Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ उपपाद जन्म से होनेवाले देव नारकी तथा चरम शरीर अर्थात्उसी भव से मोक्ष जानेवाले और असंख्यात वर्ष की आयुवाले उत्तरकुरु आदि क्षेत्रों में पैदा हुए जीवों की अकाल मृत्यु नहीं होती। इति श्रीतत्त्वार्थाधिगमे मोक्षशास्त्रे द्वितीयोऽध्यायः। अध्याय ३ रत्नशर्करावलुकापंकधूमतमोमहातमः प्रभाभूमयोधनाम्बुवाताकाशप्रतिष्ठा: सप्ताऽधोधः।।१।। (१) रत्नप्रभा (२) शर्कराप्रभा (३) वालुका प्रभा (४) पंक प्रभा (५) धूम प्रभा (६) तम प्रभा (७) महातम प्रभा। ये सात भूमियें क्रमश: एक दूसरे के नीचे हैं तथा ये घनोदधि वलय (जमे हुए घी के सदृश पानी) के आश्रित हैं। घनोदधि घनवात (जमे हुए घी के समान वायु) के आश्रित है। और घनवात, तनुवात (पिघले हुए घी के समान वायु) के आश्रित है। तनुवात आकाश के आश्रित और आकाश अपने आश्रय पर तासुत्रिंशत्पंचविंशतिपंचदशदशत्रिपंचोनैकनरक शतसहस्त्राणि पञ्चचैव यथाक्रमम् ।।२।। इन नरकों में तीस, पच्चीस, पन्द्रह, दस, तीन, पाँच कम एक लाख और केवल पाँच क्रमानुसार बिल (रहने के स्थान) हैं। नारका नित्याशीतरलेश्यापरिणामदेहवेदना विक्रिया: वे नारकी नित्य अशुभतर लेश्या, परिणाम, शरीर, वेदना और विक्रिया वाले होते हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63