाहिए गाडी कि नहीं चाहिए घोड़ा! दादा भगवान श्रू कहाँ कि पहुँच गया। वहाँ कुछ लोग तो घोडागाडी लेकर जाये तब पहुँच पाये।
बिना माध्यम पहुँचे नहीं ! प्रश्नकर्ता : 'प्रत्यक्ष दादा भगवान की साक्षी में सीमंधर स्वामी को नमस्कार करता हूँ' वह सीमंधर स्वामी को पहुँचता है। वे देख सकते है। यह हकीकत है न ?
दादाश्री : वे देखने में सामान्य भाव से देखते है। अर्थात् विशेष भाव से देखते नहीं वे तीर्थंकर । अर्थात् यह दादा भगवान श्रु कहाँ है इसलिए वहाँ पर पहुँचता है। अर्थात् यह बिना माध्यम के पहुँचे नहीं।
भिन्न, मैं और 'दादा भगवान'। पुस्तक में जैसे लिखा है कि यह दिखाई देते है वे 'ए.एम.पटेल' है। मैं ज्ञानी पुरुष हूँ और भीतर 'दादा भगवान' प्रकट हुए है। और वह चौदलोक के नाथ है। अर्थात जो कभी सनने में नही आया हो ऐसे ये यहाँ प्रकट हुए है। इसलिए खुद ही भगवान हूँ, ऐसा हम कभी भी नहीं कहते। वह तो पागलपन है, बेवकूफी है। जगत के लोग कहें पर हम नहीं कहते कि हम इस तरह है। हम तो साफ कहते है। और में तो 'भगवान हूँ' ऐसा भी नहीं कहता। 'मैं तो ज्ञानी पुरुष हूँ' और तीनसौ छप्पन डिग्री पर हूँ अर्थात् चार डिग्री का फर्क है। दादा भगवान की बात अलग है और व्यवहार में मैं 'ए.एम.पटेल' खुद को बताता हूँ।
अब इस भेद की लोगों को ज्यादा समज नहीं होती मतलब दादा भगवान भीतर प्रकट हुए है। जो चाहे सो काम बना लो। ऐसा एक्झेक्ट
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वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी कहता हैं। कभी ही ऐसा चौदह लोक का नाथ प्रकट होता है। मैं खुद देखकर कहता हूँ, इसलिए काम बना लो।
ये दर्शन तुरन्त ही पहुँचे ! ये सभी लोग सबेरे नींद से जागें तो भीड़ होगी न ? और शाम को तो निपट भीड़ ही होगी। इसलिए सुबह साढ़े चार से साढ़े छह तक तो ब्रह्ममूहुर्त कहलाता है। ऊंचे से ऊंचा मूहुर्त । उसमें जिसने ज्ञानी पुरुष को याद किया, तीर्थंकरो को याद किया, शासन देवी-देवताओं को याद किया, वह पहले स्वीकार हो जाये उन सभीको। क्योंकि बाद में मरीज बढ़े न! पहला मरीज आया फिर दूसरा आये। फिर भीड़ होने लगे न ! सात बजे से भीड़ होने लगे। फिर बारह बजे जबरदस्त भीड होगी। इसलिए पहला मरीज जा खडा रहा, उसे भगवान के फ्रेश दर्शन होंगे। 'दादा भगवान की साक्षी में सीमंधर स्वामी को नमस्कार करता हूँ' बोलते ही तुरन्त वहाँ सीमंधर स्वामी को पहुँच जाये। उस समय वहाँ कोई भीड़ नहीं होती। बाद में भीड़ में भगवान भी क्या करे ? इसलिए साढ़े चार से साढ़े छह तो अपूर्व काल कहलाता है। जिसकी जवानी हो, उसे तो यह छोडना नहीं चाहिए।
प्रश्नकर्ता : आपने हमें सबेरे सीमंधर स्वामी को चालीस बार नमस्कार करने को कहा है, तो उस समय यहाँ सुबह हो और वहाँ के समय में डिफरन्स होगा न ?
दादाश्री : ऐसा हमें देखने का नहीं। सबेरे कहने का तात्पर्य यह है कि अन्य कामधंधे पर जाने से पहले। धंधा नहीं हो तो किसी भी समय, दस बजे करो, बारह बजे करो।
वहाँ जा सकते है, मगर सदेह नहीं ! प्रश्नकर्ता : सीमंधर स्वामी वहाँ है। आप तो प्रतिदिन दर्शन करने जाते है तो वह किस तरह ? उसकी हमें समझ दे।
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वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी दादाश्री : वह हम जाते है लेकिन हम प्रतिदिन दर्शन करने नहीं जा सकते। हमें ज्ञानी पुरुष को यहाँ से (कंधे से) एक लाईटवाला उजाला निकले और निकलकर जहाँ तीर्थंकर हो वहाँ जाकर प्रश्र का समाधान कर के फिर वापस आ जाये। जब समझ में फर्क पड जाये, समझने में कुछ गलती हो तब पूछकर आये। बाकी हम आ-जा नहीं सकते, महाविदेह क्षेत्र ऐसा नहीं है।
हमारा सीमंधर स्वामी के साथ तार जुड़ा हुआ है। हम सभी प्रश्न वहाँ पूछे और वे सभी उत्तर मिल जायें। अर्थात् आज तक हमें लाखो प्रश्न पूछे गये होंगे और उन सभी के हमने उत्तर दिये होंगे, पर यह सब स्वतंत्र नहीं, जवाब हमें सभी वहाँ से आये थे। सभी उत्तर ऐसे नहीं दिये जा सकते। जवाब देना ये कोई आसान बात है ? एक भी मनुष्य वह पाँच जवाब भी नहीं दे सकता। जवाब दे वहाँ तक तो वादविवाद शुरू हो जाये। यह तो एक्झेक्ट जवाब आये। इसलिए सीमंधर स्वामी को भजते है न!
इस काल से भावि तीर्थंकर कोई हो ही नहीं सकता !
