Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Umaswati, Umaswami, Vijay K Jain
Publisher: Vikalp

View full book text
Previous | Next

Page 124
________________ अध्याय - ७ जीवितमरणाशंसामित्रानुरागसुखानुबन्धनिदानानि ॥३७॥ [ जीविताशंसा ] सल्लेखना धारण करने के बाद जीने की इच्छा करना, [ मरणाशंसा ] वेदना से व्याकुल होकर शीघ्र मरने की इच्छा करना, [ मित्रानुरागः ] अनुराग के द्वारा मित्रों का स्मरण करना, [सुखानुबन्ध ] पहले भोगे हुये सुखों का स्मरण करना और [ निदानं ] निदान करना अर्थात् आगामी विषय-भोगों की वांछा करना - ये पाँच सल्लेखनाव्रत के अतिचार हैं। Desire for life, desire for death, recollection of affection for friends, recollection of pleasures, and constant longing for enjoyment. अनुग्रहार्थं स्वस्यातिसर्गो दानम् ॥३८॥ [अनुग्रहार्थं ] अनुग्रह-उपकार के हेतु से [स्वस्यातिसर्गः] धन आदि अपनी वस्तु का त्याग करना सो [ दानं] दान है। Charity is the giving of one's wealth to another for mutual benefit. विधिद्रव्यदातृपात्रविशेषात्तद्विशेषः ॥३९॥ [विधिद्रव्यदातृपात्रविशेषात् ] विधि, द्रव्य, दातृ और पात्र की विशेषता से [ तद्विशेषः ] दान में विशेषता होती है। 111

Loading...

Page Navigation
1 ... 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177