Book Title: Tirth Darshan Part 2
Author(s): Mahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publisher: Mahavir Jain Kalyan Sangh Chennai

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Page 239
________________ श्री काँगड़ा तीर्थ तीर्थाधिराज श्री आदीश्वर भगवान, पद्मासनस्थ (श्वे. मन्दिर)। तीर्थ स्थल रवि व सतलज नदी के संगम-स्थान काँगड़ा के बाहर सुरम्य पहाड़ी पर प्राचीन दुर्ग में । प्राचीनता यह तीर्थ क्षेत्र वर्तमान चौवीसी के बाईसवें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ भगवान के समय का है। शास्त्रों में इस नगरी का प्राचीन नाम सुशर्मपुर रहने का उल्लेख है । कहा जाता है महाभारत युद्ध के समय राजा श्री सुशर्मचन्द्र ने राजा दुर्योधन की तरफ से विराट नगर पर चढ़ाई की थी । महायुद्ध में पराजय होने के कारण इस प्रदेश में आकर अपने नाम से नगर बसाया था । तब जिन मन्दिर का निर्माण करवाकर श्री आदिनाथ भगवान की प्रतिमा को प्रतिष्ठत करवाया था । श्री नेमिनाथ भगवान के समय राजा श्री सुशर्मचन्द्र द्वारा यहाँ श्री आदिनाथ भगवान की प्रतिमा प्रतिष्ठित करवाने का 'वेद्य प्रशस्ति' में व वि. सं. 1484 में श्री जयसागर उपाध्याय जी द्वारा रचित 'विज्ञप्ति त्रिवेणी' में भी उल्लेख मिलता है । ___ काँगड़ा के प्राचीन नाम भीमकोट व भीमनगर भी श्री आदिनाथ भगवान-काँगड़ा रहने का उल्लेख मिलता है । 'विज्ञाप्ति त्रिवेणी' में इसे 'अंगदक' महादुर्ग' भी बताया है । आज इसे नगरकोट किला भी कहते है । मुगल बादशाहों के राज्यकाल में ___के कारण यहाँ की महान विशेषता है । प्राचीन काल काँगड़ा नाम पड़ा होगा, ऐसा प्रतीत होता है । में यह एक बड़ा वैभव संपन्न जैन तीर्थ क्षेत्र था व __श्री जयसागर उपाध्यायजी द्वारा वि. सं. 1484 में अनेकों यात्रा संघ यहाँ दर्शनार्थ आते रहते थे । आज रचित 'विज्ञप्ति त्रिवेणी' में उस समय यहाँ 4 मन्दिर भी यहाँ पर उपलब्ध प्राचीन मन्दिरों के ध्वंसावशेष पूर्व रहने का उल्लेख है । उसके बाद वि. सं. 1497 में काल की याद दिलाते हैं । कटौच राजवंश ने शताब्दियों रचित -नगरकोट चैत्य परिपाटी' में यहाँ 5 मन्दिर रहने तक इस तीर्थ को पूजा । पश्चात् शताब्दियों तक यह क्षेत्र ओझल रहा । पाटण भन्डार में उपलब्ध 'विज्ञप्ति का उल्लेख है । अन्य तीर्थमालाओं में भी यहाँ वि. सं. 16 34 तक मन्दिर रहने के उल्लेख है । कालक्रम से त्रिवेणी' नामक ग्रन्थ में इस तीर्थ का उल्लेख देखकर उसके पश्चात् यहाँ के मन्दिरों को किसी वक्त क्षति मुनिश्रीजिनविजयजी ने आचार्य श्री विजयवल्लभसूरीश्वरजी से जानकारी पाकर इस तीर्थ की खोज की, जिससे वि. पहूँची होगी । वर्तमान में यहाँ यही एक प्राचीन मन्दिर है, जहाँ कटौच राजवंश द्वारा सदियों तक पूजित श्री सं. 1947 से पुनः यात्रा संघों का आवागमन प्रारम्भ हुआ । प्रतिवर्ष फाल्गुन शुक्ला त्रयोदशी से पूर्णिमा तक आदीश्वर भगवान की विशालकाय भव्य प्रतिमा के मेला भरता है । उक्त अवसर पर प्रतिवर्ष होशियारपुर दर्शन का लाभ मिलता है । से यात्रासंघ में हजारों भक्तगण आकर प्रभु-भक्ति में विशिष्टता यह तीर्थ-क्षेत्र श्री नेमिनाथ भगवान तल्लीन होते हैं । के काल में राजा श्री सुशर्मचन्द्र द्वारा निर्माणित होने 475


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