प्रश्नकर्ता : दादा, ये जो अभी सभी मनुष्य है, अभी दादा का ज्ञान लिया हुए महात्मा है, उनमें से कितने तीर्थंकर होंगे? अभी जितने महात्माओंने दादा का ज्ञान लिया है, जो पचास हजार होंगे। जितने महात्मा है. थोडे नजदीक के होंगे, थोडे दूर के होंगे, उनमें से कितने तीर्थंकर होंगे?
दादाश्री: इसमें तीर्थंकर का खयाल ही नहीं। इसमें ऐसा है न, तीर्थंकर नहीं, सभी केवली होंगे। केवलज्ञानी होकर मोक्ष में जायेंगे सभी।
प्रश्नकर्ता : लेकिन तीर्थंकर क्यों नहीं होंगे ?
दादाश्री: तीर्थंकर नहीं। वह गोत्र बहत भारी गोत्र होता है। वह गोत्र तो कब बंधा हुआ होना चाहिए ? कि जब चौथे आरे में और तीसरे आरे में तीर्थंकरो के समय में बाँधा हो तो चले। अभी गोत्र बाँधे तो नहीं चलता। अर्थात् अभी नया गोत्र नहीं बाँध सकते। पुराना बाँधा हुआ हो तो
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वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी हमें मालुम हो जाये। तीर्थंकर होने में फायदा नहीं है। हमें तो मोक्ष में जाने में फायदा है। तीर्थंकर को मोक्ष में ही जाने का है न!
प्रश्नकर्ता : कितने साल में हमारा गोत्र बदले ? गोत्र किस प्रकार बदले?
दादाश्री : वह तो अच्छा काल हो और तीर्थंकर स्वयं हो, तब तीर्थंकर गोत्र बंधे।
प्रश्नकर्ता : दादाजी, लेकिन अब कलयुग के बाद सत्युग ही आनेवाला है न? अर्थात् अच्छा काल आयेगा न?
दादाश्री : नहीं, लेकिन वह तीर्थंकर हो तब न । वह तीर्थंकर आये, उनसे पहले ही ये सभी हम में से ज्यादातर मोक्ष में चले जायेंगे।
प्रश्नकर्ता : मुझे बार बार ऐसा होता है कि हम तीर्थंकर क्यों नहीं हो सकते ? या फिर सीधे मोक्ष में ही जा सके? फिर ज्ञान हुआ आपके पास से कि तीर्थंकर गोत्र बांधा हो तभी ही तीर्थकर हो सकते है। तो अब हम से किस प्रकार गोत्र बांधा जाये ?
दादाश्री : अब भी तुझे फिर से लाख बरस-अवतार करने हो तो बंधेगा। तो फिर से बंधवा दूँ और फिर सातवें नर्क में बहुत बार जाना पड़ेगा। कितनी बार नर्क में जाये, तब है तो फिर ऐसे अच्छे पद मिले।
प्रश्रकर्ता : लेकिन ऐसे अच्छे पद प्राप्त करने हो तो नर्क में जाने में क्या हर्ज?
दादाश्री : रहने दे, तेरी होशियारी रहने दे चुपचाप। सयाना हो जा। थोडा तप करना पडेगा, उस घडी मालुम पड़ेगा! और वहाँ तो ऐसे तप करने पडते है, वह नर्क की बात भी तुझे सुनाऊँ तो सुनते ही मनुष्य मर जाय उतना कष्ट है वहाँ तो। सुनते ही आज के मनुष्य मर जाये कि अरेरे... हो गया। प्राण निकल जायें। इसलिए मत बोलना ऐसा वर्ना ऐसा हो जायेगा।
वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी भूल से भी उन्हें परोक्ष न मानना। अन्य जगह पर सीमंधर स्वामी की मूर्तियाँ रखी है, कई जगहों पर रखी होगी, मगर यह महेसाणा के मंदिर जैसा होना चाहिए तो इस देश का बहुत कल्याण होगा।
प्रश्नकर्ता : वह किस प्रकार कल्याण होगा?
दादाश्री : सीमंधर स्वामी जो वर्तमान तीर्थंकर है, उसे मूर्ति रूप भजें। ऐसा मानिए कि महावीर होते, महावीर के समय में हम होते तो और वे इस तरफ विहार करते करते नहीं आ सकते और हम वहाँ नहीं जा सक ते, तो हम यहाँ 'महावीर, महावीर' करे तो हमें प्रत्यक्ष के समान ही लाभ है न ? लाभ है कि नहीं?
प्रश्रकर्ता : हाँ, है ।
दादाश्री: वर्तमान तीर्थंकर अर्थात् ? वर्तमान तीर्थंकर के परमाणु धूमते हो। वर्तमान तीर्थंकर का बहुत लाभ होवे।
प्रश्नकर्ता : मैं घर बैठकर सीमंधर स्वामी को याद करूँ और मंदिर जाकर याद करूँ, उसमें फर्क सही ?
दादाश्री : फर्क पड़ेगा। प्रश्नकर्ता : क्योंकि वहाँ प्रतिष्ठा की है, प्राणप्रतिष्ठा की है इसलिए?
दादाश्री : प्रतिष्ठा की है और वहाँ पर देवलोगों की अधिक रक्षा होती है। इसलिए वहाँ ऐसा वातावरण होगा, इससे वहाँ असर ही ज्यादा होगा न? वह तो तुम दादा का मन में करो और यहाँ करो, उसमें फर्क तो बहुत पडेगा न ?
प्रश्नकर्ता : दादा, आप तो जीवित है। दादाश्री : उतना ही जीवित वे है। जितना जीवित यह है उतना ही
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वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी जीवित वे है। अज्ञानियों के लिए यह जीवित है। ज्ञानी के लिए तो वह उतना ही जीवित है। क्योंकि उसमें जो भाग द्रश्य है, वह सब मूर्ति ही है। मूर्ति के अलावा ओर कुछ नहीं है। पाँच इन्द्रियगम्य है, उसमें अमूर्त नाम मात्र नहीं है। सभी मूर्त है और इस मूर्ति में तफावत नहीं है, डिफरन्स नहीं
प्रश्नकर्ता : लेकिन यह यहाँ अमूर्त है और वहाँ मूर्तिमें अमूर्त नहीं है ऐसा मानते है न?
