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________________ 'प्रत्यक्ष दादा भगवान की साक्षी में वर्तमान में महाविदेह क्षेत्र में विचरित तीर्थंकर भगवान श्री सीमंधर स्वामी को अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ।' ये शब्द संधान नहीं है, उस समय मुमुक्षुओं को खुद श्री सीमंधर स्वामी को नमस्कार करते हो ऐसी अनुभूति होती है, वह संधान है। 'प्रत्यक्ष दादा भगवान की साक्षी में ऐसा शब्दप्रयोग इसलिए प्रायोजित किया गया है कि जहाँ तक मुमुक्षु का श्री सीमंधर स्वामी के साथ सीधा तार जुड़ा नहीं है, वहाँ तक जिनका तार निरंतर उनके साथ जुड़ा हुआ है ऐसे ज्ञानी पुरुष श्री दादा भगवान के माध्यम द्वारा हम हमारे नमस्कार श्री सीमंधर स्वामी को पहुँचाते है। जिसका फल प्रत्यक्ष किये गये नमस्कार के जितना मिलता है। उदाहरण के तौर पर हमें कोई संदेश अमरिका पहुँचाना है, पर उसे आप नहीं पहुँचा सकते। इसलिए हम वह संदेश डाक विभाग को सुपुर्द करके निश्चिंत हो जाते है। यह जिम्मेवारी डाकविभाग की है और वह उसे निभाता भी है। इसी प्रकार पूज्य दादाश्री श्री सीमंधर स्वामी को हमारा संदेश पहुँचाने की जिम्मेवारी अपने सर लेते है। दादा भगवान को साक्षी रखकर नमस्कार विधि करें। यह नमस्कार विधि जिन्हें सम्यक् दर्शन प्राप्त हुआ है, वे समकिती महात्मा समझपूर्वक करे तो उसका फल ओर ही मिलता है। मंत्र बोलते समय प्रत्येक अक्षर पढ़ना चाहिए, उससे चित्त संपूर्णतया शुद्ध रहता है। संपूर्ण चित्तशुद्धिपूर्वक नमस्कार अर्थात् स्वयं खुद को श्री सीमंधर स्वामी के मूर्ति स्वरूप को प्रत्यक्ष नमस्कार करते देखना। प्रत्येक नमस्कार के साथ साष्टांग वंदना करते दिखना चाहिए। जब प्रभु का मूर्तस्वरूप दिखे और प्रभु का अमूर्त ऐसा केवलज्ञान स्वरूप उससे किस प्रकार भिन्न है, यह भी समझ में आ जाये, तब समझना कि श्री सीमंधर स्वामी के समीप पहुँच गये है। श्री दादा भगवान के श्रीमुख से श्री सीमंधर स्वामी के साथ संधान की बात सुनकर अनेक लोगों को ऐसी अनूभुति हुई है। आशा है जिन्हें प्रत्यक्ष योग न हो, उन्हें यह पुस्तिका परोक्ष रूपसे संधान की भूमिका स्पष्ट कर देगी। जो व्यक्ति सचमुच मोक्षका इच्छुक होगा, उसका श्री सीमंधर स्वामी के साथ अवश्य संधान हो जायेगा। इसके पहले कभी उत्पन्न नहीं हुआ हो वैसा श्री सीमंधर स्वामी के प्रति जबरदस्त आकर्षण उत्पन्न हो तो समझ लेना कि प्रभु के चरणों में स्थान पाने के नक्कारे बजने लगे है। सीमंधर स्वामी की प्रार्थना, विधि और सीमंधर स्वामी के चरणों में सदा मस्तक रखकर अनन्य शरण की निरंतर भावना में रहे। संपूज्यश्री दादाश्रीने बार बार कहा है कि हम भी सीमंधर स्वामी के पास जानेवाले है और आप भी वही पहुँचने की तैयारी करें। इसके सिवा एकावतारी या दो अवतारी होना मुश्किल है। फिर अगला जन्म यदि इसी भरतभूमि में होंवे तब भीषण पाँचवा आरा चलता होगा। वहाँ मोक्ष की बात तो एक ओर रही पर फिर से मनुष्यभव मिलना भी दुर्लभ है। ऐसे संयोगो में अभी से सावधान होकर, ज्ञानीयों के बताये मार्ग पर चलकर एकावतारी पद ही प्राप्त कर ले। बार बार ऐसा मौका मिलनेवाला नहीं। बहते पानी का बहाव फिर से पकड़ में नहीं आता। बहता समय भी फिर से पकड़में नहीं आता। आया मौका गवाँ दे, उसे दूसरी बार मौका पाने का अवसर नहीं मिलता। इसलिए आज से ही जुट जायें और गाते रहें .....'सीमंधर स्वामीका असीम जय जयकार हो।' सीमंधर स्वामी कौन है ? कहाँ है ? कैसे है ? उनका पद क्या है ? उसके अलावा उनका महत्व कितना है ? उसकी समग्र शक्यतः जानकारी पूज्यश्री दादाश्री के स्वमुख से निकली थी, उसका यहाँ संक्षिप्त संकलन होकर प्रकाशित हो रहा है। जो मोक्षमार्गीओं को उनकी आराधना के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगा। - डॉ. नीरबहन अमीन
SR No.009607
Book TitleVartaman Tirthankar Shri Simandhar Swami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2001
Total Pages25
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size314 KB
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