Book Title: Vardhamanchampoo
Author(s): Mulchand Shastri
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 14
________________ १३ बड्ढमाणु', अर्थात् लौकिक एवं पारलौकिक समृद्धि के प्रदायक तीर्थ का प्रवर्तक कहकर वर्धमान की स्तुति की है। - वर्धमान महावीर के लिए Globat History of Philosophy के सुप्रसिद्ध दार्शनिक लेखक john C Poll की निम्नलिखित पंक्तियां पठनीय हैं "Mahavira stands like a spiritual giant by comparison with most of the old Testament Prophets and his example as well his way of Victory over everything that finds us to the finite may yet be fruitful in all the world. When it cane 10 the problems of conduct and knowledge, he did got stop with a Socratic Ignorance', He found an answer to Socratic questioning and left a light that will never be extinguished" अर्थात् अधिकांश ज्ञात प्राचीन आध्यात्मिक सन्तों में महावीर का स्थान प्राध्यात्मिक महापुरुष के रूप में शीर्ष पर है और उनका उदाहरण एवं हर प्रकार के भांतिक बन्धन पर विजय प्राप्त करने हेतु उनके द्वारा उपदिष्ट मार्ग आज भी संसार में फलप्रद हो सकते हैं | चारित्र एवं ज्ञान की समस्याओं पर जब उन्होंने चिन्तन प्रारम्भ किया तो वे सुकरात के 'अज्ञेयवाद' पर रुके नहीं । उन्होंने सुकरात के प्रश्नों का समाधान प्राप्त कर लिया और वे एक ऐसी ज्योति छोड़ गये जो कभी बुझेगी नहीं । उन्हीं वर्धमान के चरित्र के प्रस्तुतीकरण से रचनाकार धन्य हो उठा है । P सुविज्ञ पाठकगण इन रचना के पठन से साहित्यिक, ललित काव्य का रसास्वादन करें और वर्धमान का यह सार्वकालिक सर्वमांगलिक ज्योति हमें सन्मार्ग दिखा सके, हम उस पथ के राहो बनकर सांसारिक त्रासदी से त्राण पा सकें इस पवित्र भावना के साथ पंडितजी की इस कृति का प्रकाशित कर रहा है जैन विद्या संस्थान | इसके प्रकाशन में संलग्न हमारे सभी सहयोगी धन्यवाद के पात्र हैं । डॉ. गंगाधर भट्ट, निदेशक, रायबहादुर चम्पालाल प्राच्य शोध संस्थान, जयपुर के प्रति विशेष रूप से आभार प्रगट करते हैं जिन्होंने प्रस्तावना लिखकर हमें अनुगृहीत किया है। पुस्तक के मुद्रण के लिए अजन्ता प्रिण्टर्स, जयपुर भी धन्यवादाई है । जयपुर श्रेयांसनाथ निर्वाण दिवस श्रावण पूर्णिमा, वी. नि २५१३ ६-८-८७ ज्ञानचन्द्र विन्दुका संयोजक जनविद्या संस्थान समिति श्रीमहावीरजी

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