दादाश्री : वहाँ अमूर्त नहीं है, पर उनकी प्रतिष्ठा की होती है। वह जैसा जैसा प्रतिष्ठा का बल। इनकी तो बात ही अलग है न! प्रकट की बात ही अलग। प्रकट नहीं होते तब क्या से क्या हो जाये ?
प्रश्नकर्ता : और प्रकट होते ही नहीं, बहुत से समय तो।
दादाश्री : और वह नहीं हो तो भूतकालीन तीर्थंकर, हमारे चौबीस तीर्थंकर तो है ही न।
हितकारी ही वर्तमान तीर्थंकर! प्रश्नकर्ता : दादा, यह देरासर और यह सब बनता है, उसमें सच्चा भाव आत्मा का करने का है ? देरासर और अन्य सभी का क्या काम है ? वास्तव में तो हमें आत्मा का ही रास्ता खोजना है न ?
दादाश्री : देरासर अवश्य बांधना चाहिए। जो गये है उनका देरासर बाँधने का क्या अर्थ है ? सीमंधर स्वामी हाजिर है तो वह हाजिर के दर्शन करें तो कल्याण हो जाये। वे प्रत्यक्ष है, इसलिए कल्याण हो जाये। ऐसा कुछ होगा तो इन लोगों का कल्याण होगा, निमित्त चाहिए। अर्थात् यह सीमंधर स्वामी का संकेत अवश्य फलदायी है। अगर हमारे लोगों ने ज्ञान नहीं लिया हो और वहाँ सीमंधर स्वामी के दर्शन करे तो भी फल है उसमें, इसलिए यह सब बांधने का होता है वर्ना हमारे यहाँ ऐसा होगा क्या ? हमें
वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी यह सब शोभा भी नहीं देता। और ये तो जीवित तीर्थंकर है, इसलिए बात करते है। दूसरे भूतकालीन तीर्थंकरो की बात करने का अर्थ ही नहीं। हमें चाहिए उतने देरासर है ही। उनकी ज़रूरत है। हम उन्हें मना नहीं करते। क्योंकि वह मूर्तिपूजा है और भूतकालिन तीर्थंकरो की है।
यह इच्छा है 'हमारी'! दुनिया में मतभेद कम कर देना है। मतभेद दूर होंगे, तब यह बात सच्ची समझते होंगे। ये मतभेद तो इतने सारे कर दिये है कि यह शिव की एकादशी और यह वैष्णव की एकादशी, एकादशियाँ भी अलग अलग। इसलिए मैं ने मंत्र साथ कर दिये है और देरासर अलग अलग रखें। क्योंकि बिलिफ(मान्यता) है एक प्रकार की। शिव में कृष्ण को मत घुसेडो। पर ये मंत्र है वे साथ में रखो। क्योंकि मन जो है वह हमेशा शांत होना चाहिए ना ? इन लोगों ने ये सभी मंत्र बाट लिए थे। वह सभी साथ मिलाकर मैं ऐसी प्रतिष्ठा करूँगा कि लोगों के सारे मतभेद आहिस्ता आहिस्ता मीट जाये। यह इच्छा है हमारी, दूसरी कोई इच्छा नहीं है।
हिन्दुस्तान की यह स्थिति नहीं रहेनी चाहिए। जैन इस स्थिति में नहीं रहने चाहिए। सीमंधर स्वामी का देरासर वह मूर्ति का देरासर नहीं है ? वह अमूर्त का देरासर है।
आरती सीमंधर स्वामी की। इस समय जो भगवान ब्रह्मांड में हाजिर है, उसकी आरती ये सभी करते है। वह दादा भगवान श्रु (माध्यम द्वारा) करते है और मैं वह आरती उनको पहुँचाता हूँ। मैं भी उनकी आरती करता हूँ। देढ़ लाख साल से भगवान हाजिर है, उन्हें पहुँचाता हूँ।
आरती में सभी देवलोग हाजिर होते है। ज्ञानीपुरुष की आरती सीमंधर स्वामी को आखिर तक पहँचे। देवलोग क्या कहते है कि जहाँ परमहंसों की सभा हो वहाँ हम हाजिर होते हैं। हमारी आरती किसीभी मंदिर में गाये तो
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वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी भगवान को हाजिर होना पडे।
अनन्य भक्ति, वहाँ दे सके!
वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी सते रहते हैं ?! प्रत्यक्ष सद्गुरु मिले और आत्मज्ञान मिले तब मोक्ष होगा। वर्ना नहीं मिले तो पुण्य तो भुगतेगा बेचारा। अच्छा कर्म तो बांधेगा।
सच्चे दर्शन की रीत ! भगवान के मंदिर में या देरासर में जाकर सच्चे दर्शन करनेकी इच्छा हो तो मैं तुम्हें दर्शन करने की सच्ची रीत सिखलाऊँ। बोलिए, है किसी की
इच्छा?
हमें मोक्ष में जाना है, वहाँ पर महाविदेह क्षेत्र में जा सके उतना पुण्य चाहिए। यहाँ आप सीमंधर स्वामी का जितना करोगे, उतना सब आपका आ गया। बहुत हो गया। उसमें ऐसा नहीं कि यह कम है। उसमें आपने जो धारणा की हो (दान देने के लिए) वह सब करें तो हो गया सब। फिर उससे ज्यादा करने की जरूरत नहीं है। फिर दवाखाना बांधे कि ओर कुछ बांधे। वह सब अलग राह पर ले जाये। वह भी पुण्य सही मगर संसार में ही रखे और यह पुण्यानुबंधी पुण्य जो मोक्ष में जाने में हेल्प करें।
यह अनंत अवतार का घाटा पूरा करने का है और एक ही अवतार में पूरा करना है। इसलिए वास्तव में मेरे पीछे पड़ना चाहिए पर वह तो तुम्हारी गुंजाईश नहीं। यह उनके साथ तार-संधान जोड देता हूँ, क्योंकि वहाँ जाना है। यहाँ से सीधा मोक्ष होनेवाला नहीं है। अभी एक अवतार बाक़ी रहेगा। उनके पास बैठने का है। इसलिये संधान करा देता हूँ और यह भगवान सारी दुनिया का कल्याण करेंगे।
नाम देंगे, उनके दुःख जायेंगे। प्रश्नकर्ता : सीमंधर स्वामी का मंदिर इसलिए बनवाते हो कि फिर सभी उस रीति से आगे आ सके?
