Book Title: Tattvarth Varttikam Part 02
Author(s): Akalankadev, Mahendrakumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 11
________________ ५३७ [ ११ ] मूल पृ० हिन्दी पृ० मूल पृ० हिन्दी पृ० प्रारम्भ परिग्रहका विवरण ५२५ ७१६ रात्रिभोजन विरतिका भावनाओंमें तिर्यगायुके आस्रव ५२६ ७१६ अन्तर्भाव ५३४ ७२५ मनुष्यायुके आस्रव ५२६ १६ अणुव्रत और महाव्रत ५२५ ७२६ सभी आयुओंके आनवका सामान्य हेतु ५२६ ७२० अहिंसावतकी भावनाएं ५३६ ६२६ देव आयुके आस्रव ५२७ ७२० सत्यव्रतकी भावनाएँ ५३६ ७२६ विस्तारसे देवायुके श्रास्रवोंका निरूपण ५२७ ७२० अचौर्यव्रतकी भावनाएं ५३६ ७२७ सम्यक्त्व भी देवायुका आस्रव ५२७ ब्रह्मचर्य व्रतकी भावनाएँ ५३६ ७२७ अशुभ नामके आस्रव ५२८ ७२० अपरिग्रह व्रतकी भावनाएं ५३६ ७२७ योगवक्रता और विसंवादनका भेद ५२८ ७२० हिंसादिकके सम्बन्धमें अपाय और अन्य नामास्रवोंका निर्देश ५२८ ७२० अवद्यका विचार ५३७ ७२७ शुभनामके आस्रव ५२८ ७२१ हिंसादिमें दुःखरूपताका विचार ७२८ तीर्थकर नामके आस्रव ५२६ ७२१ मैत्री प्रमोद कारुण्य आदि भावनाएँ ५३८ ७२८ दर्शनविशुद्धिका स्वरूप ५२६ ७२१ मैत्री प्रमोद कारुण्य और माध्यस्थ्य सम्यक्त्वके आठ अंग ५२६ ७२१ आदिके लक्षण ५३८ ७२८ विनयसम्पन्नताका लक्षण संवेग और वैराग्यके लिए जगत् शीलव्रतेष्वनतिचारका लक्षण ५२९ ७२२ और कायके स्वरूपका विचार ५३६ ७२१ ज्ञानोपयोगका लक्षण ५२६ ७२२ भावनाएँ नित्यानित्यात्मक आत्मामें संवेग, त्याग, तपका लक्षण ५२६ ७२२ ही संभव है ५३६ ७२६ समाधि वैयावृत्त्यका लक्षण ५३० ७२२ हिंसाका लक्षण ५३६ .२६ छह आवश्यकोंका विवरण ५३० ७२२ प्रमत्तयोगसे हिंसाका समर्थन ५४० ७३० मार्गप्रभावनाका लक्षण ५३० ७२२ क्षणिकवादमें हिंसा संभव ही नहीं ५४१ ७३० प्रवचनवत्सलत्वका लक्षण ५३० ७२२ असत्यका लक्षण ५४१ ७३१ नीचगोत्रके आस्रव ५३० ७२३ स्तेयका लक्षण ५४२ ७३१ निन्दा प्रशंसा आदिके लक्षण कर्मोंका ग्रहण चोरी नहीं ५४२ ७३१ नीचगोत्रके अन्य प्रास्रव ५३१ ७२३ अप्रमत्तको इन्द्रियोंसे विषयग्रहण उच्चगोत्रके आस्रव होनेपर भी चोरी नहीं ५४३ ७३१ उच्चगोत्रके आस्रवोंका विवरण ५३१ ७२३ अब्रह्मका लक्षण __७३२ नीचैर्वृत्ति और अनुत्सेकके लक्षण ५३१ ७२३ परिग्रहका लक्षण ५४४ अन्तरायके आस्रव ५३१ ७२३ ज्ञान दर्शन चारित्रका संग्रह परिग्रह नहीं ५४५ ७३३ अन्तरायके अन्य प्रास्रव ५३२ ७२३ व्रतीका लक्षण ५४५ ७३३ शास्त्रप्रामाण्य सर्वज्ञकथित होनेसे ५३२ ७२४ माया मिथ्या और निदान शल्योंका प्रदोष आदिसे तत्तत्कर्मों में अनुभाग स्वरूप ५४५ ७३३ विशेष होता है ५३२ ७२४ दो व्रती-अगारी और अनगारी ५४६ अणुव्रती अगारी ५४७ ७३४ सातवाँ अध्याय अहिंसादि अणुव्रतोंका स्वरूप ५४७ ७३४ व्रतोंका निर्देश ५३३ ७२५ दिग्वतादि गुणवत और शिक्षावतोंका व्रतका लक्षण ५३३ ७२५ निर्देश ५४७ ७३४ व्रत संवररूप नहीं ५३३ ७२५ दिग्व्रतका स्वरूप ५४७ ७३४ عرعر

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