Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 4
________________ प्राकृत भारती की ओर से अप्रतिम प्रतिभाधारक, कलिकाल - सर्वज्ञ, परमार्हत् कुमारपालप्रतिबोधक, स्वनामधन्य श्री हेमचन्द्राचार्य रचित त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित का प्रथम पर्व जिसमें प्रथम तीर्थङ्कर श्री ऋषभदेव भगवान का चरित गुंफित है, प्राकृत-भारती के पुष्प संख्या ६२ के रूप में प्रस्तुत करते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता हो रही है । त्रिशष्टि अर्थात् तिरेसठ शलाका-पुरुष अर्थात् सर्वोकृष्ट महापुरुष, प्रथवा सृष्टि में उत्पन्न हुए या होने वाले जो सर्वश्रेष्ठ महापुरुष होते हैं वे शलाका पुरुष कहलाते हैं । इस कालचक्र के उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी के प्रारकों में प्रत्येक काल में सर्वोच्च ६३ महापुरुषों की गणना की गई है, की जाती थी और की जाती रहेगी । इसी नियमानुसार इस अवसर्पिणी के जो ६३ महापुरुष हुए हैं उनमें २४ तीर्थङ्कर, १२ चक्रवर्ती, ६ वासुदेव, ६ प्रतिवासुदेव और ९ बलदेवों की गणना की जाती है । इन्हीं ६३ महापुरुषों के जीवन चरितों का संकलन इस 'त्रिशष्टिशलाकापुरुषचरित' के अन्तर्गत किया गया है। आचार्य हेमचन्द्र ने इसे १० पर्वों में विभक्त किया है जिनमें ऋषभदेव से लेकर महावीर पर्यन्त महापुरुषों के जीवन-चरित संगृहीत हैं । प्रथम पर्व ६ सर्गों में विभक्त है जिसमें प्रथम तीर्थङ्कर भगवान आदिनाथ का सांगोपांग जीवन गूंथा गया है । पूर्व में प्राचार्य शीलांक ने 'चउप्पन महापुरुष चरियं' नाम से इन ६३ महापुरुषों के जीवन का प्राकृत भाषा में प्रणयन किया था । शीलांक ने ९ प्रतिवासुदेवों की गणना स्वतन्त्र रूप से नहीं की, अतः ६३ के स्थान पर ५४ महापुरुषों की जीवनगाथा ही उसमें सम्मिलित थी । प्राचार्य हेमचन्द्र १२वीं शताब्दी के एक अनुपमेय सारस्वत पुत्र थे, कहें तो प्रत्युक्ति न होगी । इनकी लेखिनी से साहित्य की कोई भी विधा प्रछूती नहीं रही । व्याकरण, काव्य, कोष, अलंकार, छन्द:शास्त्र, न्याय, दर्शन, योग, स्तोत्र आदि प्रत्येक विधा पर अपनी स्वतन्त्र, मौलिक एवं चिंतनपूर्ण लेखिनी का सफल प्रयोग उन्होंने किया | आचार्य हेमचन्द्र न केवल साहित्यकार ही थे अपितु जैन

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