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श्री पार्श्वनाथ भगवान (दि.मन्दिर)-इन्द्रप्रस्थ
विद्यमान है जो दादावाड़ी के नाम विख्यात है व वहाँ मातंड व वरह नामके दो गांव भी बादशाह द्वारा भेंट पर दादा गुरुदेव की चरण पादुका भक्तों के पूजा-सेवा देने का उल्लेख है । बादशाह ने आचार्य भगवंत के व दर्शनार्थ स्थापित है । आचार्य भगवंत ने धर्म उपदेशों से प्रभावित होकर शत्रुजय गिरिराज व गिरनार प्रभावना के अनेकों कार्य किये जो आज भी तीर्थों के रक्षार्थ फरमान जाहिर करने का भी उल्लेख है। विख्यात है ।
__ पश्चात् समय-समय पर अनेकों श्वे. व दि. आचार्य वि. सं. 1305 में आचार्य भगवंत श्री गुरु भगवंतों के यहाँ चातुर्मास हुवे । कई मन्दिरों का जिनलाभसूरीश्वरजी ने प्रथम अंग की रचना यहीं पर । भी निर्माण हुवा । कई तीर्थमालाओं की भी यहाँ रचना की थी ।
हुई । कई तीर्थ मालाओं में यहाँ के मन्दिरों का वि. सं. 1389 भाद्रवा कृष्णा दशमी को आचार्य उल्लेख मिलता है । यहाँ से शत्रुजय, गिरनार आदि भगवंत श्री जिनप्रभसूरीश्वरजी ने अपने द्वारा रचित ताथ यात्राथ कई यात्रा सघ निकलन का भा उल्लेख है। "विविध तीर्थ कल्प" नामक तीर्थ माला की रचना को संभवतः प्रारंभ से अभी तक यहाँ अनेकों मन्दिरों का यहीं पर पूर्ण किया था । वह रचना आज भी प्रचलित निर्माण हुवा होगा परन्तु वर्तमान में स्थित श्वे. मन्दिरों है, व इतिहास की दृष्टी से अतीव महत्वपूर्ण व में श्री सुमतिनाथ भगवान का मन्दिर व दि. मन्दिरों में उपयोगी मानी जाती है । आचार्य भगवंत के प्रवेश के श्री पार्श्वनाथ भगवान का लाल मन्दिर के नाम समय वैशाख माह में यहाँ पर मन्दिर की प्रतिष्ठा विख्यात मन्दिर प्राचीनतम माने जाते है । श्री सुमतिनाथ करवाने का उल्लेख है । उस समय बादशाह हमीर भगवान (श्वे. मन्दिर) के निकट का श्री संभवनाथ मोहमद तुगलक) का शासन था । मन्दिर के लिये भगवान का श्वे. मन्दिर भी लगभग उसी समय का
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