Book Title: Tattvarth Varttikam Part 02
Author(s): Akalankadev, Mahendrakumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 16
________________ [ १६ ] मूल पृ० हिन्दी पृ० मूल पृ० हिन्दी पृ० श्रदर्शन विजय ६१२ ७८१ अनशन आदि ६ बायतप ६१८७८४ अवधिदर्शन आदि परिषहोंका अज्ञानमें अनशनका प्रयोजन ६१८ ७८४ अन्तर्भाव ६१२ ७८२ दो प्रकारका अनशन ६१८ ७८४ सूक्ष्मसाम्पराय उपशान्तमोह और अवमोदर्य ६१८ ७८४ सीणकषायमें १४ परीषह ६१३ ७८२ वृत्तिपरिसंख्यान ६१८ ७८४ जिनेन्द्र में ग्यारह परीषह कोई मानते हैं ६१३ ७८२ रसपरित्याग ६१८ ७८५ केवलीमें घातिया कमों का उदय न विविक्त शय्यासन ६१६ ७८५ होनेसे क्षुधादि परीषहें नहीं ६१३ ७८२ कायक्लेश ६१६ ७८५ उपचारसे ये परीषहें ६१४ ७८२ परीषह और कायक्लेशमें भेद ६१६ ७८५ नवम गुणस्थान तक सभी परीषहें ६१४ ७८२ तपके बाह्य विशेषणके कारण ६१६ ७८५ सामायिक छेदोपस्थापना परिहारविशुद्धि प्रायश्चित्त आदि ६ अन्तरंग तप ६२० ७८५ संयममें सभी परीषहें ६१४ ७८२ प्रायश्चित्त आदिके भेद ६२० ७८६ ज्ञानावरणके उदयसे प्रज्ञा और आलोचना आदि प्रायश्चित्तके , भेद ६२० ७८६ अज्ञान ६१४ ७६२ प्रायश्चित्तका प्रयोजन ६२० ७८६ प्रज्ञापरीषह अन्य ज्ञानावरणके सद्भावसे श्रालोचना ६२० ७८६ होती है ६१४ ७८२ अालोचनाके दस दोष ६२१ ७८७ दर्शनमोह और अन्तरायके उदयसे संयतालोचना और संयतिकालोचना अदर्शन और अलाभ ६१४ ७८२ की विधि ६२१ ७८७ चारित्रमोहसे नाग्न्य अरति आदि प्रतिक्रमणका लक्षण ६२१ ७८७ परीषहें तदुभयका स्वरूप ६२१ ७८७ शेष परीषहें वेदनीयके उदयमें विवेकका स्वरूप ६२१ ७८७ होती हैं ६१५ ७८२ ब्युत्सर्गका स्वरूप ६२१ ७८७ एक व्यक्तिमें एक साथ १६ परीषह तपका स्वरूप ६२१ ७८७ तक संभव है ६१५ ७८३ छेदका स्वरूप ६२१ ७८७ शीत और उष्णमें से एक, शय्या परिहारका स्वरूप ६२१ १८७ निषद्या और चर्चामें से एक ६१५ ७८३ उपस्थापनाका स्वरूप ६११ ७८७ प्रज्ञा और अज्ञान दोनों साथ हो विभिन्न अपराधोंके प्रायश्चित्तांका हो सकती हैं ६१५ ७८३ विधान ६२१ ७८८ चारित्रके एक दो तीन चार भेद । ६१६ ७८४ पारश्चिक प्रायश्चित्त ६२२ ७८८ सामायिक आदि पाँच भेद ६१६ ७८४ ज्ञान दर्शन चारित्र और उपचार सामायिकका शब्दार्थ ६१६ ७८४ विनय ६२२ ७८८ छेदोपस्थापनाका लक्षण ६१७०८४ ज्ञानविनय ६२२ ७८ परिहारविशुद्धिका लक्षण ६१७ ७८४ दर्शन विनय ६२२ ७८८ सूक्ष्मसाम्परायका लक्षण ६१७ ७८४ चारित्र विनय ६२२ ७८८ अथाख्यात या यथाख्यातचारित्र ६१७ ७८४ उपचार विनय ६२२ ७८८ चारित्र शब्द और बुद्धि विकल्पकी आचार्यादिकी वैयावृश्य ६२३ ७८८ दृष्टिसे असंख्येय और अर्थतः अनन्त वैयावृत्त्यका स्वरूप ६२३ ७८८ प्रकारका है ६१८ ७८४ श्राचार्यका स्वरूप ६२३ ७८८

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