Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Umaswati, Umaswami, Vijay K Jain
Publisher: Vikalp

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Page 105
________________ अध्याय -६ तद्विपर्ययौ नीचैर्वृत्त्यनुत्सेको चोत्तरस्य ॥२६॥ [तद्विपर्ययः ] उस नीच गोत्रकर्म के आस्रव के कारणों से विपरीत अर्थात् परप्रशंसा, आत्मनिंदा इत्यादि [च ] तथा [नोचैर्वृत्त्यनुत्सेको ] नम्र वृत्ति होना तथा मद का अभाव - सो [ उत्तरस्य ] दूसरे गोत्रकर्म अर्थात् उच्च गोत्रकर्म के आस्रव का कारण हैं। The opposites of those mentioned in the previous sutra, and humility and modesty, cause the influx of karmas which determine high status. विघ्नकरणमन्तरायस्य ॥२७॥ [विघ्नकरणम् ] दान, लाभ, भोग, उपभोग तथा वीर्य में विघ्न करना सो [अन्तरायस्य ] अन्तराय कर्म के आस्रव का कारण हैं। Laying an obstacle is the cause of the influx of obstructive karmas. ॥ इति तत्त्वार्थाधिगमे मोक्षशास्त्रे षष्ठोऽध्यायः ॥ . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 92

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