Book Title: Tirth Darshan Part 2
Author(s): Mahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publisher: Mahavir Jain Kalyan Sangh Chennai

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Page 234
________________ विराजमान करवाया था, जो आज भी दर्शनीय है । एक और वृतांत के अनुसार ग्यारवीं सदी में जब जैन-अजैन विद्वान अपने-अपने पक्ष की विजय के लिये कार्यरत थे, पाण्डित्य के साथ-साथ मंत्र-तंत्र का भी खुलकर प्रयोग होने लगा था, देवी-देवताओं की मान्यता सफलता पूर्वक जड़पकड़ती जा रही थी, उस समय दक्षिण भारत का समूचा भाग चक्रेश्वरी माता के प्रभाव से नतमस्तक था । गुजरात काठियावाड़ आदि प्रांतों में श्री चक्रेश्वरी माता की प्रसिद्धि दिन प्रतिदिन बढ़ रही थी । पंजाब में जैन धर्म संकट में था उस समय यहाँ का जैन संघ एकत्रित होकर जैनाचार्य श्री धर्मघोषसूरिजी की सेवा में अर्बुदाचल (आबू) में उपस्थित हुवा व सारा हाल कह सुनाया । आचार्य भगवंत ने अपने दो विद्धान मुनियों को श्री सोमदेव व समंतदेव के संरक्षण में श्री चक्रेश्वरी देवी की प्रतिमा को पंजाब ले जाने का आदेश दिया। श्रीसंघ, मुनियों के साथ प्रतिमा को साथ लेकर पुनः पंजाब की ओर रवाना हुवा, सरहिन्द की सीमा में एक वृक्ष के नीचे रात्री श्री आदीश्वर भगवान-सरहिन्द विश्राम हेतु ठहरा । प्रातः प्रस्थान के लिये तैयारी हुई तो माताजी की पालकी से आवाज आई कि मेरा यहीं श्री सरहिन्द तीर्थ पर ही वास रहेगा यह स्थान मुझे अत्यंत प्रिय है । साथ में रहने वाले संघ के सदस्य झूम उठे व छोटे से तीर्थाधिराज 8 1. श्री आदीश्वर भगवान, मन्दिर का निर्माण करवाकर माताजी की प्रतिमा को पद्मासनस्थ,श्वेत वर्ण,लगभग 37 सें. मी. (श्वे. मन्दिर)। वहीं विराजमान कराया जो आज भी दर्शनीय है ।। 2. माता श्री चक्रेश्वरी देवी श्वेत वर्ण (श्वे. मन्दिर)। उक्त दोनों वृतातों से यह सिद्ध होता हैं कि यह तीर्थ स्थल अतेवाली गाँव में । प्राचीन तीर्थ तो है ही साथ में चमत्कारिक स्थल भी प्राचीनता उपलब्ध विवरणों से यह तीर्थ स्थान है । काल के प्रभाव से यह सरहिन्द गाँव कई बार विक्रम की ग्यारवीं सदी का माना जाता है । कहा। बसा व उजड़ा परन्तु माताजी का यह पावन स्थल जाता है कि महाराजा श्री पृथ्वीराज चौहान के शासनकाल किसी भी आक्रमण व प्रकोप के लपेटों में नहीं आ में श्री कांगड़ा महातीर्थ की यात्रा हेतु राजस्थान से सका व ज्यों का त्यों ही बना रहा जो आज भी मौजूद बेलगाड़ियों में जाने वाले एक यात्रा संघ ने इस तीर्थ है । अभी पुनः जीर्णोद्धार का कार्य प्रारंभ किया गया भूमि पर विश्राम हेतु रात्री पड़ाव डाला । माता श्री है । चक्रेश्वरी देवी की प्रतिमा उनके साथ थी । रात भर विशिष्टता समस्त भारत में इस अवसर्पिणी भावभीना कीर्तन गान चलता रहा । प्रातः काल प्रस्थान काल के प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ भगवान की के समय बेलगाड़ी बहुत जोर लगाने पर भी वहीं रुकी अधिष्टायिका श्री चक्रेश्वरी माता, जिसे शासनदेवी भी रही बिल्कुल नहीं बढ़ सकी एवं चारों और प्रकाश के कहते हैं, का यही एकमात्र तीर्थ स्थान है. वैसे तो साथ आकाश से आवाज आई कि भक्तजनों यह स्थान शासनदेवी की प्रतिमा प्रायः हर मन्दिर में विराजित है। मुझे अत्यन्त प्रिय है, यहीं निवास करना है। यात्रीगण शासनदेवी के प्रभाव की यहाँ की चमत्कारिक घटना झूम उठे, नाचने गाने लगे व छोटे से मन्दिर का प्रायः कर्नाटक में श्री पद्मावती माता के हुम्बज तीर्थ निर्माण कर श्री चक्रेश्वरी माता की प्रतिमा को वहीं 470

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