Book Title: Tirthankar Mahavira Smruti Granth
Author(s): Ravindra Malav
Publisher: Jivaji Vishwavidyalaya Gwalior

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ द्वितीय खण्ड जिनवाणी (9-22) अन्तरात्मा-11, अपरिग्रह-11, अभयदान-11, अभोगी -11.अरहंत-11, अस्तेय (अचौर्य)-11, अहिंसा-12, आचार्य-13,आत्मतत्व 13, आत्मविजेता-13, आत्मश्रद्धा-13, आत्मशुद्धि-14, आत्मा-14, आत्मज्ञान-14, आचरण-15, आचार-15, आर्जव-15, उपभोग-15, कर्म-15, कषाय-15, केवलज्ञान-16, केवली-16, चरित्र-.16, जीव-16, तप-17, तीर्थ-17, द्रव्य-17, दुःख-17, धर्म-17, ध्यान-18, परमाणु-18 परमात्मा-18, परिग्रहण-18, पर्याय-18, प्रमाण-19, पुदगल-19, भय-19, भाषा-19, मार्दव-19, मोक्षमार्ग-19, लोभ-20, विनय-20, ब्रह्मचर्य-20, श्रमण-20, श्रमणधर्म-20, संत-20, संयम-21, समता-21, सत्य-21, सम्यकत्व-21, सम्यक दर्शन-21, सम्यक ज्ञान-22, सम्यक चारित्र-22, ज्ञान-22 । तृतीय खण्ड भगवान महावीर, जीवन-दर्शन-देन (23--76) 1. भगवान महावीर, जीवन और दर्शन 2. तीर्थकर महावीर और उनकी सामाजिक क्रान्ति 3. वर्तमान युग में महावीर के उपदेशों की सार्थकता 4.' भगवान महावीर और नारी मुक्ति 5. महावीर की वाणी का मंगलमय क्रान्तिकारी स्वरूप 6. महावीर का साम्यवाद 7. विश्वशान्ति के सन्दर्भ में तीर्थंकर महावीर का सन्देश 8. मानवधर्म के प्रणेता तीर्थंकर महावीर 9. भगवान महावीर का सर्वोद्य शासन 10. Message of Bhagavan Mahavira 11. Pearls -पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री सिद्धान्ताचार्य 25 -चन्दनमल वैद - यशपाल जैन -पं. सुमतीवाई शहा -डा० महावीर शरण जैन -परिपूर्णानन्द वर्मा यू० एन० वाच्छावत - सरदार सिंह चौरड़िया - सुमेरचन्द्र दिवाकर शास्त्री --T. K. TUKOL चतुर्थ खण्ड- जैन धर्म-दर्शन (77-152) 83 1. तीर्थंकर महावीर का अनेकान्त एवम् स्याद्वाद दर्शन ___-आचार्य श्री तुलसीजी 2. वर्तमान युग में श्रमण -उपाध्याय मुनि श्री विद्यानन्दजी 3. जैन योग में कुडलिनी - मुनि श्री नथमलजी 4. परिग्रह का स्वरूप -मुनि श्री चन्दनमलजी N 91. iv Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 448