Book Title: Uttaradhyayana Sutra
Author(s): Sudharmaswami, Girdharlal
Publisher: ZZZ Unknown
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उत्तराध्ययनट (२०२)
रसवा
जीवकनेसासका जेया । नान्न० बेठिकरे 90 दिनोस०सम्पत सम्पकरहितने विद्यावै२७ ना०ज्ञान
ना० ज्ञानदिनांन० नवचारिख नागु० गुल
अस्विनागुण रक्षितने नवनवी मो० कर्मचार
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मनथी मोक्ष कर्म श्रीलका लातेनें
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एं। दंसणे नश्य सम्मतवरिताई। गवं उच्च सम्म २० नासशिरसनाएं | नाणेल दियान दोश्वर गुलिस्सन ( दिवेशवेश्कारे सम्पनोयाचारक देवे नि०नि तिर निर्मनी फनऊ स्पेनही उजेनिन धर्म शमीने दयाबुद्धार्यादिक | नक्वननेंदिबेकार दितॐ नि०साक्यादिकप कांदेदरहित र अपरंमीना मतमत उपचारखेचे तेहने क है उमरोमनुष्यपर निमोक्षनशी २० राजीनामने विमोचनी साधना ने एरवी कांबार तरदेवीनेंनटी एवमतिदृष्टिबैलेला शोसफऊन सादिकगुणांनी दी चिमोरको नामो रक्रसनिज्ञाएं ३० निसकिय निकुंखिया निविता मूढदिनीय वधिरीकरणे पवनोपथिव मनविषेधिरकर वो वयसाथ सादीने दशदर्शनादार दाखिलीमासय १० वादिरे च०स दमको धादिकथीम में ततिम से० सेसा प्र०क्षा यरहितो र्मिकनेंदितो करवो७५० धर्मा हिने चारिवना पत्रकारकतेने सा० याति वारे वेदोपस्थापनी जश्नेत पकरते परिवार रमाहिम को दिक्पसमातीनेसेज तपसमकषाय कथादिकट्वेकरीसितनाय सामायिकत्वारि १० इदो पहिलो भबीबीजेोकख विश्रवाखरीनो बाजेते सदन संपरायवारिचोथो तथाक्ष्य कीथाले क्लपनावणे ६ ३९ | सामापरमं वेदोवान वेदीयां परिहारविसद्दियं समेत संपरा ३२॥ अक्सा कषायवा के इंतेदनमा चार पायरहितस्थादात वाचा दोष दिवेारेने देत पकड़े *म०सायने जेवो तीर्थकस्वाराजकेलीने एपचारिकर्म तीर्थकर तदेवकारे पिंतर वो तेरो करिजेते नोने समुदायस जीवने पोते ते नोरिनारे नोनामो १३ तुकयो aafar टीम दरकायं यथाज्ञात मस्स जिला एयं चयस्त्रिकरे ॥ चारित्रदोदितोयऽ विदो हो । बादिरोशित रोता बा अत्यंत नाझोनेकरीजाजी ०दर्शन करी १०] करिवेकरी० [२०] ककर्मक्ष्यक कारेको ३४ लेभाजी वादिकनाव जीवादिकसईदे कर्मन धे कथकी ६५ हिरो बद्दिदो कुत्तो | एवम झेतरोत वो ३४ | नाणे एजाईनावं | दसलेल्य सद्ददे | चरित्रेनगिएदाइ तवेल परिसकइ ३५ ख सुनने की संस्तरेनेदसंनमे सर्वण | १० रकम करेते ममोदना हिन्दी मुर्मास्वामी पते करेगेद्वनिममें श्री महावीरदेव सम कर्मत करीत १२नेदेकरी करवाने अ गवेषण हारसी मोक्षजाई
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००
०१ कारे १०कलो
पावीने
कतिमार्गगतिमध्येना
विशाम्माई | संजमेल तवेलय | सच्चरकप्प दीप | पक्वमेतिमदेसिलो तिमि | ३६॥ इतिश्री मोरगईनाम
सम्पतवतेन
तीनजनाचारिय
ससम्पक्तायने चरित्र
वा
बा
॥१०२॥

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