Book Title: Tattvartha Sutra Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 6
________________ व्यञ्जनस्यावग्रहः।।८।। व्यञ्जन (अप्रकटरूप) पदार्थ का केवल मात्र अवग्रह ही होता है। ईहादिक अन्य तीन नहीं होते। न चक्षुरनिन्द्रियाभ्याम् ।।१९।। वह (अप्रकटरूप) पदार्थ का अवग्रह नेत्र और मन से नहीं होता है। केवल मात्र शेष चार इन्द्रियों से ही होता है। (१ x ४-४x १२=४८ इस तरह २८८+४८=३३६ भेद कुल मतिज्ञान के हुए)। श्रुतंमतिपूर्वद्वयनेकद्वादशभेदम् ।।२०।। श्रुतज्ञान मतिज्ञान पूर्वक होता है उसके अंगबाह्य और अंग प्रविष्ट ये दो मुख्य भेद ट। उसमें पहिला अनेक भेदवाला तथा दूसरा बारह भेदवाला है। भवप्रत्ययोऽवधिर्देवनारकाणाम्।।२१ ।। भवप्रत्यय अवधिज्ञान देव और नारकियों के होता है। क्षयोपशमनिमित्त: षड्विकल्प:शेषाणाम्।।२२।। शेष रहे हए, मनुष्य और तिर्यचों के क्षयोपशम जन्य अवधि ज्ञान होता है। और वह अनुमागी, अननुगामी, वर्धमान, हीयमान, अवस्थित और अनवस्थित के भेद से छ: प्रकार का है। ऋजुविपुलामती मन: पर्ययः।।२३।। ऋजमती और विपुलमती ये दोनों मन पर्यय ज्ञान के भेद हैं।Page Navigation
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