Book Title: Updeshpad Mahagranth Part 01
Author(s): Pratapvijay
Publisher: Muktikamal Jain Mohan Mala
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वा । कजो जो अणज्जाओ इमाउ अणवद्वियमणाओ ॥ १०२॥ रजति अरसेसुवि णियमणचवलत्तणेण एयाओ। 1. अणिमित्तं चिय रत्तेसु झत्ति पावंति य विरत्तिं ॥ १०३ ॥ खणरत्ताणं कूराण चेव अवसाणविहियतिमिराण । संझाण।
व रामाणे वसम्मि को कुसलभुवहइ? ॥ १०४ ॥ तम्हा चयसु विसायं जं धीरच्चिय तरंति विसमदसं । इयरे गहिरजले ४ाव अतारगा झत्ति वुटुंति ॥ १०५॥ लद्धाभिप्पाओ कुलवइस्स सो तत्थ अच्छिउं लग्गो । पत्तो वासारत्तो जलवा
हाउलियगयणयलो॥ १०६॥ नवनीलियवत्थेहिं व सवत्थ समुत्थिया तिणेहि मही। विरहिजणुम्माहेहिं व फुरियं तह
इंदगोवेहिं ॥ १०७॥ सुमुणीण माणसाणि व धवलाउ वियंभिया वलायाओ। सुयणाण संगमेण व नियट्टदाहो जणो 3/जाओ ॥ १०८ ॥ उज्जोइयभुवणयला पत्ता चिय नियदूरतिमिरभरा । धम्मियजणधम्मकहर झत्ति विज्जोइया विजूर |॥ १०९ ॥ अइगहिरघणारवसवणखुहियवल्लहजणाणुरागाओ। नियठाणाभिमुहाओ पंथियमालाउ चलियाओ॥११०॥ | सो कुलबइणा धणुवेयमाइयाओ कलाउ सयलाओ। अणहिजियपुवाओ सम्ममहिज्जाविओ कुमरो ॥ १११॥ पत्तो य सरयकालो परिपंडुरजलयवलयकलियनहो । उप्फुल्लकमलवणलोलहंसकलरावरमणिज्जो ॥११२॥ कइयाइ कंदफलजलगयेसगे तावसे अणुसरंतो। डझंतो कुलवइणा कुऊहला तरलिओ संतो॥ ११३ ॥ सो रणपरिसरम्मी आलोइंतो वणाई रम्माई । अंजणगिरिव तुंगं मायंगमहो पलोएइ ॥ ११४॥ थिरथोरकरं सियदसणकोडिमोडिज्जमाणवणसंड। निग्झरझरतमयजलनिन्भरलोलालिपरिकिपणं ॥ ११५॥ सत्तंगपइहाणं कुंभत्थलजियनभत्थलाभोयं । पलयघणगहिरग
1 पुन 'रणपरिसपरिसरम्मि आभोईतो' इति पाठः ।
ROSHHOLOSLUSHSAS PROCHES

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