दादाश्री : सीमंधर स्वामी का नाम लेंगे, तब से ही परिवर्तन होने लगेगा।
प्रश्नकर्ता : सद्गुरू बगैर तो नहीं पहुँच पायेंगे न ?
दादाश्री : सद्गुरू तो मोक्ष में जाने का साधन होते है। लेकिन इन लोगों के जो दुःख है वे सभी चले जायेंगे। पुण्य उदय में परिवर्तन होता रहेगा। इससे यह दुःख बेचारे को नहीं रहेगा। ये सभी कितने दुःखोमें फँ
प्रश्नकर्ता : हाँ, है। सीखाओ, दादाजी। कल से ही उसके अनुसार दर्शन करने जायेंगे।
दादाश्री : भगवान के देरासर में जाकर कहेना कि, 'हे वीतराग भगवान! आप मेरे भीतर ही बैठे है, पर मुझे इसकी पहचान नहीं हुई। इसलिए आपके दर्शन करता हूँ। मुझे यह ज्ञानी पुरुष दादा भगवान ने सीखाया है। इसलिए इस प्रकार आपके दर्शन करता हूँ। तो मुझे मेरी अपनी पहचान हो ऐसी आप कृपा करें।' जहाँ जाओ वहाँ इस प्रकार दर्शन करना। यह तो अलग अलग नाम दिये। रिलेटिवली (व्यवहारिक द्रष्टि से)अलगअलग है, रियली सभी भगवान एक ही है।
एक को ही बस ! हमें एक तीर्थकर खुश हो जाये तो बहुत हो गया। एक घर जाने की जगह हो तो भी बहुत हो गया न! सभी घर कहाँ फिरे? और एक को पहुँचा तो सभी को पहुँच गया। और सभी को पहुँचानेवाले रह गये। हमारे लिए एक ही अच्छे, सीमंधर स्वामी। सर्वत्र पहुँच जाये।
इसलिए सीमंधर स्वामी का ठीक से ध्यान लगाओ। 'प्रभु, सदा के लिए आपकी अनन्य शरण दीजिए।' ऐसा माँगो।
प्रतिकृति से यही प्राप्त हो ! प्रश्नकर्ता : दादाजी, लेकिन सीमंधर स्वामी को होता होगा कि यह
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वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी
दादाजी मेरा काम कर रहे हैं।
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दादाश्री : ऐसा नहीं, लेकिन तुम याद करो तो तुम्हें फल मिले। वहाँ वालों को (सिद्धो को ) तुम याद करो तो फल नहीं मिलता। ये देहधारी है। तुम एक अवतार में वहाँ जा सकते हो। वहाँ उनके शरीर को तुम हाथ से छु सकोगे।
प्रश्नकर्ता: हाँ, दादाजी, हमें चान्स मिलेगा न ?
दादाश्री : सब मिलेगा। क्यों नहीं मिले ? सीमंधर स्वामी के नाम की तो तुम आवाज़ देते हो । सीमंधर स्वामी के नाम के तुम नमस्कार करते हो। वहाँ तो जाना ही है हमें, इसलिए हम उनसे कहते है कि साहिब, आप भले वहाँ बैठे, हमें दिखते नहीं लेकिन यहाँ हम आपकी प्रतिकृति बनाकर भी हम आपके पास दर्शन करते रहते है। वह बारह फीट की मूर्ति रखकर भी हम उनके पास दर्शन करें, मुँह से याद करें लेकिन वह जीवित की प्रतिकृति हो तो ठीक रहें। जो गये उसके दस्तखत काम आते ही नहीं, उनकी प्रतिकृति बनाकर क्या लाभ ? यह तो काम आये। यह तो अरिहंत भगवान !
प्रश्नकर्ता: ये सभी दादा भगवान का कीर्तन करते है, तब आप भी कुछ बोलकर कीर्तन करते थे। वह किसका ?
दादाश्री : मैं भी बोलता था। मैं दादा भगवान को नमस्कार करता हूँ | दादा भगवान की तीनसो साठ डिग्री है। मेरी तीनसो छप्पन डिग्री है। मेरी चार डिग्री कम है। इसलिए मैंने पहले बोलना शुरू किया। जिससे ये सब बोले । उनको भी कम है।
प्रश्नकर्ता: आप जिन्हें दादा भगवान बुलाते है वे और ये सीमंधर स्वामी, उनमें वैसे सम्बन्ध क्या है ?
दादाश्री : अहोहो ! वे तो एक ही है। लेकिन ये सीमंधर स्वामी
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वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी दिखाने का कारण यह है कि अभी मैं देह के साथ हूँ इसलिए मुझे वहाँ जाना जरूरी है। क्योंकि जहाँ तक सीमंधर स्वामी के दर्शन नहीं होते वहाँ तक मुक्त नहीं होंगे। एक अवतार शेष रहेगा। मुक्ति तो यह मुक्त हुए हो उनके दर्शन से मिले। वैसे तो मुक्त मैं भी हुआ हूँ। लेकिन वे संपूर्ण मुक्त है। वे ऐसे हमारी तरह लोगों से ऐसा नहीं कहते कि ऐसे आना और वैसे आना। मैं तुम्हें ज्ञान दूँगा। ऐसी खटपट नहीं करते। 'सीमंधर स्वामी के असीम जय जयकार हो' बोल सकते है ?
प्रश्नकर्ता : सीमंधर स्वामी को निश्चय से नमस्कार करता हूँ ऐसा जो बोलते है, तो निश्चय से ही बोलने का है कि व्यवहार से बोलने का है ?
दादाश्री : निश्चय से और देह तो ऊँचा-नीचा हो, वह हमें देह के साथ लेना-देना नहीं है।
प्रश्नकर्ता अर्थात् मैं सीमंधर स्वामी को निश्चय से नमस्कार करता हूँ, ऐसे जो बोलता हूँ, वह बराबर है न ?
