Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 4
________________ विधान (प्रकार) इनसे सम्यग्दर्शनादि एवं जीवादि तत्वों का ज्ञान होता सत्संख्याक्षेत्रस्पर्शन कालान्तरभावाल्पबहुत्वैश्च ।।८।। उसी तरह (१) सत् (सत्ता) (२) संख्या (३) क्षेत्र (४) स्पर्शन (५) काल (६) अन्तर (विरहकाल) (७) भाव (अवस्था विशेष) (८) अल्प बहुत्व, इन अनुयोगों द्वारा भी सम्यग्दर्शनादि विषयों का बोध होता है। मतिश्रुतावधिमन: पर्यय केवलानिज्ञानम् ।।९।। मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्यय और केवल इनके भेद से ज्ञान पाँच प्रकार का होता है। तत्प्रमाणे।।१०।। वह अर्थात् पाँच प्रकार का ज्ञान दो प्रमाण रूप है। आद्ये परोक्षम्।११॥ पहिले के दो ज्ञान मति और श्रत इन्द्रियादि निमित्त की अपेक्षा रखने से परोक्ष प्रमाण रूप हैं। प्रत्यक्षमन्यत्।।२।। बाकी के तीन ज्ञान अवधि, मन: पर्यय और केवल ये प्रत्यक्ष प्रमाण रूप हैं क्योंकि बिना किसी की सहायता के केवल आत्मा द्वारा उत्पन्न होते हैं।

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