Book Title: Tattvartha Vrutti Author(s): Bhaskarnandi, Jinmati Mata Publisher: Panchulal Jain View full book textPage 8
________________ प्रस्तावना प्रस्तुत ग्रंथ का स्रोत : प्रा० उमास्वामी कृत मोक्षमार्ग-तत्त्वदर्शन-विषयक तत्त्वार्थसूत्र नामक ग्रंथ सुखबोधा टीका का मूल आधार है। अर्थात् तत्त्वार्थ सूत्र की ही टीका सुखबोधा टीका है । अतः यहां तत्त्वार्थसूत्र का किंचित् परिचय दिया जाता है : तत्त्वार्थसूत्र में कुल १० अध्याय तथा सूत्र ३५७ हैं इसी को मोक्ष शास्त्र भी कहते हैं। यह ग्रंथ दिगम्बर एवं श्वेताम्बर दोनों में समानरूप से मान्य है । जैनाम्नाय में यह सर्वप्रथम सिद्धान्त ग्रंथ माना जाता है । यह ग्रंथ जैनों की बाइबिल है। इस (तत्त्वार्थसूत्र) के मंगलाचरणरूप प्रथम श्लोक पर ही आचार्य समन्तभद्र ने प्राप्त मीमांसा ( देवागम स्तोत्र ) की रचना की थी, जिसकी पीछे अकलंकदेव ( ई० ६२०-६८०) ने ८०० श्लोक प्रमाण अष्टशती नामकी टीका की। आगे प्राचार्य विद्यानन्दी नं० १ (ई० ७७५-८४०) ने इस अष्टशती पर भी ८००० श्लोक प्रमाण अष्टसहस्री नामकी व्याख्या की। इसके अतिरिक्त पूरे तत्त्वार्थसूत्र ग्रंथ पर निम्न टीकाएँ उपलब्ध होती हैं:- १. प्राचार्य समन्तभद्र विरचित ९६००० श्लोक प्रमाण गन्धहस्तिमहाभाष्य । २. पूज्यपाद ( ई० श० ५) रचित सर्वार्थसिद्धि ३. योगीन्द्र देव विरचित तत्त्वप्रकाशिका (ई० श०६) ४. अकलंक भट्ट (ई० ६२०-६८०) रचित तत्त्वार्थराजवार्तिक ५. अभयनन्दि ( ई० श० १०-१०) विरचित तत्त्वार्थवृत्ति ६. विद्यानन्दि ( ई० ७७५-८४० ) रचित श्लोकवार्तिक ८. प्रा. भास्करनन्दि ( ई. श. १२) कृत सुखबोध टीका ९. बालचन्द्र ( ई. श. १३ ) कृत तत्त्वार्थसूत्रवृत्ति (कन्नड़ भाषा) १०. विबुधसेनाचार्य (?) विरचित तत्त्वार्थ टीका ११. योग देव ( ई. १५७९ ) रचित तत्त्वार्थवृत्ति १२. प्रभाचन्द्र नं० ८ ( ई. १४३२ ) कृत तत्त्वार्थरत्नप्रभाकर १३. भट्टारक श्रुतसागर ( वि. सं. १६ ) कृत तत्त्वार्थवृत्ति ( श्रुतसागरी) १४. द्वितीय श्रुतसागर लिखित तत्त्वार्थ सुखबोधिनी १५. पं० सदासुख ( ई. १७९३-१८६३ ) की अर्थ प्रकाशिका।' इसी तरह इसी तत्त्वार्थसूत्र पर श्वेताम्बरों में भी निम्न तीन टीकाएँ उपलब्ध होती हैं - १. वाचक उमास्वातिकृत तत्त्वार्थाधिगम भाष्य २. सिद्धसेनगणी (वि. सं. ५) कृत तत्त्वार्थ भाष्यवृत्ति ३. हरिभद्रसुनुकृत तत्त्वार्थ भाष्यवृत्ति (वि. सं. ८-६)२ इस प्रकार जहां तक ज्ञात है इस महान् ग्रंथ पर मुख्यतः १८ टीकाएं पूर्वकाल में लिखी गईं; और भी हो सकती हैं। वर्तमान में भी अनेक विद्वानों ने इसी पर (तत्त्वार्थसूत्र पर) टीकाएँ लिखी हैं । १. जैनेन्द्रसिद्धान्तकोश २।३५६ । २. जैनेन्द्रसिद्धान्तकोश २०६३९ ।Page Navigation
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