Book Title: Tulsi Prajna 2001 07
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 6
________________ (नव वर्ष के उपलक्ष्य में आचार्यश्री महाप्रज्ञ का विश्व के नाम सन्देश) [हिंसा समाधान नहीं है नया वर्ष और नया दिन | हम स्थूल दृष्टि से विचार करते है तो स्थूल गणना होती है। स्थूल दृष्टि से वर्ष को नया मानते हैं, सूक्ष्म दृष्टि से देखें तो वास्तव में प्रतिपल नया होता है। एक क्षण बीतता है, दूसरा क्षण आता है, वह अपने आप में पूरी तरह नया होता है। बीता हुआ एक मिनिट आने वाले मिनिट से भिन्न होता है। स्थूल दृष्टि से विचार करते है तो नया वर्ष, नया दिन प्रतीत होता है। नए की प्रतीक्षा भी रहती है, नए के प्रति उत्साह भी होता है, नए का स्वागत भी होता है। किन्तु वह कोरा नया ही नहीं आता। वह अपने साथ बहुत सारा अतीत का संग्रह, अतीत का भार लेकर आता है। हमें विवेचन और विश्लेषण करना है कि नया दिन अतीत से क्या-क्या लेकर आया है? कितना तो वह उपयोगी तथ्यों को, स्मृतियों को लेकर आया है और कितना अनावश्यक कबाड़खाने को लेकर आया है ? नए वर्ष-नए दिन के स्वागत में यदि यह विश्लेषण नहीं किया गया तो नए का कितना महत्त्व हो सकेगा? नया वर्ष-नया दिन, केवल मानव के लिए ही नहीं, समूचे जगत् के लिए, प्राणी मात्र के लिए कल्याणकारी हो, यह कामना है। आज जो नया दिन आ रहा है, उसकी पृष्ठभूमि में कुछ घटनाएं भय पैदा करने वाली है। आकाश साफ नहीं है, बादल साफ नहीं है। संहार और युद्ध के बादल चारों ओर मंडरा रहे हैं। चारों ओर आशंका है। कब क्या हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता । हमारी भावना है - युद्ध न हो, आतंक न हो। लेकिन एक बड़ी कठिनाई है - युद्ध और आतंक अपने आप नहीं आते। कुछ लोग इन्हें आमंत्रित करते है । कुछ हिंसा प्रिय लोग हिंसा की प्रवृत्ति को बढ़ावा देते हैं और यह प्रवृत्ति युद्ध को आमंत्रित करती है। तुलसी प्रज्ञा जुलाई – दिसम्बर, 2001 - 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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