दादाश्री : बराबर है। व्यवहार से अर्थात् देह से। और इस नमस्कार विधि में जो अन्य बातें ह, वे सभी व्यवहार से है। अब यहाँ यह एक ही निश्चय से है।
प्रश्नकर्ता: दादा भगवान का निश्चय से है ।
दादाश्री : हाँ, बस । अर्थात् वास्तव में यही तुम्हें निश्चय से नमस्कार करने चाहिए। और सब व्यवहार से सभी को नमस्कार करता हूँ। अब सीमंधर स्वामी को निश्चय से बोलो तो हर्ज नहीं। अच्छी बात कहलाये । वहाँ हम निश्चय लिखें तो सब जगह निश्चय लिखना पड़े !
प्रश्नकर्ता: हाँ, हाँ, ठीक है।
दादाश्री : यह 'दादा भगवान' को अकेले निश्चय से किया।
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वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी
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प्रश्नकर्ता : ‘दादा भगवान के असीम जय जयकार हो', जो बुलाते है उसी प्रकार 'सीमंधर स्वामी के असीम जय जयकार हो' बुला सकते है।
दादाश्री : खुशी से बुला सकते हो। लेकिन 'दादा भगवान के जय जयकार' बोलते समय जो आनंद भीतर होता है, वैसा आनंद उसमें नहीं होगा। क्योंकि यह प्रत्यक्ष है। वह प्रत्यक्ष आप देख नहीं सकते। बुला सकते है सही। सीमंधर स्वामी के लिए जो चाहो बोल सकते हो। क्योंकि हमारे शिरोमान्य भगवान है और रहेंगे। जहाँ तक हम मुक्त नहीं होंगे, वहाँ तक रहेंगे। यह तो हमने अँगुलिनिर्देश किया है कि जो आया वो बोलेगें, उसका कल्याण होगा।
प्रश्नकर्ता: हाँ, अँगुलिनिर्देश है। सब ठीक है।
दादाश्री : यह सब अँगुलिनिर्देश है। किसी ने अँगुलिनिर्देश नहीं किया, क्या करना वह! बातें सभी की होगी मगर अँगुलिनिर्देश नहीं किया कि ऐसा कीजिए।
प्रश्नकर्ता : यह तो मैं ने उस दिन बुलाया था न, तब एक भाई ने कहा कि ऐसा नहीं बुलवा सकते। निश्चय से नहीं बुलवा सकते। इसलिए मैं पूछा ।
दादाश्री : नहीं, वह बोले हो तो हर्ज नहीं। इससे कुछ पाप लगे ऐसा नहीं। लेकिन यह ज्ञानी पुरुष के कहने के अनुसार बोले, उसमें बहुत फर्क पड़ जाये। बोले हो, उसका जोखिम नहीं। प्रतिक्रमण नहीं करना पडे। सीमंधर स्वामी का केवल नाम देंगे, तो भी उसको फायदा हो जायेगा।
प्यॉरिटी वहाँ तैयारी !
हमारा ध्येय क्या है? मैं तो घर के कपड़े पहनता हूँ। यह नीरबहन भी घर के कपडे पहनती है। एक पाई किसी की लेने की नहीं और जगत कल्याण के लिए सभी तैयारी है। करीब पचास हजार समकितधारी मेरे
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वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी पास है और उनमें दोसौ ब्रह्मचारी है। वे सभी जगत कल्याण के लिए तैयार हो जायेंगे।
आज्ञा बनायें, महाविदेह के लायक !
यह ज्ञान लेने के बाद यह अवतार ही महाविदेह के लिए आपका आकार ले रहा है। मुझे कुछ करने की जरूरत नहीं। नेचरल (प्राकृतिक ) नियम ही है।
प्रश्नकर्ता: महाविदेह क्षेत्र में किस तरह जा सके ? पुण्य से ?
दादाश्री : यह हमारी आज्ञा का पालन करें, उससे इस अवतार में पुण्य बंध ही रहा है, वह महाविदेह क्षेत्र में ले जाता है। आज्ञा पालन से धर्मध्यान होता हैं, वह सब फल देंगा। पुण्य बँधता है, हमारी आज्ञा पालते है उसके प्रमाण से । वह फिर वहाँ पर तीर्थंकर के पास भुगतना पडेगा।
प्रश्नकर्ता: सीमंधर स्वामी हम महात्माओ का कचरे जेसा व्यवहार है, वह देख के हमें वहाँ अंदर आने देंगे सही ?
दादाश्री : उस घड़ी ऐसे आचार नहीं रहेंगे। अभी आप जो मेरी आज्ञा का पालन करते हो, उसका फल उस वक्त सामने आयेगा। और अभी जो कचरा माल है वह मुझे पूछे बगैर भरा था, वह निकलता है।
प्रश्नकर्ता: दादाजी, सीमंधर स्वामी को याद करने से, सीमंधर स्वामी के पास जा सकें ऐसा निश्चित हो सके सही ?
दादाश्री : जाना है वह तो निश्चित है ही। उसमें नवीन नहीं लेकिन लगातार याद रहने से दूसरा कुछ नवीन अंदर घुसेगा नहीं। दादाजी याद आये कि तीर्थंकर याद आये तो माया घुसे नहीं । अब यहाँ माया नहीं आयेगी।
जिम्मेवारी किसकी ली ?
हमारा सीमंधर स्वामी के साथ संबंध है। हमने सभी महात्माओं के
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वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी मोक्ष की जिम्मेदारी ली है। हमारी आज्ञा जो पालेंगे, उनकी जिम्मेवारी हम लेते हैं।
यह ज्ञान पाने के बाद एकावतारी होकर, सीमंधर स्वामी के पास जाकर वहाँ से मोक्ष में चला जाये। किसी के दो अवतार भी हो, लेकिन चार अवतार से अधिक नहीं ही होंगे, यदि हमारी आज्ञा पाले तो। यहाँ ही मोक्ष हो जाय। 'यहाँ एक चिंता हो तो मुझ पर दावा करना' ऐसा कहते हैं। ये तो वीतराग विज्ञान है। चौबीस तीर्थंकरो का इकट्ठा विज्ञान है।
सीमंधर स्वामी अकेले ही हमारे ऊपरी। प्रश्नकर्ता : हमारे तो आप रखवाले सही लेकिन आपके ऊपर कौन ? आपको तो क़ानूनन् ही चलना होगा न, जो आये उसके साथ ?
