Book Title: Tattvarth Varttikam Part 02
Author(s): Akalankadev, Mahendrakumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 18
________________ [ १८ ] मूल पृ० हिन्दी पृ० मूल पृ० हिन्दी पृ० पुलाकादिमें संयम ६३७ ७६८ नाम कर्मका अभाव हो जानेसे प्रदेशों पुलाकादिमें श्रुत ६३८ ७६८ का विसर्पण नहीं ६४३ ८०३ पुलाकादिमें प्रतिसेवना ६३८ ७६८ मोक्ष अभावात्मक नहीं ६४४ -८०३ पुलाकादिका तीर्थ ६३८ ७६६ कर्मवन्धविच्छेद होनेपर ऊर्ध्वगति ६४४ ८०३ पुलाकादिकादिका लिङ्ग ६३८ ७६६ ऊर्ध्वगमनके हेतु ६४५ ८०३ पुलाकादिकी लेश्या ६३८ ७६६ ऊर्ध्वगमनके दृष्टान्त ६४५ ८०३ पुलाकादिका उपपाद ६३८ ७६६ कुलालचक्रका दृष्टान्त ६४५८०४ पुलाकादिके संयम स्थान ६३८ ७६६ अलाबूका दृष्टान्त ६५ ८०४ एरण्डबीजका दृष्टान्त ६४५८०४ अग्निशिखाका दृष्टान्त ६४५ ८०४ असङ्गत्व और बन्धच्छेदका भेद ६४५८०४ लोकके बाहर गमन न करनेका कारण दसवाँ अध्याय धर्मास्तिकायका अभाव ६४६ ८०४ केवलज्ञानकी उत्पत्तिके कारण सिद्धोंमें क्षेत्रादिकी रष्टिसे भेद ६४६ ०४ मोहादिके क्षयका क्रम और साधन ६४५ ८०४ तीन करण ६४० ८०० काल ६४६ ८०४ मोक्षके कारण ६४० ०१ गति ६४६ ८०८ श्रादि न होनेपर भी संसारका अन्त ६४६ ८०५ कर्माभाव दो प्रकारसे ६४१ ८०१ तीर्थ ६४६ ८०५ यत्नसाध्य कर्माभावका क्रम ६४१ ८०१ चारित्र ८०५ औपशमिक आदि भावोंका नाश ६४२ :०२ प्रत्येकबुद्ध और बोधितबुद्ध ६४६ ८०५ भव्यत्व पारिणामिकका ही नाश ६४२ ८०१ ज्ञान. ५४६ ८०५ केवलज्ञान सम्यक्त्व केवल दर्शन और अवगाहना ६४६ ८०५ सिद्धवकी निवृत्ति नहीं ६४२ ८०२ अन्तर ६४६ ८०५ मुक्त जीवको पुनः बन्ध नहीं ६४३ ८०२ अल्पबहुत्व ६४८ ८०५ सिद्धों का नीचे गिरना नहीं ६४३ ८०२ गति आदिकी दृष्टिसे सम्यक्त्वोत्पत्तिसे सिद्धोंका परस्पर अवगाह ६४३ ८०२ मोक्षतकका क्रम ६४६८०६ सिद्धोंके सुखकी उपमा नहीं ६४३ ८०२ तत्त्वार्थभावनाका क्रम ५४६ ८०६ सिद्ध अन्तिम शरीरके आकर ६४३ ८०३ मुक्तका सुख अनन्त ६५० ८०८ क्षेत्र लिङ्ग तत्त्वार्थसूत्र के पाठभेद तत्त्वार्थ के सूत्रों का अकारादि कोश तत्त्वार्थ के शब्दों का अकारादि क्रम तत्त्वार्थवार्तिक में आये उद्धरण तत्त्वार्थवार्तिक में उल्लिखित ग्रन्थ और ग्रन्थकार परिशिष्ट ८०६ तत्त्वार्थवार्तिक में उल्लिखित भौगोलिक शब्द तत्त्वार्थवार्तिक में आये विशिष्ट शब्द मूल और टिप्पणियों में उल्लिखित ग्रन्थों का संकेत ८३६ ८३७ ८४२ ८३३ ५६५ -0 - .

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