Book Title: Vartaman Tirthankar Shri Simandhar Swami
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Foundation

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Page 15
________________ वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी कहता हैं। कभी ही ऐसा चौदह लोक का नाथ प्रकट होता है। मैं खुद देखकर कहता हूँ, इसलिए काम बना लो। ये दर्शन तुरन्त ही पहुँचे ! ये सभी लोग सबेरे नींद से जागें तो भीड़ होगी न ? और शाम को तो निपट भीड़ ही होगी। इसलिए सुबह साढ़े चार से साढ़े छह तक तो ब्रह्ममूहुर्त कहलाता है। ऊंचे से ऊंचा मूहुर्त । उसमें जिसने ज्ञानी पुरुष को याद किया, तीर्थंकरो को याद किया, शासन देवी-देवताओं को याद किया, वह पहले स्वीकार हो जाये उन सभीको। क्योंकि बाद में मरीज बढ़े न! पहला मरीज आया फिर दूसरा आये। फिर भीड़ होने लगे न ! सात बजे से भीड़ होने लगे। फिर बारह बजे जबरदस्त भीड होगी। इसलिए पहला मरीज जा खडा रहा, उसे भगवान के फ्रेश दर्शन होंगे। 'दादा भगवान की साक्षी में सीमंधर स्वामी को नमस्कार करता हूँ' बोलते ही तुरन्त वहाँ सीमंधर स्वामी को पहुँच जाये। उस समय वहाँ कोई भीड़ नहीं होती। बाद में भीड़ में भगवान भी क्या करे ? इसलिए साढ़े चार से साढ़े छह तो अपूर्व काल कहलाता है। जिसकी जवानी हो, उसे तो यह छोडना नहीं चाहिए। प्रश्नकर्ता : आपने हमें सबेरे सीमंधर स्वामी को चालीस बार नमस्कार करने को कहा है, तो उस समय यहाँ सुबह हो और वहाँ के समय में डिफरन्स होगा न ? दादाश्री : ऐसा हमें देखने का नहीं। सबेरे कहने का तात्पर्य यह है कि अन्य कामधंधे पर जाने से पहले। धंधा नहीं हो तो किसी भी समय, दस बजे करो, बारह बजे करो। वहाँ जा सकते है, मगर सदेह नहीं ! प्रश्नकर्ता : सीमंधर स्वामी वहाँ है। आप तो प्रतिदिन दर्शन करने जाते है तो वह किस तरह ? उसकी हमें समझ दे। १६ वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी दादाश्री : वह हम जाते है लेकिन हम प्रतिदिन दर्शन करने नहीं जा सकते। हमें ज्ञानी पुरुष को यहाँ से (कंधे से) एक लाईटवाला उजाला निकले और निकलकर जहाँ तीर्थंकर हो वहाँ जाकर प्रश्र का समाधान कर के फिर वापस आ जाये। जब समझ में फर्क पड जाये, समझने में कुछ गलती हो तब पूछकर आये। बाकी हम आ-जा नहीं सकते, महाविदेह क्षेत्र ऐसा नहीं है। हमारा सीमंधर स्वामी के साथ तार जुड़ा हुआ है। हम सभी प्रश्न वहाँ पूछे और वे सभी उत्तर मिल जायें। अर्थात् आज तक हमें लाखो प्रश्न पूछे गये होंगे और उन सभी के हमने उत्तर दिये होंगे, पर यह सब स्वतंत्र नहीं, जवाब हमें सभी वहाँ से आये थे। सभी उत्तर ऐसे नहीं दिये जा सकते। जवाब देना ये कोई आसान बात है ? एक भी मनुष्य वह पाँच जवाब भी नहीं दे सकता। जवाब दे वहाँ तक तो वादविवाद शुरू हो जाये। यह तो एक्झेक्ट जवाब आये। इसलिए सीमंधर स्वामी को भजते है न! इस काल से भावि तीर्थंकर कोई हो ही नहीं सकता ! प्रश्नकर्ता : दादा, ये जो अभी सभी मनुष्य है, अभी दादा का ज्ञान लिया हुए महात्मा है, उनमें से कितने तीर्थंकर होंगे? अभी जितने महात्माओंने दादा का ज्ञान लिया है, जो पचास हजार होंगे। जितने महात्मा है. थोडे नजदीक के होंगे, थोडे दूर के होंगे, उनमें से कितने तीर्थंकर होंगे? दादाश्री: इसमें तीर्थंकर का खयाल ही नहीं। इसमें ऐसा है न, तीर्थंकर नहीं, सभी केवली होंगे। केवलज्ञानी होकर मोक्ष में जायेंगे सभी। प्रश्नकर्ता : लेकिन तीर्थंकर क्यों नहीं होंगे ? दादाश्री: तीर्थंकर नहीं। वह गोत्र बहत भारी गोत्र होता है। वह गोत्र तो कब बंधा हुआ होना चाहिए ? कि जब चौथे आरे में और तीसरे आरे में तीर्थंकरो के समय में बाँधा हो तो चले। अभी गोत्र बाँधे तो नहीं चलता। अर्थात् अभी नया गोत्र नहीं बाँध सकते। पुराना बाँधा हुआ हो तो


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