दादाश्री : पूरी तरह कानूनन्। और हमारे ऊपरी तो ये बैठे है न, सीमंधर स्वामी। वे अकेले ही ऊपरी है हमारे। हम उनके पास कुछ माँग नहीं करते। माँग नहीं हो सकती न! आप मुझ से माँग सकते हो।
अहो ! उस दर्शन की अद्भूतता !! प्रश्नकर्ता : हम तो दादा का विझा दिखायेंगे।
दादाश्री : विझा दिखलाते ही अपने आप काम हो जाये। तीर्थंकर को देखते ही आपके आनंद की सीमा नहीं रहेगी। देखते ही आनंद! सारा संसार विस्मृत हो जायेगा। संसार का कुछ खाना-पीना नहीं भायेगा। उस घड़ी सब समाप्त हो जायेगा। निरालंब आत्मा प्राप्त होगा। फिर कोई अवलम्बन नहीं रहा।
सम्यक् द्रष्टि वही विझा। प्रश्नकर्ता : आपने कहा है, तीर्थंकर के दर्शन करे तो मनुष्य को केवलज्ञान हो जाये !
वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी दादाश्री : तीर्थंकर के दर्शन तो बहुत लोगों ने किये थे। हम सब ने भी किये थे पर उस समय हमारी तैयारी नहीं थी। द्रष्टि परिवर्तन नहीं हुआ था। मिथ्याद्रष्टि थी। वह मिथ्याद्रष्टि में तीर्थंकर क्या करे तब ? सम्यक् द्रष्टि हो उस पर तीर्थंकर की कृपा उतर जाये।
प्रश्नकर्ता : इसलिए उसकी तैयारी होने पर उनके दर्शन होने से मोक्ष हो जाये।
दादाश्री : इसलिए हमें तैयार होकर जाना है। वजह इतनी ही है कि तैयार होकर फिर विझा लेकर जाओ। और कही भी जाओगे वहाँ कोई न कोई तीर्थंकर मिल आयेंगे।
सीमंधर स्वामी को ही पूजें ! हिन्दुस्तान में यदि घर घर सीमंधर स्वामी के फोटो हो तो काम बन जाये। क्योंकि वे जीवंत है। अगर हमारी फोटो नहीं होगी तो भी चलेगा मगर उनकी रखना। भले ही लोग उनको पहचाने नहीं और वैसे ही दर्शन करेंगे तो भी काम हो जायेगा। यह सीमंधर स्वामी के चित्रपट बहुत अच्छे निकाले है और जगह जगह पहुँच जायेंगे, तब काम हो जायेगा। वैष्णवजैन और सभी घरो में पहुँच जायेंगे। हाजिर है वे नक़द फल देते है।
यह देरासर इसलिए है कि जगत सीमंधर स्वामी को पहचान सकें। सीमंधर स्वामी कौन है वह जान सकें। घरघर सीमंधर स्वामी की फोटो पूजायेगी और आरतियाँ होगी और जगह जगह सीमंधर स्वामी के देरासर बँधेगे तब दुनिया का नक्शा कुछ और ही होगा।
मोक्ष स्वरूपी के सानिध्य में। और हम यहाँ पर दिखाई जरूर देते है पर सीमंधर स्वामी के सामने ही बैठे रहते है और वहाँ पर आपको दर्शन कराते है। हमें पहचान है उनकी, सीमंधर स्वामी हमारे दादा के भी दादा। आखिर देखे तो, हमें
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नित्यक्रम
वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी जिसकी आवश्कता है, उसकी हमें जरूरत है।
और सीमंधर स्वामी के पास बैठे रहो, वह मूर्ति के पास बैठे रहो, तो भी हेल्प होगी। मैं भी बैठा रहता हूँ, मुझे तो मोक्ष मिल गया है, तो भी मैं बैठा रहा हूँ वर्ना मुझे उनका क्या काम था ? क्योंकि अभी वे ऊपरी है। उनके दर्शन करे तब मोक्ष होगा वर्ना मोक्ष नहीं होगा। उनके दर्शन करे, वह किसके दर्शन? मोक्ष स्वरूप के। देह के साथ जिसका स्वरूप मोक्ष है।
- जय सच्चिदानंद
प्रात:विधि श्री सीमंधर स्वामी को नमस्कार । वात्सल्यमूर्ति श्री दादा भगवान को नमस्कार । प्राप्त मन-वचन-काया से इस जग के कोई भी जीव को किंचित्मात्र भी दुःख न हो, न हो, न हो। केवल शुद्धात्मानुभव के सिवा इस जग की कोई भी विनाशी चीज मुझे नहीं चाहिए। प्रगट ज्ञानी पुरुष 'दादा भगवान' की आज्ञा में ही सदा रहने की परम शक्ति प्राप्त हो, प्राप्त हो, प्राप्त हो। ज्ञानी पुरुष दादा भगवान के वीतराग विज्ञान का यथार्थता से, संपूर्ण रूप से, सर्वांग रूप से केवल ज्ञान, केवल दर्शन और केवल चारित्र्य में परिणमन हो, परिणमन हो, परिणमन हो।
नमस्कार विधि प्रत्यक्ष दादा भगवान की साक्षी में वर्तमान में महाविदेह क्षेत्र में विचरते, तीर्थंकर भगवान श्री सीमंधर स्वामी को अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ।
(४०) प्रत्यक्ष दादा भगवानकी साक्षी में वर्तमान में महाविदेह क्षेत्र और अन्य क्षेत्रो में विचरते 'ॐ परमेष्टि भगवंतो' को अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ। प्रत्यक्ष दादा भगवान की साक्षी में वर्तमान में महाविदेह क्षेत्र और अन्य क्षेत्रों में विचरते 'पंच परमेष्टि भगवंतो' को अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ।
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(वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी को परम पूजनीय श्री दादा भगवान के माध्यम द्वारा प्रत्यक्ष नमस्कार पहूँचते है। कौसमें लिखी संख्या के अनुसार प्रतिदिन एक बार पढ़ें।)
