Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 22
________________ कुरूभ्यः ।।३७॥ देवकुरु और उत्तरकुरु क्षेत्र को छोड़कर पाँच भरत, पाँच ऐरावत और पाँच विदेह इसप्रकार पन्द्रह कर्म भूमियाँ हैं। नृस्थिती परावरे त्रिपल्योपमांतर्मुहूर्ते ।।३८॥ मनुष्यों की उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्योपम की, तथा जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है। तिर्यग्योनिजानां च।।३९।। तिर्यचों की उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्योपम की जघन्य एक अन्तर्मुहूर्त की है। इति श्रीतत्त्वार्थाधिगमे मोक्षशास्त्रे तृतीयोऽध्यायः। अध्याय ४ देवाश्चतुर्णिकाया:।।।। भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक इसप्रकार देव चार प्रकार के हैं। आदितस्त्रिषु पीतांतलेश्या:।।२।। पहिले की तीन निकायों में कृष्ण, नील, कापोत और पीत ये चार ही लेश्या होती हैं। दशाष्टपञ्चद्वादशविकल्पा: कल्पोपपन्नपर्यनता:॥३॥ भवनवासी के दस, व्यंतर के आठ, ज्योतिष्क के पाँच और कल्पोपपन्न वैमानिक के बारह भेद हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63