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शस्या शस्येति नीति प्रतिकृति कृति कृच्चेतना तप्त तन्त्रा मन्त्रणां त्राणशक्ति शमशरणरता रक्तकल्पैक लोक ! वित्तां विद्यां विनीत श्रितमतनयन ! स्वानतेषूर्ध्वसूक्तां
शूरो वीरोऽधिरोहन नवनवनयुतं युक्तियुक् शासनेश ! वृष्टि चित्र के रूप में चित्रमय श्लोक का एक अन्य उदाहरण इस प्रकार है :
वृष्टिचित्र श्लोक
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दात्ताः
तस्थाः
निष्ठा
उक्त श्लोक के चारों चरण इस प्रकार हैं :
के के लोके केलोदात्ता : ते ते ध्वान्ते ते ध्वान्तस्थाः सा सा भाषा साभा ज्ञेया .
या या माया यामा निष्ठा । वृष्टि चित्रमय उक्त प्रलोक में ३२ अक्षर होते हैं। किन्तु उनमें से केवल २० अक्षर ही लिखे जाते हैं । शेष १२ अक्षरों की पूर्ति जिस प्रकार बर्षा की बूंदें जमीन पर गिर कर ऊपर उछलती हैं और फिर नीचे गिरती हैं, उसी प्रकार ऊपर से नीचे तथा फिर ऊपर से नीचे तक बोल कर की जाती है।
उपरोक्त दोनों श्लोकों के रचयिता युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ हैं। शिविका चित्र के रूप में एक और श्लोक यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है... .
खंड १८, अंक ४