Book Title: Tirth Darshan Part 2
Author(s): Mahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publisher: Mahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
View full book text
________________
श्री जीरावला तीर्थ
तीर्थाधिराज श्री जीरावला पार्श्वनाथ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 18 से. मी. । (प्राचीन मूलनायक ) (श्वे. मन्दिर) ।
जीरावला गाँव में जयराज पर्वत
तीर्थ स्थल की ओट में ।
प्राचीनता जैन शास्त्रों में इसके नाम, जीरावल्ली, जीरापल्ली, जीरिकापल्ली एवं जयराजपल्ली आदि आते है । उपलब्ध प्राचीन अवशेषों से प्रतीत होता है कि किसी समय यह एक समृद्धशाली नगर था ।
उल्लेखानुसार यहाँ जीरावला पार्श्वनाथ भगवान का मन्दिर विक्रम संवत् 326 में कोड़ी नगर के सेठ श्री अमरासा ने बनाया था | कोड़ीनगर शायद
448
भीनमाल के पासवाला होना चाहिए। कहा जाता है कि अमरासा श्रावक को स्वप्न में श्री पार्श्वनाथ भगवान के अधिष्ठायक देव के दर्शन हुए । अधिष्ठायक देव ने जीरापल्ली शहर के बाहर भूगर्भ में गुफा के नीचे स्थित पार्श्वप्रभु की प्रतिमा को उसी पहाड़ी की तलहटी में स्थापित करने को कहा । अमरासा ने स्वप्न का हाल वहाँ विराजित जैनाचार्य श्री देवसूरिजी को बताया। उसी दिन आचार्य श्री देवसूरिजी को भी इसी तरह का वप्न आया था । आचार्य श्री व अमरासा सांकेतिक स्थान पर शोध करने गये । पुण्ययोग से वहीं पर पार्श्वप्रभु की प्रतिमा प्राप्त हुई ।
श्री अधिष्ठायक देव के आदेशानुसार वहीं पर मन्दिर का निर्माण करवाकर विक्रम सं. 331 में आचार्य श्री देवसूरिजी के सुहस्ते प्रतिष्ठा संपन्न हुई । विक्रम सं. 663 में इसका प्रथम जीर्णोद्धार संघपति श्रेष्ठी
श्री जीरावला पार्श्वनाथ मन्दिर जीरावला

Page Navigation
1 ... 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248