Book Title: Tulsi Prajna 2001 07
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 4
________________ विषय अनेकान्त सिद्धान्त और व्यवहार राष्ट्रीय परिसंवाद में प्रस्तुत शोध-पत्र 1-3 जनवरी, 2001, गंगाशहर (बीकानेर) अप्रैल अनुक्रमणिका / Contents लेखक 1. नये वर्ष पर विश्व के नाम संदेश 2. अनेकान्त की सार्थक प्रस्तुति 3. अनेकान्तवाद 4. भारतीय दार्शनिक चिन्तन में अनेकांत 5. क्या वेदान्त को अनेकान्त किसी अंश में स्वीकार्य हो सकता है? 6. अनेकान्तवाद - एक विवेचन 7. भगवान महावीर और अनेकान्तवाद 8. अनेकान्तवाद और उसके प्रयोग 9. पारिवारिक शान्ति और अनेकान्त 10. महावीर का अनेकान्त: सामाजिक विमर्श 11. वैचारिक सहिष्णुता का सिद्धान्त : अनेकान्त 12. वर्तमान समस्याओं के समाधान में अनेकान्त की उपयोगिता 13. शान्त-सहवास में अनेकान्त की भूमिका 14. अनेकान्त का सामाजिक पक्ष 15. अनेकान्त की प्रासंगिकता 14. महावीर का अनेकांत : कुछ पक्ष, कुछ प्रश्न 15. लोकार्पण : आवश्यक नियुक्ति (भाग - 1) का Jain Education International आचार्य महाप्रज्ञ मुमुक्षु शान्ता जैन आचार्य महाप्रज्ञ प्रो. सागरमल जैन डॉ. दयानन्द भार्गव प्रो. तुषार कान्ति सरकार डॉ. अशोक कुमार जैन मोहनसिंह भण्डारी डॉ. बच्छराज दूगड़ शुभू पटवा डॉ. सुदीप जैन डॉ. हेमलता बोलिया साध्वी आरोग्यश्री श्रीमती रंजना जैन सिद्धेश्वर भट्ट प्रो. गोपाल भारद्वाज For Private & Personal Use Only पृष्ठ 1 5 8 15 32 37 39 48 56 65 71 77 83 88 133 93 96 102 www.jainelibrary.org

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