Book Title: Vartaman Tirthankar Shri Simandhar Swami
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Foundation

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Page 9
________________ वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी कुंदकुंदाचार्य से मेल मिलता था। अरिहंत अर्थात् यहाँ अस्तित्व होना चाहिए। जो निर्वाण हुए हो, वे तो सिद्ध कहलाये। निर्वाण होने के पश्चात उन्हें अरिहंत नहीं कहते। नौकार मंत्र कब फले ? इसलिए कहना पडा कि, 'अरिहंत को नमस्कार करो।' तब कहते है कि 'अरिहंत कहाँ है अभी ?' तब मैं ने कहा, 'इस सीमंधर स्वामी को नमस्कार कीजिए। सीमंधर स्वामी इस ब्रह्मांड में है। वे आज अरिहंत है। इसलिए उनको नमस्कार कीजिए ! अभी वे जीवित है। अरिहंत होने चाहिए, तब हमें फल मिले।' अर्थात् सारे ब्रह्मांड में जो लोग, 'अरिहंत जहाँ भी हो, उन्हें नमस्कार करता हूँ' ऐसा समझकर बोले तो उसका फल बहुत सुंदर मिलेगा। प्रश्नकर्ता : लेकिन वर्तमान में विहरमान बीस तीर्थंकर सही है न ? दादाश्री : हाँ, उन वर्तमान बीस को अरिहंत मानोगे तो तुम्हारा नौकार मंत्र फलेगा, नहीं तो नहीं फलेगा। अर्थात् यह सीमंधर स्वामी की भजना जरूरी है, तब मंत्र फलेगा। तब कुछ लोग इन बीस तीर्थंकरों को नहीं जानने की वजह से या तो 'उनसे हमारा क्या लेना-देना ?' ऐसा करके इन चौबीस तीर्थंकरों को ही 'ये अरिहंत है' ऐसा मानते है। आज वर्तमान होने चाहिए, तभी यह फल प्राप्त होगा। ऐसी तो कितनी सारी गलतियाँ होने से यह नुकशान हो रहा है। नौकार मंत्र बोलते समय साथ में सीमंधर स्वामी खयाल में रहने चाहिए, तब तुम्हारा नौकार मंत्र शुद्ध हुआ कहलाये। लोग मुझे कहते है कि आप सीमंधर स्वामी का क्यों बुलाते है ? चौबीस तीर्थंकरों का क्यों नहीं बुलाते ? मैं ने कहा, चौबीस तीर्थंकरों का तो बोलते ही है। लेकिन हम रीति के अनुसार बोलते है। ये सीमंधर स्वामी का अधिक बोलते है। वे वर्तमान तीर्थंकर कहलाते है और 'नमो अरिहंताणं' वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी उनको ही पहुँचता है। यह तो प्रकट-प्रत्यक्ष, साक्षात् ! प्रश्नकर्ता : सीमंधर स्वामी प्रकट कहलाते है ? दादाश्री : हाँ, वे प्रकट कहलाते है। प्रत्यक्ष, साक्षात् है। देहधारी है और अभी महाविदेह क्षेत्र में तीर्थंकर के रूप में विचरते है। प्रश्नकर्ता : सीमंधर स्वामी महाविदेह में है, तो वे हमारे लिए प्रकट किस तरह कहलाते है ? दादाश्री : कलकत्ते में सीमंधर स्वामी हो, उन्हें देखा नहीं हो तब भी प्रकट गिने जायेंगे, ऐसा यह भी है महाविदेह क्षेत्र का। प्रत्यक्ष-परोक्ष की स्तुति में फर्क ! प्रश्नकर्ता : हम महावीर भगवान की स्तुति करे, प्रार्थना करे और सीमंधर स्वामी की स्तुति करे, प्रार्थना करे तो इन दोनों की फलश्रुति में क्या फर्क पड़ेगा? दादाश्री : भगवान महावीर की स्तुति वे खुद सुनते ही नहीं, फिर भी सीमंधर स्वामी का नाम नहीं देता हो लेकिन महावीर भगवान का नाम देता हो तो अच्छा है। लेकिन महावीर भगवान का सुनेगा कौन ? वे खुद तो सिद्धगति में जा बैढे ! उनका यहाँ लेना-देना नहीं है। वह तो हम अपने आप रूपक बना बनाकर स्थापित करते रहते है। वे आज तीर्थंकर भी नहीं कहलाते। वे तो अब सिद्ध ही कहलाते है। यह सीमंधर स्वामी अकेले ही फल देंगे। प्रश्नकर्ता : अर्थात् जो फल मिलता है वह उनका ही, 'नमो अरिहंताणं' का ही फल मिलता है, ऐसा हुआ न ?'नमो सिद्धाणं'का कोई फल नहीं ? दादाश्री : दूसरा कुछ फल मिले नहीं। ये तो हम ऐसा तय कर ले

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