Book Title: Tirth Darshan Part 2
Author(s): Mahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publisher: Mahavir Jain Kalyan Sangh Chennai

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Page 214
________________ बाध श्री जैतासा खेमासा द्वारा जैनाचार्य श्री मेरुसूरिजी के उपदेश से हुआ था, जो कि 10 हजार यात्रियों के साथ संघ लेकर आये थे । उसके बाद दूसरा जीर्णोद्धार विक्रम सं. 1033 में जैनाचार्य श्री सहजानन्दजी के उपदेश से तेतली नगर के श्रेष्ठी श्री हरदासजी ने करवाया था । इसके पश्चात् भी कई बार जीर्णोद्धार हुए होंगे लेकिन उनके कहीं उल्लेख नहीं मिल रहे हैं । अंतिम प्रतिष्ठा विक्रम संवत् 2020 वैशाख शुक्ल पक्ष में श्री तिलोकविजयजी के सुहस्ते सुसम्पन्न हुई । यहाँ पर उपलब्ध शिलालेखों, विभिन्न आचार्य भगवन्तो द्वारा रचित स्तोत्रों व चैत्य परिपाटियों में जीरावला पार्श्वनाथ भगवान का नाम विक्रम सं. 1851 तक आता है । उसके बाद पता नहीं किस कारण श्री नेमीनाथ भगवान की प्रतिमा मूलनायक भगवान के रूप में परिवर्तित की गयी । मान्यता है कि आक्रमणकारियों के भय से पार्श्वप्रभु की इस प्राचीन प्रतिमा को सुरक्षित किया होगा, जो कि अभी एक देहरी में विद्यमान है ।। विशिष्टता श्री जीरावला पार्श्वनाथ भगवान की महिमा का जैन शास्त्रों में जगह-जगह पर अत्यन्त वर्णन किया है । अभी भी जहाँ कहीं भी प्रतिष्ठा आदि शुभ काम होते हैं तो प्रारंभ में "ॐ श्री जीरावला पार्श्वनाथाय नमः" पवित्र मंत्राक्षर रूप इस तीर्थाधिराज का स्मरण किया जाता है । उन अवसरों पर प्रायः चमत्कारिक घटनाएँ घटती हैं व श्रद्धालु भक्तजनों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं । इस मन्दिर में श्री पार्श्वनाथ भगवान के 108 नाम की प्रतिमाएँ विभिन्न देरियों में स्थापित है । प्रायः हर आचार्य भगवन्त, साधु मुनिराजों ने यहाँ यात्रार्थ पदार्पण किया है । आज तक अनेकों संघ यहाँ आ चुके हैं, जिनके अनेकों वृत्तांत है । अनेकों आचार्य भगवन्तों मुनिमहाराजों ने अपने स्तोत्रों आदि में इस तीर्थ के महिमा की व्याख्या की है, उन सबका वर्णन यहाँ करना संभव नहीं । इस तीर्थ के नाम पर जीरापल्लीगच्छ बना है, जिसका नाम चौरासीगच्छों में आता है । यहाँ के चमत्कार भी प्रख्यात हैं, जैसे एक बार 50 लुटेरे इकट्ठे होकर मन्दिर में घूसे । मन्दिर में उपलब्ध सामान व रुपयो को जिनके जो हाथ लगा, गठडियाँ बाँधकर बाहर आने लगे । दैविक शक्ति से श्री पद्मावती पार्श्वनाथ भगवान-जीरावला 450

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