Book Title: Tulsi Prajna 1993 07
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 34
________________ भूति गौतम आ जायें तो भगवान् की दिव्यध्वनि खिरने लगेगी। यह विचार कर इन्द्र ने एक वृद्ध ब्राह्मण को गौतम के पास पहुंचा दिया। वहां पर भी उसने वही बात दोहरायी ! गौतम अभिमान की मुद्रा में बोले- तुम्हें जो पूछना हो पूछ सकते हो । वृद्ध बोला--प्रियवर्य ! यदि आप मेरे काव्य का अर्थ बता देंगे तो मैं आपका शिष्य बन जाऊंगा और यदि न बता सके तो आपको मेरे गुरु का शिष्यत्व स्वीकार करना होगा। इस बात पर गौतम सहमत हो गये। तब वृद्ध ने श्लोक बोला-"त्रैकाल्यं द्रव्यषटक' इत्यादि । श्लोक सुनकर इन्द्रभूति उसका अर्थ विचारने लगे लेकिन अर्थ नहीं कर पाये छह द्रव्य, नौ पदार्थ, छह लेश्या, पांच अस्तिकाय कौन से हैं । किन्तु अभिमान वश वृद्ध के समक्ष यह बात कह भी न सके । उन्होंने बात छिपाते हुए कहा---"मैं तुम्हें क्या बताऊं, चलो तुम्हारे गुरु के समक्ष ही अर्थ बताऊंगा।" इन्द्र भी यही तो चाहता था। वह इन्द्रभूति को उनके शिष्य परिवार सहित लेकर चल दिया। जब समवशरण के द्वार के भीतर घुसते ही मानस्तम्भ देखा तो इन्द्रभूति के मन का अभिमान गलित हो गया और मन में कोमलता जागी । समवशरण की विभूति देखकर वे चकित रह गये और विचारने लगे-जिसकी ऐसी लोकोत्तर विभूति है, वे क्या किसी के द्वारा जीते जा सकते हैं । जब वे भगवान् के समक्ष पहुंचे तो अन्तर से भक्ति की हिलौरें-सी उठी और वे हाथ जोड़कर भगवान् की स्तुति करने लगे। फिर उन्होंने भगवान् को नमस्कार किया और अपने दोनों भाइयों और पांच सौ शिष्यों सहित भगवान के चरणों में जैनेश्वरी दीक्षा धारण कर ली। उस समय उनके परिणाम इतने निर्मल थे कि उन्हें तत्काल बुद्धि, विक्रिया, क्रिया, तप, बल, औषधि, रस, और क्षेत्र ये आठ ऋद्धियां प्राप्त हो गयीं। बुद्धि ऋद्धि प्राप्त होने पर अवधिज्ञान, मनः पर्यय ज्ञान, कोष्ठ मति, बीज बुद्धि, संभिन्न, संश्रोतृ और पदानुसारी ज्ञान भी प्राप्त हो गये । और फिर श्रावण मास में कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा के दिन अभिजित् नक्षत्र के उदित रहने पर भगवान महावीर की दिव्यध्वनि खिरी। इस समय अवसर्पिणी के चतुर्थ काल के अन्तिम भाग में तीन वर्ष आठ माह भौर पन्द्रह दिन शेष रह गये थे ।। इस प्रकार इन्द्रभूति गौतम भगवान् महावीर के प्रथम गणधर बने । भगवान् महावीर ने गौतम गणधर को उपदेश दिया और उन्होंने अन्तर्महर्त में द्वादशांग के अर्थ का अवधारण करके उसी समय बारह अंग रूप ग्रन्थों की रचना की और गुणों से अपने समान श्री सुधर्माचार्य को उसका व्याख्यान किया । कार्तिक कृष्णा १५ की सुबह भगवान् महावीर को मोक्ष प्राप्त हुआ और उसी दिन शाम को गौतम गणधर को केवलज्ञान प्राप्त हुआ। बारह वर्ष पश्चात श्री गौतम स्वामी को विपुलाचल पर्वत पर मोक्ष प्राप्त हुआ। इन्द्रनन्दि कृत श्रुतावतार की गुर्वावली के अनुसार गौतम स्वामी भगवान् ७४ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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