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प्रकाशकीय
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उत्तराध्ययनसूत्र जिनवाणी का उत्कृष्ट प्रतीक है । इसमें निहित हैं जैन शासन के सर्वोत्तम सिद्धांत, उनके स्वरूप, प्रकार एवं विवेचन । स्व पर का निर्धारण, जीवाजीव की विभक्ति का आधार सम्यक् चारित्र, सम्यग् ज्ञान, सम्यग् दर्शन का गहन अध्ययन । जीव का निर्माण एवं निर्वाण । विनय, विवेक, वाणी व्यवहार की समीचीन अभिव्यक्ति ।
हर एक लेखक की अपनी दृष्टि होती है किसी भी ग्रन्थ के बहुआयामी पक्ष के प्रस्तुतिकरण की । श्रद्धेय प्रज्ञावान, पूजनीय साध्वी हेमप्रभा श्री जी म. सा. की सुशिष्या मनीषी साध्वी विनीतप्रज्ञा श्री जी ने उत्तराध्ययनसूत्र के प्रति अपना दृष्टिकोण दर्शित करते हुए अपना दायित्त्व प्रशंसनीय ढंग से बखूबी निभाया है ।
श्री चन्द्रप्रभु महाराज जैन जुना मन्दिर ट्रस्ट अपने द्वारा इस मूल ग्रन्थ के प्रकाशन में बेहद खुशी ज्ञापित करता है । श्रुतदेवी और शासन देव से प्रार्थना करता है कि भविष्य में भी इसी तरह वे अपनी गहन अनुभूति और विशद ज्ञान से समाज को आलोकित करती रहें ।
श्री चन्द्रप्रभु महाराज जुना जैन मन्दिर ट्रस्ट, 345, मिन्ट स्ट्रीट, चेन्नई – 600079.
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मोहनचन्द ढढा अध्यक्ष
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ज्ञान जैन मानद मंत्री
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