Book Title: Vardhamanchampoo
Author(s): Mulchand Shastri
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 15
________________ आभार प्रस्तुत वर्धमान-चम्पू काव्य में पं० मुलचन्द्र शास्त्री की परिपक्व प्रज्ञा एवं प्रौढ प्रतिभा का परिचय प्राप्त होता है । उन्होंने अपने काव्य के नायक भगवान् महावीर के जीवन-चरित्र को इतनी सजीवता के साथ चित्रित किया है कि उनकी मंजुल मुति प्रत्यक्ष के समान नेत्रपटल पर अंकित हो जाती है। यह चम्पु-बाल म नः माग ग मालावित है। इस काव्य में मानब-हृदय व रागात्मिका बत्ति के प्रवाधक भाव पद्य के माध्यम से और बाह्य जगत के चित्रण गद्य के द्वारा प्रकट किये गये हैं। यह मिश्रण एक नूतन चमत्कार का, अद्भुत कमनायता का एवं अतिशय रामणीयकता का सृजन करता है। पं० मूलचन्द्रजी की यह हादिक इच्छा था कि इस काव्य का प्रकाशन उनके जीवन काल में ही हो जाय, पर उनके निरन्तर गिरते हए स्वास्थ्य के कारण उनकी यह इच्छा पूर्ण नहीं हो सकी । उनको मृत्यु के बाद भो इस काव्य के प्रकाशन से जैम विद्या सस्थान का बड़ा सन्तोष है । यह उनका जीवन्त स्मृसिम्रन्थ है । इस काव्य के प्रकागन में पं० भवरलाल पाल्याका, जनदर्शनाचार्य और सुश्री प्रोति जैन का प्रमुख योग है । सस्कृत पाठ का यथावत् प्रस तक पहुचाना, हिन्दी अनुवाद का परिमाजित करना यार प्रूफ को पुरी सावधानी से तीन तीन बार पढ़ना साधारण कार्य नहीं है । इसे इन दाना ने किया है । पुस्तक का यथेष्ट रूप में मुद्रित करमा अजन्ता प्रस के अधिकारियों और मुद्रकों का काम रहा है । ये सभी धन्यवादाह हैं। इस पुस्तक के प्रकाशन से सम्बन्धित समस्त कार्य के पीछ डॉ० गोपीचन्द्र पाटनी और श्री ज्ञानचन्द्र विन्दुका की। जागरूक प्रेरणा है । सब ने अपना अपना काम निष्ठा और सजगता से किया है । संस्थान इनके प्रति ग्राभारी है। हम आशा है कि आधुनिक सस्कृत साहित्य की यह नवीनतम कृति विद्वानों, चिन्तका और मनीषियों द्वारा उचित समादर को प्राप्त करेंगी। (प्रो०) प्रवीणचन्द्र जैन निदेशक

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