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________________ वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी दादाश्री : सभी तीर्थंकरो का हो सके, लेकिन सीमंधर स्वामी का यहाँ हिन्दुस्तान के साथ हिसाब है, भाव है उनका। सीमंधर स्वामी को बीस तीर्थंकरो में विशेष रूप से भजने का इसलिए कि हमारे भरतक्षेत्र के नजदीक से नजदीक वे है और भरत क्षेत्र के साथ उनका ऋणानुबंध है। वर्तमान बीस तीर्थंकर है, उनमें से अकेले तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी का भरतक्षेत्र के साथ ऋणानुबंध हिसाब है। तीर्थंकरों को भी हिसाब होता है। और सीमंधर स्वामी तो आज साक्षात् है।। इसलिए अब आप अरिहंत किसे मानना ? यह सीमंधर स्वामी को और जो दूसरे उन्नीस तीर्थकर है, वे सभी अरिहंत ही है लेकिन उन सभी तीर्थंकरो के साथ सम्बन्ध रखने की जरूरत नहीं। एक के साथ रखने से सब आ जाते है। अर्थात् सीमंधर स्वामी के दर्शन करना। 'हे अरिहंत भगवान ! आप ही सच्चे अरिहंत हो अभी।' ऐसा बोलकर नमस्कार करना। वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी पर इस समय तीर्थंकर है। चौथे आरे में तीर्थंकर होते है। बाकी अन्य सभी हमारे जैसी ही दशा है। चौथे और पाँचवे आरे में फर्क क्या होता है ? तब कहे, चौथे आरे में मन-वचन-काया की एकता होती है और पाँचवे आरे में यह एकता टूट जाती है। अर्थात् मन में ही हो वैसा बानी से बोलते नहीं और बानी में हो औसा वर्तन में लाते नहीं, उसका नाम पाँचवा आरा। और चोथे आरे में तो मन में जैसा हो वैसा ही बानी से बोले और वैसा ही करें। कोई मनुष्य वहाँ पर चौथे आरे में कहे कि मुझे सारा गाँव जला देने का विचार आता है, तब हमें समझना चाहिए कि यह रूपक में आनेवाला है। और यहाँ आज कोई कहे कि में तुम्हारा घर जला दूंगा। तब हम समझे कि अभी तो विचार में है, त मझे फिर कब मिलेगा? मुँह से बोला हो फिर भी बरकत नहीं। 'मैं तम्हें मार डालूँगा' कहे पर कुछ आधार नहीं है, मन-वचन-काया की एकता नहीं है। इसलिए बोलने के अनुसार कार्य कैसे होगा? कार्य होता ही नहीं। कौनसी भूमिका से जा पाये वहाँ ? प्रश्नकर्ता : वहाँ जाना हो तो किस स्थिति में मनुष्य जा सके ? दादाश्री : वह वहाँ के जैसा हो जाये तब। चौथे आरे जैसा मनुष्य हो जाये, इस पाँचवे आरे के दुर्गुन चले जाये तब वहाँ जाये। कोई गाली दे तब भी मन में उसके लिए बुरा भाव नहीं आये तब वहाँ जाये। प्रश्रकर्ता : आम तौर पर यहाँ से सीधे मोक्ष में नहीं जा सकते। पहेले महाविदेह क्षेत्र में जाना बाद में मोक्ष में जाना, ऐसा कैसे हो सके ? वहाँ है मन-वचन-काया की एकता ! महाविदेह क्षेत्र में भी मनुष्य है। वे हमारे जैसे है, देहधारी ही है। वहाँ पर मनुष्यों के मनोभाव हमारे जैसे ही सभी। प्रश्नकर्ता : वहाँ आयुष्य लम्बा होता है, दादाजी ? दादाश्री : हाँ, आयुष्य लम्बा होता है। बहुत लम्बा होता है। बाकी हमारे जैसे मनुष्य है, हमारे जैसा व्यवहार है। लेकिन हमारे यहाँ चौथे आरे में जैसा व्यवहार था वैसा है। इस पाँचवे आरे के लोग अब तो जेब काटना सीख गये और आपस आपसमें सगे-संबंधियों में भी उल्टा बोलना सीख गये। वैसा व्यवहार वहाँ नहीं है। प्रश्नकर्ता : वहाँ पर इसके जैसा ही संसार है सब ? दादाश्री : हाँ, ऐसा ही सभी। वह भी कर्मभूमि, वहाँ भी 'मैं करता हूँ' ऐसी समझ होती है। अहंकार, क्रोध, मान, माया, लोभ भी सही। वहाँ दादाश्री: क्षेत्र का स्वभाव ऐसा है कि जिस आरे के लायक मनुष्य हो गये हो, वहाँ खींच जाये। यहाँ पर है तो चौथे आरे जैसे हो गये हो, यहाँ पर यह ज्ञान नहीं हो और अन्य लोग भी ऐसे हो, तो वे वहाँ खींच जाये और वहाँ जो पाँचवे आरे के समान हो गये हो, वे यहाँ पाँचवे आरे में आ जाये। ऐसा इस क्षेत्र का स्वभाव है। किसी को लाना-ले जाना नहीं होता।
SR No.009607
Book TitleVartaman Tirthankar Shri Simandhar Swami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2001
Total Pages25
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size314 KB
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