Book Title: Tattvarth Varttikam Part 02
Author(s): Akalankadev, Mahendrakumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 13
________________ [ १३ ] मूल पृ० हिन्दी पृ० पुद्गल कर्मका विपाक ५६६ ७४६ गति प्रकृति स्थिति आदि चार बन्ध ५६६ ७४७ जाति ज्ञानावरणादिकी प्रकृति ५६६ ७४७ शरीर योगनिमित्तक प्रकृति और प्रदेश ५६७ ७४७ __ अङ्गोपाङ्ग कषायनिमित्तक स्थिति और अनुभाग ५६७ ७४७ , निर्माण ज्ञानावरण आदि आठ कर्म ५६७ ७४७ बन्धन ज्ञानावरण और मोहमें भेद संघात एक ही पुद्गल सुख दुःख और छह संस्थान आवरणमें निमित्त होता है ५६८ ७४८ छह संहनन बन्धके एक दो तीन चार पाँच छह सात स्पर्श रस गन्ध वर्ण और पाठ भेद ५६६ ७४८ श्रानुपूर्व्य ज्ञानावरण श्रादिके क्रमनिर्देशका हेतु ५६६ ७४६ अगुरुलघु ज्ञानावरणादिकी उत्तर प्रकृति संख्या ५७० ७४६ उपघात ज्ञानावरणकी उत्तर प्रकृतियाँ ५७० ७४६ परघात सम्यक्त्वादिकी अभिव्यक्ति योग्यताके श्रातप . सद्भाव और असद्भावकी अपेक्षा उद्योत भव्यत्व और अभव्यत्व विभाग ५७१ ७४६ उच्छास दर्शनावरणकी उत्तर प्रकृतियाँ ५७२ ७५० दो विहायोगति निद्रा निद्रानिद्रा श्रादिके लक्षण ५७२ ७५० प्रत्येक शरीर वेदनीयकी साता असाता दो प्रकृतियाँ ५७३ ७५१ साधारण शरीर मोहनीयकी उत्तर प्रकृतियाँ त्रस तीन दर्शनमोह ५७४ ७५१ स्थावर अकषायवेदनीयके नव भेद ५७४ ७५२ सुभग कषायवेदनीयके सोलह भेद ५७४ ७७२ दुर्भग पर्वत पृथ्वी श्रादिकी तरह चार प्रकारका क्रोध ५७४ ७४२ दुःस्वर स्तम्भ अस्थि अादिकी तरह चार प्रकार शुभ का मान '५७४ ७५२ अशुभ बाँसकी जड़ मेढेकी सींग अादिकी तरह सूक्ष्म चार प्रकारकी माया ४७४ ७५२ ।। बादर कृमिराग कजल श्रादिकी तरह चार छह पर्यामियाँ प्रकारका लोभ ५७४ ७५३ अपर्यानि आयुकी उत्तर प्रकृतियाँ ५७५ ७५६ स्थिर नरकायुका स्वरूप ५७५ ७५२ अस्थिर तिथंचायुका स्वरूप ५७५ ७५२ श्रादेय मनुष्यायुका स्वरूप ५७५ ७५२ अनादेय देवायुका स्वरूप ५७५ ७५२ यशस्कोर्ति नाम कर्मकी उत्तर प्रकृतियाँ ५७६ ७५३ अयशस्कीर्ति मूल पृ० हिन्दी पृ० ५७६ ७५३ ५७६ ७५३ ५७६ ७५३ ५७६ ७५३ ५७६ ७५३ ५७६ ७५३ ५७६ ७५३ ७५३ ५७७ ७५३ ५७७ ७५३ ५७७ ७५३ ५७७ ७५३ ५७८ ७५५ ५७८ ७५३ ५७८ ७५३ ५७८ ५७८ ७५३ ५७८ ७५३ ५७८ ७५४ ५७८ ७५५ ५७८ ७५५ ५७८ ७५५ ५७८ ७५५ ५७८ ७५५ ५७६ ७५५ ५७६ ७५५ ५७६ ७५५ ५७६ ७५५ ५७६ ७५५ ५७६ ७५५ ५७६ ७५५ ५७६ ७५५ ५७६ ७५५ ५७६ ७५५ ५७६ ७५५ ५७६ ७५५ ५७६ ७५५ ५७६ ७५५ सुस्वर

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