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२. पंचास्तिकाय-गा. १८ (२४२ सं. सू); गा. ५३ (२.३७ सं. सू.) ३. प्रवचनसार-१.४६, १.१८, १.८४, १.२९ आदि ।
सन्मतिसूत्र-१.१८, १.३६-४०, १.२०, २.३० आदि
डा० उपाध्ये का मत है, कि "युगपद वाद" की स्थापना में भी सिद्धसेन कुन्दकुन्द से प्रभावित हैं।' पूज्यपाद की रचनाएं :
पूज्यपाद की प्रमुख तीन रचनाएं हैं । सर्वार्थसिद्धी में उन्होंने कुन्दकुन्द कृत बारस-अनुप्रेक्षा से एक ही क्रम में और उसी प्रसंग में पांच गाथाएं उद्धत की हैं (गाथा संख्या २५-२९)। इन गाथाओं में संसार अनुप्रेक्षा के अन्तर्गत द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव एवं भाव-परिर्वतन की बात कही गयी है।
___कुन्दकुन्द के मोक्षपाहुड और पूज्यपाद के समाधिशतक के पद्यों में समानता स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है। मोक्षपाहुड की गाथाएं ४, ५, ८, ९, १०, २९, ३१ एवं ७८ क्रमशः समाधिशतक के श्लोक ४, ५, ७, १०, ११, १८, ७८, एवं १०२ के रूप में उपस्थित हुई हैं। इसे प्राकृत गाथाओं का संस्कृत रूपान्तरण ही कहा जायेगा । यथामोक्षपाहुड-जं मया दिस्सदे रूवं तं ण जाणादि सव्वहा ।
जाणगं दिस्सदे ण तं तम्हा जेंपेमि केण हं ॥२९॥ समाधि-यन्मया दृश्यते रूपं तत्र जानाति सर्वथा।
जानन्न दृश्यते रूपं ततः केन ब्रवीम्यहम् ॥१८॥
पूज्यपाद की तीसरी रचना इष्टोपदेश और मोक्षपाहुड में भी पर्याप्त साम्य उपलब्ध है कुछ पद्यों में । ऐसा प्रतीत होता है, कि इष्टोपदेश के श्लोक नं० ४, २, ३ एवं ३७ मोक्षपाहुड की गाथा २१, २४, २५ एवं ६६ के रूपान्तर हैं। यथामोक्षपाहुड-वरवयतवेहि सग्गो मा दुक्खं होउ निरइ इयरेहिं ।
छायातवट्ठियाणं पडिवालंताण गुरूभेयं ॥२५॥ इष्टोपदेश-वरंवृतः पदं देवं नाव्रतैर्वत नारकम् ।
छायातपस्थर्योभेदः प्रतिपालयतो महान् ॥३॥ ७. जोइन्दु की रचनाएं:
___ अध्यात्म-साधक जैन आचार्यों में कवि जोइन्दु का प्रमुख स्थान है। आचार्य कुन्दकुन्द भी अध्यात्म-प्रतिष्ठापक थे । अतः उनकी रचनाओं का प्रभाव जोइन्दु की कृतियों पर पड़ना स्वाभाविक है । जोइन्दु की दो रचनाएं प्रमुख हैं-(१) परमात्मप्रकाश एवं (२) योगसार। इन दोनों पर कुन्दकुन्द के ग्रन्थों का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। यथा--
तुलसी प्रज्ञा
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