Book Title: Triloksar
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Manikyachandra Digambar Jain Granthmala Samiti
View full book text
________________
त्रिलोकसारे
त्रिंशद्दशैकलक्षाणि पंचनवतिचतुरशीतिपंचपंचाशत् । त्रिंशत् दशैकसहस्रं शतं द्वासप्ततिसमाः क्रमशः || ८०६ ॥
३२६
तीस । त्रिंशल्लक्षाणि ३० दशलक्षाणि १० एकलक्षाणि । तत उपरि पंचनवतिसहस्राणि ९५००० चतुरशीतिसहस्राणि ८४००० पंचपंचाशत् सहस्राणि ५५००० त्रिंशत्सहस्राणि ३०००० दशसहस्राणि १०००० एकसहस्राणि १००० शतं १०० द्वासप्ततिः ७२ एतानि क्रमशो वर्षाणि स्युः ॥ ८०६ ॥
इदानीं तीर्थकराणा मंतराणि गाथासप्तकेनाहः -
उवहीण पण्णकोडी सतिवासडमासपक्खया पढमं । अंतरमेत्तो तीसं दस णव कोडी य लक्खगुणा ॥ ८०७ ॥ उदधीनां पंचाशत्कोटिः सत्रिवर्षाष्टमासपक्षकः प्रथमं । अंतरमितः त्रिंशत् दश नव कोटिश्च लक्षगुणा ॥ ८०७ ॥
उa | प्रथममंतरं पंचाशत्कोटिलक्षसागरोपमाणि ५० को ला त्रिवर्षा ३ अष्ट मासौ ८ एकपक्ष १५ सहितानि, इत उपरि क्रमेण त्रिंशत्कोटिलक्षसागरोपमाणि ३० दशकोटिलक्षसागरोपमाणि १० नवकोटिलक्षसागरोमाणि ९ को. ल. सा. ॥ ८०७ ॥ दसदसभजिदा पंचसु तो कोडी सायराण सदहीणा । छव्वीससहस्ससमा छावट्टीलक्खएणावि ॥ ८०८ ॥
दश दश भक्तानि पंचसु ततः कोटिः सागराणां शतहीना । षट्विंशसहस्रसमा षट्षष्टिलक्षकेनापि ॥ ८०८ ॥
दश । तत उपरि पंचस्वंतरेषु प्रमाणानि प्राक्तननवकोटिलक्षसागरोपमाण्येव दश दश भक्तानि ९०००० को सा. ९००० को सा० ९०० को

Page Navigation
1 ... 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442