प्रत्यक्ष दादा भगवान की साक्षी में वर्तमान में महाविदेह क्षेत्र और अन्य क्षेत्रो में विहरमान 'तीर्थंकर साहिबों' को अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ। वीतराग शासन देव-देवीयों को अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ। निष्पक्षपाती शासन देव-देवीयों को अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ। चौबीस तीर्थंकर भगवंतो को अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता
वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी से प्रार्थना
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हूँ।
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'श्री कृष्ण भगवान' को अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ।
भरत क्षेत्र में हाल विचरते सर्वज्ञ श्री दादा भगवान' को निश्चय से अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ। 'दादा भगवान' के सभी समकितधारी महात्माओं को अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कर करता हूँ। सारे ब्रह्मांड के जीवमात्र के 'रियल' स्वरूप को अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ। 'रियल' स्वरूप वही भगवद् स्वरूप है। इसीलिए सारे जग को 'भगवद् स्वरूप' में दर्शन करता हूँ। 'रियल' स्वरूप वही शुद्धात्मा स्वरूप है। इसीलिए सारे जग को 'शुद्धात्मा स्वरूप' में दर्शन करता हूँ। 'रियल' स्वरूप वही तत्त्व स्वरूप है। इसीलिए सारे जग को 'तत्त्वज्ञान' से दर्शन करता हूँ।
प्रत्यक्ष दादा भगवान की साक्षी में, वर्तमान में महाविदह क्षेत्र में विचरते तीर्थंकर भगवान श्री सीमंधर स्वामी को अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ।
हे निरागी, निर्विकारी, सच्चिदानंद स्वरूप, सहजानंदी, अनंतज्ञानी, अनंतदर्शी, त्रैलोक्य प्रकाशक, प्रत्यक्ष-प्रकट ज्ञानी पुरुष श्री दादा भगवान की साक्षी में आपको अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करके आपकी अनन्य शरण स्वीकार करता हूँ। हे प्रभु! आपके चरणकमल में मुझे स्थान देकर अनंतकालिन भयंकर भटकन का अंत लाने की कृपा करें, कृपा करें।
हे विश्ववंद्य ऐसे प्रकट परमात्म स्वरूप प्रभु, आपका स्वरूप ही मेरा स्वरूप है पर अज्ञानतावश मुझे मेरा परमात्म स्वरूप समझ में नहीं आता, इसलिए आपके स्वरूप में मेरे स्वरूप का निरंतर दर्शन करूँ ऐसी मुझे परम शक्ति दे, शक्ति दे, शक्ति दे।
हे परमतारक देवाधिदेव! संसार रूपी नाटक के आरंभकाल से आज के दिन की अद्यक्षण पर्यंत, किसी भी देहधारी जीवात्मा के मनवचन-काया के प्रति जाने-अनजाने में जो अनंत दोष किये है. उन प्रत्येक दोष को देखकर, उसका प्रतिक्रमण करने की मुझे शक्ति दे। इन सभी दोषों का मैं आप से क्षमाप्रार्थी हूँ। आलोचना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान करता हूँ। हे प्रभु! मुझे क्षमा करे, क्षमा करे, क्षमा करे और मझसे फिर ऐसे दोष कभी भी न हो ऐसा द्रढ निर्धार करता हैं। इसके लिए मझे जागृति अर्पे; परम शक्ति दे, शक्ति दे, शक्ति दे।
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अपने प्रत्येक पावन पदचिन्ह पर तीर्थकी स्थापना करनेवाले हे तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी प्रभु! संसार के सभी जीवों के प्रति संपूर्ण अविराधक भाव और सभी समकिती जीवों के प्रति संपूर्ण आराधक भाव मेरे हृदय में सदा संस्थापित रहे, संस्थापित रहे, संस्थापित रहे। भूत, भविष्य और वर्तमान कालके सर्व क्षेत्रो के सर्व ज्ञानी भगवंतो को मेरे नमस्कार हो, नमस्कार हो, नमस्कार हो। हे प्रभु! आप मुझ पर ऐसी कृपा बरसाइए कि जिससे मुझे इस भारतवर्षमें आपके प्रतिनिधि समान किसी ज्ञानी पुरुष का, सत् पुरुष का सत् समागम हो और उसका कृपाधिकारी बनकर आपके चरणकमल तक पहुँचने की पात्रता पाऊँ।
हे शासन देवी-देवता ! हे पांचागुलि यक्षिणीदेवी तथा हे चांद्रायन यक्षदेव! हे श्री पद्मावती देवी ! हमें श्री सीमंधर स्वामी के चरणकमल में स्थान पाने के मार्ग में कोई बाधा न आये, ऐसी अभूतपूर्व रक्षा देने की कृपा करे और केवलज्ञान स्वरूप में ही रहने की परम शक्ति दे, शक्ति दे, शक्ति दे।
नव कलमें
मुझे कोई भी धर्म का किंचित्मात्र भी अहम न दुभाय ऐसी स्यादवाद बानी, स्यादवाद वर्तन और स्यादवाद मनन करने की
परम शक्ति दो। ३) हे दादा भगवान ! मुझे कोई भी देहधारी उपदेशक साधु, साध्वी
या आचार्य का अवर्णवाद, अपराध, अविनय न करने की परम शक्ति दो।
