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गण कीत्तंन की ढाल दो, ख्यात आदि में बात । मिलती मुनि संबंध में, करलो पढ़कर ज्ञात ।।२३।। अनोपचंद तपसी अमल, थोकड़ो तप पणतीस । उदक आगार चउविहार के, वर तप विश्वावीस ॥
(जय सुजश ढा. ५१ दो. ३) सं० १९२२ के शेषकाल में भी वे जयाचार्य के साथ थे, इसका जय सुजश में उल्लेख मिलता है कि जयाचार्य रामपुरा पधारे तब उन्होंने मुनिश्री को सम्बोधित कर एक शिक्षात्मक सोरठा फरमाया था।
दिन-दिन विनय दिनेश, अंतर उजुवालो अधिक । वाधे सुयश विशेष, ताजक सीख तिलेसरा ॥
(जय सुजश ढा. ५० सो. ३) शेष चातुर्मास प्राप्त नहीं हैं। १. मुनिश्री के गुण वर्णन की ढाल १ मघवागणी द्वारा सं० १९४५ के सरदारशहर चातु
र्मास में रचित है। दूसरी ढाल किसी श्रावक द्वारा सं० १६३५ कात्तिक बदि १३ को चूरू में रची हुई है।
उक्त दोनों ढालें प्राचीन गीतिका संग्रह में संकलित हैं।
ख्यात तथा शासन प्रभाकर, ऋषिराय संत वर्णन गा. १२० से १३२ में भी उनके संबंध का विवरण है।
तुलसी-प्रज्ञा