Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Umaswati, Umaswami, Vijay K Jain
Publisher: Vikalp

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Page 145
________________ अध्याय - ९ चारित्रमोहे नाग्न्यारतिस्त्रीनिषद्याक्रोशयाचना सत्कारपुरस्काराः ॥१५॥ [ चारित्रमोहे ] चारित्रमोहनीय के उदय से [ नाग्न्यारतिस्त्रीनिषद्याक्रोशयाचनासत्कारपुरस्काराः] नग्नता, अरति, स्त्री, निषद्या, आक्रोश, याचना और सत्कारपुरस्कार - ये सात परीषह होती हैं। (The afflictions of) nakedness, absence of pleasures, woman, sitting posture, reproach, begging, and reverence and honour, are caused by conductdeluding karmas. वेदनीये शेषाः ॥१६॥ [ वेदनीये] वेदनीय कर्म के उदय से [शेषाः ] बाकी की ग्यारह परीषह अर्थात् क्षुधा, तृषा, शीत, उष्ण, दंशमशक, चर्या, शय्या, वध, रोग, तृणस्पर्श, और मल - ये परीषह होती हैं। The other afflictions are caused by feeling karmas. एकादयो भाज्या युगपदेकस्मिन्नैकोनविंशतिः ॥१७॥ [एकस्मिन् युगपत् ] एक जीव के एक साथ [ एकादयो] एक से लेकर [आ एकोनविंशतिः ] उन्नीस परीषह तक [भाज्याः ] जानना चाहिये। 132

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