Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 59
________________ परे केवलिनः।।३८॥ आगे के दो अर्थात् सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति और व्यपरतक्रियानिवर्ती ये दो ध्यान सयोग केवली और अयोग केवली के होते हैं। पृथक्त्वैकत्ववितर्कसूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति व्युपरतक्रियानिवर्तीनि।।३९।। १ पृथक्त्ववितर्क, २ एकत्ववितर्क, ३ सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति, ४ व्यपरतक्रियानिवर्ति ये शुक्ल ध्यान के चार भेद हैं। त्र्येकयोगकाययोगायोगानाम् ।।४०।। पहिला शुक्ल ध्यान तीनों योगों के धारकों के, दूसरा शुक्ल ध्यान तीन में से किसी एक योग वाले के, तीसरा शुक्ल ध्यान काययोग वालों के और चौथा अयोगकेवली के हाता है। एकाश्रयेसवितर्कवीचारे पूर्वे ।।४१ ।। पहिले के दो ध्यान एकाश्रय अर्थात् श्रुतकेवली के आश्रय तथा वितर्क और वीचार सहित होते हैं। अवीचारं द्वितीयम् ।।४२।। दूसरा शुक्ल ध्यान वितर्क सहित किन्तु वीचार रहित है। वितर्कः श्रुतम्।।४३।। वितर्क (विशेष प्रकार से तर्क करना) सो श्रुतज्ञान है। वीचारोऽर्थव्यञ्जनयोगसंक्रान्तिः।।४४।। अर्थ, व्यञ्जन और योगों का परिवर्तन है सो विचार है। सम्यग्दृष्टिरावकविरतानन्तवियोजकदर्शन

Loading...

Page Navigation
1 ... 57 58 59 60 61 62 63