Book Title: Tattvartha Sutra Mool
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 3
________________ निर्वृत्युपकरणे द्रव्येन्द्रियम्।। लब्ध्युपयोगौ भावेन्द्रियम्।। स्पर्शनरसन घ्राणचक्षुःश्रोत्राणि।। स्पर्शनरसन्गन्धवर्णशब्दास्तदर्थाः।। श्रुतमनिन्द्रियस्य।। वनस्पत्यन्तानामेकम्।। कृमिपिपीलिका भ्रमर मनुष्यादीनामेकैक वृद्धानि।। संज्ञिनः समनस्काः ।। विग्रहगतौ कर्मयोगः।। अनुश्रेणि गतिः।। अविग्रहा जीवस्य।। विग्रहवती च संसारिणः प्राक् चतुर्व्यः।। एक समयाविग्रहा।। एकं द्वौ त्रीन्वानाहारकः।। संमूच्छंनगीपरादा जन्म।। सचित्तशीतसंवृताःसेतरा मिश्राश्चैकशस्तद्योनयः।। जरायुजाण्डजपोतानां गर्भः।। देवनारकाणामुपपादः।। शेषाणां संमबर्द्धनम्।। औदारिकवैक्रियिका हारकदैजसकार्मणानि शरीराणि।। परं परं सूक्ष्मम्।। प्रदेशतोऽसंख्येयगुणंप्राक् तैजसात्।। अनन्तगुणे परे।। अप्रतीघाते।। अनादिसंबन्धे च।। सर्वस्य।। तदादीनि भाज्यानियुगपदेकस्मिन्ना चतुर्व्यः।।

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