Book Title: Tulsi Prajna 1979 02
Author(s): Nathmal Tatia
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 195
________________ शिविरों की जानकारी कराना आदि कार्य नीडम् के प्रतिनिधि ने किए। विस्तार से प्रत्येक गतिविधि का परिचय कराते हुए तुलसी प्रज्ञा एवं प्रेक्षा पत्रिका की जानकारी कराई गई । सात दिन के प्रवासकाल में लगभग हजारों दर्शनार्थियों के द्वारा गुरुदेव से जिन वाणी का लाभ उठाया गया। १७-३-७६ ग्रीनपार्क सायंकालीन दर्शन के समय आचार्यप्रवर के दर्शन ग्रीन पार्क में श्रावक-श्राविकाओं के द्वारा किये गये तथा प्रवचन लाभ उठाया गया । सैंकड़ों दर्शनार्थियों ने इसका लाभ लिया। १८.३-७६ अध्यात्म साधना केन्द्र दिल्ली छतरपुर शिविर उद्घाटन हेतु पूज्यवाद गुरुदेव ६ बजे पधारे तथा कार्यक्रम ठीक निर्धारित समयानुसार ६-३० बजे प्रारम्भ हुआ। करीब तीन सौ दर्शकों के मध्य गुरुदेव के द्वारा प्रेक्षाध्यान शिविर का उदघाटन मंगलाचरण के पश्चात् किया गया, संयोजक श्री कठौतिया जी के द्वारा स्वागत भाषण हुआ। मुनिश्री किसनलाल जी के द्वारा जहाँ संयोजन किया गया वहीं इसके महत्त्व पर भी प्रकाश डाला गया । शिविर निदेशक युवाचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के द्वारा प्रेक्षा क्या है ? क्यों आवश्यक है ? तथा किस सरल विधि से इसे अपनाया जा सकता है इस पर विस्तृत प्रकाश डाला गया। पधारे हुए भारत के विख्यात आयुर्वेदाचार्य पं. शिव शर्मा, यू. जी. सी. के चेयरमैन, प्रो. सतीशचंद्र एवं साहित्यकारों ने अपने विचार व्यक्त किये तथा बताया कि निश्चय ही प्रेक्षाध्यान की यह पद्धति अपने में अनूठी एवं सारभित दृष्टिगत होती है, निश्चय ही इसे अपनाया जा सकता है । आचार्यप्रवर ने अपने उद्बोधन भाषण में शिविरार्थियों से कहा--वास्तव में आपने जिस मार्ग को चुना है उसके बारे में आपके मन में अनेक जिज्ञासायें होंगी और उन सभी का समाधान आपको शिविर में प्राप्त होगा। शिविर कैसा होगा या कैसा रहेगा इसका स्वाद गूगे के गुड़सा है, जो बताने नहीं खाने से मालूम होता है। मैं केवल इतना कह सकता हूं कि एक बार आप इसमें आ गये तो बार-बार आयेंगे। यह अनुभव की बात है । बम्बई के भाई आपके साथ बैठे हैं । इनके अतिरिक्त आपके साथ कई अन्य साथी होंगे, जो दूसरे व तीसरे शिविर में भाग ले रहे हैं। मैं तो यही शुभकामना करता हूँ कि आप अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हों। शिविर में २०० शिविरार्थियों ने भाग लिया। जिनमें सारे हिन्दुस्तान में से दूर-दूर से लोग थे। अनेक नाम आये पर स्थान की कमी के कारण कुछ भाई बहनों को अगले शिविर हेतु छोड़ना पड़ा। आचार्यप्रवर दिनांक १८ मार्च ७६ से' २७ मार्च ७६ तक मेहरौली छतरपुर में ही विराजे। खण्ड ४, अंक ७-८ ४६५

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