Book Title: Tulsi Prajna 1990 09
Author(s): Mangal Prakash Mehta
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 2
________________ धर्म और दर्शन* - आचार्य श्री तुलसी धर्म और दर्शन ये दो शब्द हैं । प्रश्न है, धर्म और दर्शन एक हैं या दो ? धर्म क्या है ? दर्शन क्या है ? महापुरुषों ने अनुभव की आंख से जिसका साक्षात् किया, वह दर्शन है । उन्होंने वाणी से जो रास्ता बतलाया, वह धर्म है। जैन-दर्शन क्या है ? जिन भगवान् ने आत्म-साक्षात्कार के स्तर पर जो देखा, वह दर्शन है । जिन का दर्शन जैन-दर्शन है । 'जिन' किसी का नाम नहीं है । यह गुणात्मक शब्द है । जो वीतराग हैं, सर्वज्ञ हैं, सर्वदर्शी हैं, वे जिन हैं। जितने तीर्थकर/केवली हुए हैं, वे सब जिन हैं । हमारे जिन/तीथंकरों की अनुभूतियां ही जैन-दर्शन है। इसी तरह बुद्ध की वाणी बौद्ध-दर्शन कहलाती है । वेदों पर आधत दर्शन वैदिकदर्शन कहलाता है । वेद क्या है ? वेद ग्रन्थ हैं। वैदिक लोगों के मतानुसार वेद किसी मनुष्य द्वारा रचित नहीं हैं, सहज हैं । भगवान् के मुख की वाणी हैं । इसी क्रम में मुहम्मद साहब का दर्शन इस्लाम-दर्शन और क्राइस्ट का दर्शन ईसाई-दर्शन कहलाता है। जब भी कोई पुरुष द्रष्टा बनेगा, साक्षात्कार करेगा, उसकी वाणी दर्शन बन जाएगी। धर्म दर्शन के द्वारा निर्दिष्ट मंजिल को पाने का रास्ता है । सत्य का आचरण धर्म है। अहिंसा का आचरण धर्म है। संक्षेप में कह सकते हैं, दर्शन हमारे लक्ष्य का निर्धारण करता है । धर्म हमें उसे पाने का रास्ता बतलाता है। हम जैन-दर्शन और धर्म के प्रति आस्थाशील हैं। यद्यपि आस्था बहुत ऊंचा तत्त्व है, पर मजिल तक पहुंचने के लिए वह पर्याप्त नहीं है । आस्था के साथ-साथ तत्त्व की जानकारी भी अपेक्षित है। भगवान् सिर्फ मार्ग बतलानेवाले हैं, चलना हमें स्वयं होगा । भगवान् ने सत्य तक पहुंचने का मार्ग बता दिया है। अब हम अपने विवेक और पुरुषार्थ का उपयोग करें। 'अप्पणा सच्चमेसेज्जा'-आत्मा से स्वयं सत्य का अन्वेषण करो; महावीर का अन्तिम मत मानो। यह संदेश इस बात की ओर स्पष्ट इंगित करता है कि साधना के क्षेत्र में व्यक्ति स्वयं खोज करे । क्योंकि वह मनुष्य है, चेतन है विवेकशील है। वह भित्तिचित्र नहीं है। हम प्रतिक्षण इस बात का अनुभव करते हैं कि हमारी चेतना सक्रिय है। इसलिए हमें सत्य खोजते रहना है । अनन्त सत्य के साक्षात्कार का यही मार्ग है। * 'प्रवचन पाथेय' (सन् १९७८-७६) के प्रवचन से साभार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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