Book Title: Updeshpad Mahagranth Part 01
Author(s): Pratapvijay
Publisher: Muktikamal Jain Mohan Mala
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जिएहिं परिपूरियवित
श्रीउपदे
तिलतुसमेत्तमपलायमि जाओ स सिधाभायफुसणवडि
शपदे
॥८॥
लगजिएहिं परिपूरियदियंतं ॥ ११६ ॥ सो दहण कुमार संमुहामितं सरोससिग्धगई । चलिओऽभिमुहं पञ्चक्खमेव नजइ
१चोल्लकोहै जमो भीमो ॥११७॥ तक्केलिकोउगेणं तिलतुसमेत्तमपलायमाणेणं । पक्खित्तमुत्तरीयं काऊणं मंडलागारं ॥११८॥
दारणम् - संमुहमिमस्स तेणावि तक्खणा चेव गहियमुक्खित्तं । सुंडादंडेण नहंगणम्मि जाओ स रोसंधो॥ ११९ ॥ जा सो रणगइंदो गहियं दक्खत्तणेण छलिऊण । तं कुमरेण अक्खुद्धो तो तं कीलाविओ लग्गो॥ १२० ॥ सुंडग्गभायपुसणवडियवेगस्स तस्स वणकरिणो । अणुमग्गगामिणो खणमह कुमरो धाविओ पुरओ ॥ १२१ ॥ ताजा सो खलियकमो जाओ चलिऊण पच्छिमे भागे। मुहिपहारेण हओ विमुक्कहकारवरउई ॥ १२२ ॥ परिवत्तइ जा तत्तो अवराहुत्तं कमेइ । ता इयरो। पायंतरालभागेण करयलामुसियतलभागो ॥ १२३ ॥ एवं कुलालचक्केण भामिओ जा समं परं पत्तो । तत्तो थंभियतद्देसचारिमयजुहमइमहुरं ॥ १२४ ॥ लग्गो कागलिगीएण गाइउं मुफसेसवावारो । कुमरो ताव करिंदो आयण्णइ तडुवियकण्णो ॥ १२५ ॥ किंचि अपेच्छंतो तह थिरविहियकरो निरुद्धकमपसरो । चित्तलिहिउब जाओ खणेण
सो वारणाहिवई ॥ १२६ ॥ दसणग्गलग्गपयपंकएण पविमुक्कसबतासेण । पिट्ठिपएसे कुमरेण सो तओ सुदढमारूढो | ॥ १२७ ॥ पडिपुन्नकोउगो अह झणियं सणियं समुत्तरित्ताण । लग्गो गंतुं पडिपहपरायणो मूढदिसिचके ॥ १२८॥ 5 तत्तो विसंठुलगई परिभमंतो नईए एगाए । तद्देसट्ठियगिरिणो कुहराओ नीहरंतीए ॥ १२९ ॥ तडसंठियं पुराणं पडियगिह खंडभित्तिमित्तेण । उवलक्खिजंतं नगर मेगमह पासई कुमारो ॥ १३० ॥ तद्दसणम्मि संजायकोउहल्लो निरि
क 'भरतुद्धो।

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