Book Title: Updeshpad Mahagranth Part 01
Author(s): Pratapvijay
Publisher: Muktikamal Jain Mohan Mala
View full book text
________________
याओ रेहति व धम्मियजणकित्तीओ सग्गचलियाओ॥७॥ तं च अणेगच्छेरयसारं पालेइ विउलबलकलिओ। इक्खा
गुवंसवसहो बंभो नामेण नरनाहो ॥ ८॥ अइपीयरेहि अइदीहरेहि कत्थवि अपत्ततोडेहिं । जस्स गुणेहिं व गुणेहि दाहामिया सइ थिरा लच्छी ॥९॥ सामेण य दंडेण य भेएण उवप्पयाणकरणेण । अवसरपत्तेण जसो जेण पवित्थारिओ
दरं ॥१०॥ तस्सुम्भडरिजभडकोडिघडणउभडियपुरिसकारस्स । बहुपणयरयणखाणी चुलणीनामा य आसि पिया ॥ ११ ॥ अभविंसु तस्स मित्ता निफित्तिममित्तिभावसंजुत्ता । चउरो चउराणणचउरवुद्धिकलिया महीपाला ॥ १२॥ कासीणाहो कडओ कणेरुदत्तो य गयउराहिवई । कोसलसामी दीहो चंपापहू पुप्फचूलोत्ति ॥ १३ ॥ निरवज्जरज्जचिंताधुरंधरो तह धणू महामच्चो । पुत्तो तस्स वर धणू धणियं कलिओ पिओगुणेहिं ॥ १४ ॥ ते पंचवि रायाणो बंभाईया पल्टपणयवसा। विरहं अणिच्छमाणा परोप्परं एवमभणिंसु॥१५॥ पत्तेयं पत्तेयं पंचसु रजेसु वरिसमेतकं नियपरिचारजुएहिं जुगवं चिय संबसेययं ॥१६॥वोलीणम्मि य काले केवइए दरमुण्णयमणाणं वहपुण्णपावणिज भोगसुहंभुंजमाणाणं॥१७॥अह अन्नया कयाई रयणीए मज्झभागसमयम्मि। चुलणी अइफारफले चउदस सुमिणे नियच्छेइ ॥१८॥जहा;|"कुंजरवसहसीहअइसेया-दामसोमरविझयअभिसेया। कुंभंभोरुहसरजलनिहिणो-दिवविमाणरयणगणसिहिणो" ॥१॥ | तक्वणमेव पवुद्धा सा मुद्धा कहइ वंभनरवइणो । जह सामि! संपइ मए चउदस सुमिणा इमे दिट्टा ॥१९॥राया रंजिय हियो धाराहयनीवकुसुमसमपुलओ । फुलिंदीवरनयणो भणइ इमं देवि ! ते होही ॥२०॥ अम्ह कुलकप्प रुक्सो कुलज्झओ कुलपईवसंकासो। महिमंडलमउलमणी गुणरयणखणी सुपुत्तो त्ति ॥ २१ ॥ साहियनवमासंते संतेसु
*555555555575

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 1008