Book Title: Uttaradhyayana Sutra
Author(s): Sudharmaswami, Girdharlal
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 202
________________ छाया दिवे भलनोज कुण कट्वे सण्ग्६ १०१ना कीर्तिमादिकनीवासी २० वर्णपरमसुरादिरसस्वाद | रस पो०१६लनो दिवे पर्यायोक्षण करेले ए०एमएकता अधकार नद्यो त रत्नादि कनो तलव हमसूनीता रिफा०छक्क नपर‍ इश्तेएक्लो भलक दादाथार विरसगंधू फासा योग्गला एंड लरक णं १२ गते श्रु पसं०संप्पा एक बेविल | संध्णावर एकमा मिले ते संजोग विष्तेषां पर्यायनो दिवेदननोस्वरूप क देले जी०जीव | कु०पा०० सं०संबनि लो इत्यादिसं० संस्थान चवर्णादिक नावजुदाई विभाग जीव बं० कर्मनी बंधनं निर्जरामोन्स संरकासंधालमेवया संजोगाय विभागाय पजवाएं उरक १३ जीवा जीवाय बंधोय पुन्न पादासवोतदा संव |र्वकर्मथकीका सब्जेए०एवेक्तिकते | २४ त० सावाना० नवोतमोक तसाचान० नवपदार्थ १५ नावनो स०सम्पततं० तेविष्क योतिर्थकरे सन्तानाव नोकरीस नोदी धोउपदेश ते देदे तेजी बनें रोनिका रामो को संते एत दिया नवा २४ त दिया भावात सझावेज एस नावेल सद्ददं तस्स सम्म तंतंविया दियं १५ ||दिवसापरूनानाकारी नितीर्थंकरनानवनातांतली बनी विजेते जिरुविग्रेगबारे पंगादिकश्रुतिज्ञामने जोल पलेक हवे | निकदेवेनिज्ञातिस्मरणादिक रुचि उपनेते याज्ञारुविसु सिद्धांत ताजेतवनीतेअभिगमरु विदनिसगजी अनय सहित विस्तारे सिद्धांतसांतजीने दारुवित ज्ञानेकरीस्वयमेववनीरूचि नीरूविजेते क्रुएक्वनसित बनी रुचिउपजेते विस्तारस विकण्जैनहियाक ताजेतवनीरू विपजैनेशिया नोविस्ता नेते निसर्गरु विश्रुतो उपदेश न मांगने लगी दिंडनिमली मांदिविस्तरे नि० सं०चीजो को एककदा यह मिथ्या लयो जेनली सरजना बीते दनेतल (रकव्हे | सामजनितलनी रुचि पडे ते उपदेतिमते ने सिद्धांत नो एकक्वन विस्तरेतेोकरीजे नीरु विक पजैवे संक्षेपरुदितधर्म वारिधर्मपरिजेनेरुकता तिसग्गु एसइ प्राणा रुइत्र बीयरुमेव अभिगमविचाररुई किरिया संरके धम्म रु २६ तेधर्मरुचिरणारा भूयखे नोजाएगे एट्वेज्ञा जी० जीवाजीव सम्परना उपदेश दिनाजाति रोचेसमास जोब्जे जिन्नीतरागेदि के चक्मारमश्रीक्षेत्री काज नेकरी दि० जांएपाबेजे ७०पा० सारादिकज्ञांने करी४० देते नि०निस सज्ञांने करीदी गभान्जी श्री नावधी ४षकारे सण सभासद लेजीवादिकपदार्थ याश्रवसं०संवर१षनवपदार्थ र्गरुचिर वादिकभाव देस०परना उपदेश दिनाज्ञाने करी साहिगया जी काजीवायन्नशवेव सदसवसंव रोया रोए अनि सग्गो | ११ | जो जिलादि भावे । चद्दिहिं सदा इमयमेव । | स्वयमेव एमए वीतरागे नेदी बाजी नावजी ७० उपदेश दीयेश के जो०ने को एक वन स्थने उपदेसे देते। उपदेवारुचि ||दिक पदार्थतेनछन् या विपरीत मना०जोशी कादिक पदार्थ १० पर उपदेशेस सर्दहैजीकादिक वाजि० जिनने उपदेशेस इम | सना० जालवी एमे अतुल द्वियं नहीं सनिसग्गरु इत्तिना यत्र १ एए वे मावे नवहे जोपरे सद्ददनमा जिले एव वरु इत्रिनाय सण्तेनि०निसर्गरुचि उत्तरायनेट ११ सध्या रज्जयां (१०१) ॥१०१॥

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