Book Title: Updeshpad Mahagranth Part 01
Author(s): Pratapvijay
Publisher: Muktikamal Jain Mohan Mala
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कए जे जे असमाणजाइणो जीवा । कोइलकायाईया विसरिसआयारकरणरया ॥ ३८ ॥ अंतेउरस्स अंते गयाइ तीए य ते पदंसेड़ । भणड़ य सकोववयणो अम्ब! निगिण्हामि अहमेए ॥ ३९ ॥ अन्नोच्चिय जो मज्झं रज्जेऽणायारसेवणं काही । दूरं निगिव्हियवो निरवेक्खमणेण सो सद्यो ॥ ४० ॥ एवं अणेगवारे विणिगिण्हतं तहा पभासंतं । दट्ठूण वंभदत्तं दीहो चुलणिं समुल्लवइ ॥ ४१ ॥ नेयं परिणामसुहं जं जंपइ एस तुज्झ किल पुत्तो । सा भणइ बालभावो इत्थवर - ज्झइ न सम्भावो ॥ ४२ ॥ मुद्धे ! न अन्नहेयं आरूढो जोधणं इमो कुमरो । मुज्झं तुज्झ य मरणाय होहिही भणइ इय दीहो ॥ ४३ ॥ तो मारिज्जउ एसो केणावि अलक्खिपणुवाएण । मइ साहीणे भद्दे अन्ने होहिंति तुह पुत्ता ॥ ४४ ॥ | रइरागपरवसाए इहपरभवकज्जवंझचित्ताए । पडिवन्नं चुलणीए धिरत्थु इत्थीण चरियाई ॥ ४५ ॥ जं सवलक्खणधरे | लायण्णुक रिस निजिय कुसुमसरे । सधाविणयविरहिए नियपुत्ते ववसिया एवं ॥ ४६ ॥ वरिया य तेहिं तत्तो तस्स कए | भूमिप सुया एगा । पउणीकयं च सघं विवाहपाउग्गमुत्रगरणं ॥ ४७ ॥ थंभसयन्निविट्ठ अइगूढपवेसनिग्गमदुवारं । कारावियं जउहरं वासनिमित्तं कुमारस्स ॥ ४८ ॥ णाओ एस वइयरो धणुणा तो रज्जकज्जकुसलेण । भणिओ य दीहराया एस सुओ वरघणू मज्झ ॥ ४९ ॥ संपत्तजोवणभरो निवाहसहो य रज्जकज्जाण । वणगमणावसरो मे अणुमण्णसु जामि जं तत्थ ॥ ५० ॥ तो कइयवेण भणिओ दीहेण अमच्च ! एयनयरठिओ । दाणाइणा पहाणं करेसु परलोयणुट्टाणं ॥ ५१ ॥ पडिवजिऊण एयं पुरपरिसरवा हिगंगतीरम्मि । काराविया विसाला एगा धणुणा पत्रा पवरा ॥ ५२ ॥ परिवायगाण तह भिक्खुगाण णाणाविहाण पहियाण । भद्गइंदोघ तहि दाणं दाडं पयट्टो सो ॥ ५३ ॥ सम्माणदाणगहि
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