हे दादा भगवान ! मुझे कोई भी देहधारी जीवात्मा के प्रति किंचित्मात्र भी अभाव, तिरस्कार कभी भी न किया जाय, न कराया जाय या कर्ता के प्रति अनुमोदना न की जाये ऐसी परम शक्ति दो। हे दादा भगवान ! मुझे कोई भी देहधारी जीवात्मा के साथ कभी भी कठोर भाषा, तंतीली भाषा न बोली जाय, न बुलवाई जाय या बुलवाने के प्रति अनुमोदना न की जाय ऐसी परम शक्ति दो। कोई कठोर भाषा, तंतीली भाषा बोले तो मुझे मृदु-ऋजु भाषा बोलने की परम शक्ति दो। हे दादा भगवान ! मुझे कोई भी देहधारी जीवात्मा के प्रति, स्त्री, पुरुष अगर नपुंसक, कोई भी लिंगधारी हो, तो उसके संबंध में किंचित्मात्र भी विषय-विकार के दोष, ईच्छाएँ, चेष्टाएँ या विचार संबंधी दोष न किया जाय, न करवाया जाय या कर्ता के प्रति
अनुमोदना न की जाय ऐसी परम शक्ति दो। ७) हे दादा भगवान ! मुझे कोई भी रस में लुब्धपना न हो ऐसी परम
शक्ति दो। समरसी खुराक लेने की परम शक्ति दो। ८) हे दादा भगवान ! मुझे कोई भी देहधारी जीवात्मा का प्रत्यक्ष या
परोक्ष, जीवंत या मृत, किसी का किंचित्मात्र भी अवर्णवाद,
१) हे दादा भगवान ! मुझे कोई भी देहधारी जीवात्मा का किंचित्मात्र
भी अहम न दुभाय, न दुभाया जाय या दुभाने के प्रति न अनुमोदना की जाय ऐसी परम शक्ति दो। मुझे कोई भी देहधारी जीवात्मा का किंचित्मात्र भी अहम न दुभाय ऐसी स्यादवाद बानी, स्यादवाद वर्तन और स्यादवाद मनन
करने की परम शक्ति दो। २) हे दादा भगवान ! मुझे कोई भी धर्म का किंचित्मात्र भी प्रमाण न
दुभाय, न दुभाया जाय या दुभाने के प्रति न अनुमोदना की जाय ऐसी परम शक्ति दो।
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________________ अपराध, अविनय न किया जाय, न कराया जाय या कर्ता के प्रति अनुमोदना न की जाय ऐसी परम शक्ति दो। हे दादा भगवान ! मुझे जगत कल्याण करने में निमित्त बनने की परम शक्ति दो, शक्ति दो, शक्ति दो। (इतना आपको दादा के पास मांगने का है। यह हररोज पढने की चीज नहीं है, दिल मे रखने की चीज है। यह उपयोगपुर्वक भावना करने की चीज नही है। इतने पाठ में तमाम शास्त्रो का सार आ गया है।) शुद्धात्मा के प्रति प्रार्थना प्राप्तिस्थान अहमदाबाद : श्री दीपकभाई देसाई, दादा दर्शन, 5. ममतापार्क सोसायटी. नवगुजरात कॉलेज के पीछे, उस्मानपुरा, अहमदाबाद-३८००१४. फोन: 7540408,7543979, E-mail: dimple@ad1.vsnl.net.in मुंबई : डॉ. नीरबहन अमीन, बी-904, नवीनआशा एपार्टमेन्ट, दादासाहेब फालके रोड, दादर (से.रे.), मुंबई-४०००१४ फोन : 4137616, मोबाईल : 9820-153953 वडोदरा : धीरजभाई पटेल, सी-१७, पल्लवपार्क सोसायटी, वी.आई.पी.रोड, कारेलीबाग, वडोदरा. फोन : 441627 सुरत : विठ्ठलभाई पटेल, विदेहधाम, 35, शांतिवन सोसायटी, लंबे हनुमान रोड, सुरत. फोन : 544964 राजकोट : रूपेश महेता, ए-3, नंदनवन एपार्टमेन्ट, गुजरात समाचार प्रेस के सामने, के.एस.वी.गृह रोड, राजकोट. फोन : 234597 दिल्ही : जसवंतभाई शाह, ए-24, गुजरात एपार्टमेन्ट, पीतमपुरा, परवाना रोड, दिल्ही. फोन : 011-7023890 U.S.A. : Dada Bhagwan Vignan Institue : Dr. Bachu Amin, 902 SW Mifflin Rd, Topeka, Kansas 66606. Tel. :(785)271-0869 Fax :(785)271-8641 E-mail : bamin@kscable.com, shuddha@kscable.com Dr. Shirish Patel, 2659 Raven Circle, Corona, CA 91720 Tel. :(909)734-4715. Fax :(909) 734-4411 हे अंतर्यामी परमात्मा ! आप प्रत्येक जीवमात्र में विराजमान हैं, वैसे ही मुझे में भी बिराजमान है। आपका स्वरूप वही मेरा स्वरूप है। मेरा स्वरूप शुद्धात्मा है। हे शुद्धात्मा भगवान ! मैं आपको अभेदभाव से अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ। अज्ञानतावश मैं ने जो भी दोष किए है, उन सभी दोषों को आपके समक्ष जाहिर करता हूँ। उनका हृदयपूर्वक बहुत पछतावा करता हूँ और क्षमा माँगता हूँ। हे प्रभु ! मुझे क्षमा करे, क्षमा करे, क्षमा करे और फिरसे ऐसे दोष नहीं करूँ ऐसी आप मुझे शक्ति दे, शक्ति दे, शक्ति दे। U.K. : Mr.Maganbhai Patel,2,Winifred Terrace, Enfield, Great Cambridge Road, London, Middlesex, ENI 1HH U.K. Tel:208245-1751 Mr. Ramesh Patel, 636, Kenton Road, Kenton Harrow. Tel.: 208204-0746 Fax:208907-4885 E-mail: rameshpatel@636kenton.freeserve.co.uk हे शुद्धात्मा भगवान! आप ऐसी कृपा करें कि हमारे भेदभाव छूट जाये और अभेद स्वरूप प्राप्त हो। हम आप में अभेद स्वरूप से तन्मयाकार रहे। (जो दोष हुए हो वे मनमें जाहिर करें ) Canada : Mr. Suryakant N. Patel, 1497, Wilson Ave, Appt.#308, Downsview, Onterio, Toronto. M3M 1K2, CANADA. Tel. :(416)247-8309 Africa : Mr. Manu Savla, PISU & Co., Box No. 18219, Nairobi, Kenya, Tel :(R)(2542) 744943(O)554836 Fax:545237 Internet website : www.dadashri.org, www.dadabhagwan.org