Book Title: Uttaradhyayani Part_3
Author(s): Bhadrabahuswami, Shantisuri, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

View full book text
Previous | Next

Page 386
________________ उत्तराध्य. जीवाजीव विभक्ति. बृहद्वृत्तिः ॥७०३॥ तु, उक्कोसेण वियाहियं । वंतराणं जहन्नेणं, दसवाससहस्सिया ॥ २१८ ॥ पलिओवममेगं तु, वासलक्खेण साहियं । पलिओवमहभागो, जोइसेसु जहन्निया ॥ २१९ ॥ दो चेव सागराई, उक्कोसेणं वियाहिया । सोहम्ममि जहन्नेणं, एगं च पलिओवमं ॥२२०॥ सागरा साहिया दुन्नि, उक्कोसेण वियाहिया। ईसाणंमि जहन्नेणं, साहियं पलिओवमं ॥ २११॥ सागराणि य सत्तेव, उक्कोसेण ठिई भवे । सणंकुमारे जहन्नेणं, दुन्नि ऊ सागरोवमा ॥ २२२ ॥ सागरा साहिया सत्त, उक्कोसेण वियाहिया । माहिदंमि जहन्नणं, साहिया दुन्नि सागरा ॥ २२३॥ दस चेव सागराई, उक्कोसेण वियाहिया । बंभलोए जहन्नेणं, सत्त उ सागरोवमा ॥ २२४ ॥ चउद्दस उ सागराइं, उक्कोसेण वियाहिया। लंतगंमि जहन्नेणं, दस उ सागरोवमा ॥ २२५॥ ४|सत्तरस सागराइं, उक्कोसेण वियाहिया। महामुक्के जहन्नेणं, चउद्दस सागरोवमा ॥ २२६ ॥ अट्ठारससा गराई, उक्कोसेण वियाहिया। सहस्सारे जहन्नेणं, सत्तरससागरोवमा ॥ २२७॥ सागरा अउणवीसं तु, उक्कोसेण ठिई भवे । आणयंमि जहन्नेणं, अट्ठारस सागरोवमा ॥२२८॥ वीसंतु सागराइंतु, उक्कोसेण ठिई भवे । पाणयंमि जहन्नेणं, सागरा अउणवीसई ॥२२९ ॥ सागरा इकवीसंतु, उक्कोसेण ठिई भवे । आरणंमि जहन्नेणं, वीसई सागरोवमा ।। २३० ॥ बावीससागराइं, उक्कोसेण ठिई भवे । अच्चुयंमि जहन्नेणं, सागरा इक्कवीसई ॥ २३१॥ तेवीससागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । पढमंमि जहन्नेणं, बावीस सागरोवमा ॥ २३२॥ चउवीससागराइं, उक्कोसेण ठिई भवे । बिइयंमि जहन्नेणं, तेवीसं सागरोवमा ॥ २३३ ॥पणवीससागरा ऊ, ॥७०३॥ For Private Personal Use Only Jain Education Inter jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408