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उपसंहारात्मक प्रकरण में उत्तराध्ययनसूत्र में प्रतिपादित सिद्धान्तों की वर्तमान परिप्रेक्ष्य प्रस्तुतता दिखाने का प्रशंसनीय कार्य किया है ।
में
हिंदी में लिखा हुआ यह ग्रंथ दर्शन क्षेत्र तत्रापि जैन दर्शन साहित्य के लिए एक अमूल्य योगदान है । यह ग्रंथ विद्वत्भोग्य तो है ही, साथ जैन दर्शन के अन्य जिज्ञासुओं के लिए भी उपकारक सिद्ध होगा । इस ग्रंथ की भाषा सरल और सुविशद है । इस ग्रन्थ के प्रकाशन के लिए ग्रन्थ कर्त्री और प्रकाशक दोनों अभिनन्दनार्ह है । साध्वी श्री विनीत प्रज्ञाजी के द्वारा भविष्य में इसी प्रकार शोध कार्य एवं ग्रन्थलेखन-कार्य संपन्न होता रहे ऐसी हार्दिक कामना प्रकट करता हूं ।
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प्रो. डॉ. यज्ञेश्वर सदाशिव शास्त्री
अध्यक्ष, तत्त्वज्ञान विभाग,
गुजरात युनिवर्सिटी,
अहमदाबाद - 1.
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