Book Title: Tirthankar Mahavira Smruti Granth
Author(s): Ravindra Malav
Publisher: Jivaji Vishwavidyalaya Gwalior

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Page 12
________________ श्री रवीन्द्र मालव ने व्यक्तिगत रुचि लेकर प्रदेश समिति प्रस्तुत होने पर, उसने भी इसकी पुष्टि कर दी, तथा की बैठक के अवसर पर मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्य- व्याख्यानमाला के संयोजक श्री रवीन्द्र मालव को ही मन्त्री श्री प्रकाशचन्द्रजी सेठी तथा प्रदेश समिति के इस ग्रन्थ के सम्पादन का भार सौंपा गया। सदस्यों से, इस व्याख्यानमाला को सहयोग के लिए विशेष आग्रह किया, जिसे समिति ने उदारतापूर्वक मुझे प्रसन्नता है कि जिस विश्वास के साथ उन्हें यह स्वीकार कर विश्वविद्यालय की कठिनाई हल कर दी। कार्य सौंपा गया था, उससे भी अधिक निष्ठा के साथ उन्होंने अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण वर्ष इस ग्रन्थ प्रदेश समिति से प्राप्त आर्थिक सहायता से जीवाजी को समर्पित कर, जहाँ इसके लिए आचार्यों, राष्ट्रीय विश्वविद्यालय ने निर्वाण महोत्सव वर्ष के समापन ___ ख्यातिप्राप्त विद्वानों, शिक्षा मनीषियों तथा शोधार्थियों समारोह के अवसर पर दिनांक 6 नवम्बर से 10 से उच्चस्तरीय शोधपूर्ण लेख एवं निबन्ध एकत्रित कर नवम्बर 1975 तक एक पांच दिवसीय व्याख्यानमाला और उन्हें योजनावद्ध रूप से संकलित एवं सम्पादित आयोजित की, जिसमें विविध विषयों पर राष्ट्रीय ख्याति कर इस ग्रन्थ को सुन्दर स्वरूप प्रदान किया वहाँ प्राप्त विद्वानों एवं शिक्षा मनीषियों के व्याख्यान हुए। निरन्तर प्रयास कर आर्थिक साधन जुटाने और इसके प्रकाशन को सुलभ बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया व्याख्यानमाला की समाप्ति के पश्चात संयोजक है। इस ग्रन्थ के परिप्रेक्ष्य में उनका कठिन परिश्रम, श्री रवीन्द्र मालव, ने व्याख्यानमाला में हुए व्याख्यानों; दृढ़ संकल्प और निश्चित उद्देश्य के प्रति कार्य करने तथा आयोजन के सिलसिले में प्राप्त ऐसे शोध पत्रों, की असीम निष्ठा निहित है। जिनके रचियताओं के व्याख्यान विभिन्न सीमाओं तथा कठिनाइयों के कारण व्याख्यानमाला में आयोजित नहीं प्रबुद्ध पाठकों के हाथों में "तीर्थ कर महावीर किये जा सके थे, को संकलित कर, प्रकाशित करने की स्मृति-ग्रन्थ" के रूप में विभिन्न शीर्षकों से नौ विविध योजना निर्मित कर जब कूलपतिजी तथा अन्य अधि- खण्डों में विभाजित तथा चालीस शोधपत्रों एवं निबंधों कारियों के समक्ष प्रस्तुत की तो यह अत्यन्त दुष्कर तथा अन्य उपयोगी ज्ञानवर्द्धक सामग्री वाला यह संककार्य प्रतीत होता था । क्योंकि व्याख्यानमाला के लन तीर्थकर महावीर, उनके दर्शन और उनकी परम्परा पश्चात इस कोष में अत्यल्प राशि ही शेष थी, तथा जैन माहित्य एवं सस्कृति के अध्ययन, मनन तथा जिससे मुख्य व्याख्यानों को भी प्रकाशित करना संभव इन विषयों पर उपलब्ध विशाल ज्ञान भण्डार के कुछ नहीं था। परन्तु श्री मालव ने इस योजना को क्रिया- महत्वपूर्ण पक्षों पर प्रकाश डालने तथा विविध पक्षों पर न्वित करने हेतु संकल्पवद्ध रहकर कार्य करने तथा शोध-कार्य करने हेतु शोधार्थियों को आकषित करने के साधन जुटाने का विश्वास दिलाया तो कुलपतिजी ने महत्वपूर्ण उद्देश्यों में सफल हो सकेगा । ऐसा मुझे इस महत्वपूर्ण कार्य में विशेष रुचि लेकर इसे अपना विश्वास है। आशीर्वाद प्रदान कर दिया। योजना कार्य परिषद में अजयकुमार भट्टाचार्य गांधी जयन्ती कुल सचिव 2 अक्टूबर 1977 जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर कुल सचिन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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